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भारत में बहुसंख्यक यानी हिंदू समाज के लिए गहरे आत्म परीक्षण का वक्त आ गया है
By NI Editorial
किसी के प्रति प्रतिशोध का भाव उस हद तक नहीं जाना चाहिए कि उसके आवेश में खुद अपना ही नुकसान कर लिया जाए। अगर देश में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है, तो क्या इसका नुकसान सिर्फ अल्पसंख्यकों को हो रहा है? या सामाजिक अशांति सिर्फ उनकी समस्या है?
भारत में बहुसंख्यक यानी हिंदू समाज के लिए गहरे आत्म परीक्षण का वक्त आ गया है। हिंदू समुदाय में अगर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को लेकर एक दुराव रहा है, तो माना जा सकता है कि उसकी ऐतिहासिक वजहें हैँ। लेकिन उन वजहों का समाधान खुद को अज्ञान के अंधकार में झोंक देना नहीं हो सकता। ना ही किसी के प्रति प्रतिशोध का भाव उस हद तक जाना चाहिए कि उसके आवेश में खुद अपना ही नुकसान कर लिया जाए। ध्यान देने की बात हैः अगर देश में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है, तो क्या इसका नुकसान सिर्फ अल्पसंख्यकों को हो रहा है? या सामाजिक अशांति सिर्फ उनकी समस्या है? आखिर भारत को दुनिया की महाशक्ति बनाने की महत्त्वाकांक्षा अब कहां गायब हो गई है? अपने अज्ञान में बहुत से लोग यह मान सकते हैं कि भारत विश्व गुरु बन गया है, लेकिन हकीकत क्या है, उसे जानने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर कुछ ही दिन गौर कर लेना किसी के लिए काफी होगा। इसलिए यह समझने की बात है कि जन्म, कपड़े, खान-पान, प्रेम, त्योहार, नौकरी, व्यापार, शिक्षा और अब दुआ में भी साजिश देखना समाज की अल्पदृष्टि का संकेत है।
साजिश की ऐसी कहानियों को फैलाने वाले लोग कतई हिंदुओं के दोस्त नहीं हैँ। बल्कि वे हिंदू समाज को अज्ञान में धकेल कर अपना स्वार्थ साध रहे हैँ। इसीलिए हाल में हुई एक घटना के संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि उसके केंद्र में न लता मंगेशकर थीं, ना शाहरुख खान हैं और फातिहा पढ़ना। ये जानने की बात थी कि इस्लाम को मानने वाले किसी की मौत के बाद उसके लिए दुआ मांगकर दुआ को फूंक देते हैं, ताकि वो दुआ जिसके लिए पढ़ी गई, उस तक पहुंच जाए। यह भी एक श्रद्धांजलि है। इस फूंकने को थूकने का रंग देने की कोशिश की गई। और उस बात को मानने वालों की कोई कमी नही रही। या इसे एक मनोविकार नहीं कहा जा सकता। समझने की बात यह है कि जिसे अपने विकार का इल्म हो जाता है, वह इलाज के लिए मानसिक रोग विशेषज्ञों से सलाह लेता है। लेकिन जिसे यह अहसास ही न हो कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो रहा है, उसे लोग बस एक अंधकार भरे गर्त में लाचारी से गिरते हुए ही देख सकते हैं। तो अब वो वक्त आ गया है, जब इस पतन से हमें खुद को बचाना होगा।
नया इण्डिया के सौजन्य से लेख
Gulabi
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