सम्पादकीय

शिनजियांग पर कौन सही?

Triveni
15 Jun 2021 2:52 AM GMT
शिनजियांग पर कौन सही?
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पश्चिमी देशों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइघुर मुसलमानों के कथित दमन को अंतरराष्ट्रीय मसला बना रखा है।

पश्चिमी देशों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइघुर मुसलमानों के कथित दमन को अंतरराष्ट्रीय मसला बना रखा है। लेकिन उन्हें इस बात से भारी निराशा हुई है कि इस मामले में मुस्लिम देशों का उन्हें तनिक भी साथ नहीं मिला है। बल्कि ज्यादातर मुस्लिम देश इस मामले में चीन के साथ खड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने खुल कर चीन का पक्ष लिया है। इस बीच अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने एक खुलासा किया कि हाल ही में यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) ने एक उइघुर मुस्लिम को वापस चीन भेज दिया। चीन ने उसे प्रत्यर्पित करने की मांग की थी। कई और उइघुर मुसलमानों पर ऐसी ही कार्रवाई मिस्र, सऊदी अरब और यूएई ने की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के बाद से सिर्फ मिस्र से प्रत्यर्पण के ऐसे कम से कम 20 मामले हुए हैं।

चीन को मुस्लिम देशों का सर्टिफिकेट किस तरह मिला है, उसकी एक मिसाल पिछले देखने को मिली। 2020 में यूएई के बीजिंग स्थित राजदूत ने शिनजियांग प्रांत का दौरा किया था। उसके बाद उन्होंने ने वहां लागू की जा रही नीतियों के समर्थन में खुला बयान दिया था। राजदूत अली अल-धाहेरी ने कहा था कि शिनजियांग में चीन जिस सकारात्मक योजना और दृष्टि के साथ चल रहा है, उससे वे प्रभावित हुए हैँ। उन्होंने कहा था कि चीन शिनजियांग की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भूमिका बढ़ाना चाहता है। साथ ही वह वहां के लोगों का जीवन स्तर सुधारना चाहता है। ये बात कही देशों ने संयुक्त राष्ट्र में दोहराई, जब अमेरिका और उसके साथी देशों ने शिनजियांग मुद्दे पर चीन को घेरने की कोशिश की। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद में ले गए, तो 37 देशों ने वहां चीन का साथ दिया। उनमें कई मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश भी थे। अब इसकी दो ही वजहें हो सकती हैं। या तो मुस्लिम देशों को मुस्लिम आबादी की चिंता नहीं है, या फिर अमेरिका और पश्चिमी देश जो कह रहे हैं, वह झूठ है। पश्चिमी देश में आम राय यह है कि मुस्लिम देशों के इस रुख के पीछे इस क्षेत्र में चीन का बढ़ रहा प्रभाव है। फिलहाल, ये तो साफ है कि पश्चिमी देशों में इस मुद्दे पर चीन के खिलाफ बने माहौल का मुस्लिम दुनिया पर कोई असर नहीं हो रहा है। उइघुर मुसलमान तुर्क मूल के हैं, लेकिन टर्की ने भी चीन उनके कथित दमन के खिलाफ अपनी आवाज धीमी रखी है।


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