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- किससे ज्यादा परेशान...
रवीश कुमार किसी दौर में यह बात रही होगी कि महंगाई के सभी विरोधी होते होंगे, लेकिन इस दौर में यह बात सही नहीं है. महंगाई चाहे जितनी बढ़ गई हो लेकिन यह मानना ग़लत है कि सभी एक स्वर से महंगाई के विरोध में है. परेशान सभी हो सकते हैं मगर विरोधी सभी नहीं हैं. यह एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन है. जब मैंने अपने फेसबुक पेज पर लोगों से पूछा कि पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों से जो असर आया है, उसका हिसाब बताएं तो कई हज़ार कमेंट आए. कई लोगों ने कहा है कि अब वे चुप हो गए हैं क्योंकि ज़िक्र करते ही दोस्त उलझ जाते हैं. महंगाई के सपोर्ट में विकास की योजनाएं गिनाने लगते हैं. इस तरह के तर्क देते हैं कि सात लाख की कार ख़रीद ली सौ रुपये का पेट्रोल नहीं ख़रीद सकत. दोस्त गाली देने लगते हैं. कई लोगों ने निजी तौर पर मैसेज किया कि महंगाई से बड़ी तकलीफ है लेकिन उससे भी बड़ी तकलीफ है इसे लेकर न कह पाने की. ज़िक्र करते ही दोस्त, सहकर्मी और रिश्तेदार टूट पड़ते हैं कि मोदी विरोधी हो रहा है, जैसे दूसरी सरकार आएगी तो दाम कम कर देगी.