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कांग्रेस और ख़ासतौर पर राहुल गांधी को घेरने का सिलसिला यहीं नहीं रूका
शिवसेना के राज्य सभा सांसद संजय राउत ने दिल्ली में पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से और दूसरे दिन कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाक़ात कर कहा, "देश में विपक्ष का एक ही मोर्चा होना चाहिए तथा कांग्रेस के बिना कोई भी विपक्षी गठबंधन नहीं बन सकता."
दरअसल शिवसेना के इस बयान के पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुंबई दौरा था, जहां उन्होंने एनसीपी के मुखिया शरद पवार से मुलाक़ात की थी और यूपीए के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए थे. ममता बनर्जी ने कहा था, "क्या यूपीए? अब कोई यूपीए नहीं है? यूपीए क्या है? हम एक मजबूत विकल्प चाहते हैं. अपने इस बयान के जरिए ममता ने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा था.
कांग्रेस और ख़ासतौर पर राहुल गांधी को घेरने का सिलसिला यहीं नहीं रूका. इसके बाद प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा, "विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस का दैवीय अधिकार नहीं, 10 साल में 90% चुनाव में पार्टी को हार मिली है."
टीएमसी और ममता बनर्जी के इस रवैये से कांग्रेस आलाकमान को ज़्यादा दिक़्क़त नहीं हुई, बल्कि जब ममता बनर्जी यूपीए के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर रहीं थीं और साथ में शरद पवार खड़े हुए थे, इस बात पर कांग्रेस आलाकमान को बहुत नाराज़गी हुई और इस बात पर चर्चा भी हुई कि महाराष्ट्र और केन्द्र में यूपीए का हिस्सा रही एनसीपी इस बात का समर्थन कैसे कर सकती है.
इसके बाद जब संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई और सामना में यह लिखा गया कि कांग्रेस के बिना विपक्ष की कल्पना नहीं की जा सकती और वही बात संजय राऊत ने भी राहुल गांधी से मुलाक़ात के बाद मीडिया के सामने कही तो, यह बात राहुल गांधी को हैरान कर गई. पार्टी के भीतर चर्चा हुई कि यूपीए का हिस्सा रही एनसीपी चुपचाप तमाशा देखती रही है और दो साल पहले महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार बनाने वाली शिवसेना कांग्रेस के साथ खड़ी है. हालांकि, जब 2019 में महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की सरकार बनी, तो तब शायद कांग्रेस ने कभी नहीं सोचा था कि इस तरीक़े से शिवसेना गठबंधन का धर्म निभाएगी.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब मुंबई दौरे पर थीं. उस वक्त शरद पवार के साथ वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी मुलाक़ात करना चाहती थीं. उद्धव ठाकरे अस्पताल में थे, हांलाकि अगर उद्धव ठाकरे चाहते तो ममता बनर्जी से मुलाक़ात कर सकते थे लेकिन उन्होंने मिलना ठीक नहीं समझा. दरअसल शिवसेना और ठाकरे परिवार को अंदाज़ा था कि इस बैठक के क्या राजनैतिक मायने निकलने वाले हैं. इसीलिए उद्धव ठाकरे ने ममता बनर्जी से मुलाक़ात नहीं की.
कांग्रेस के भीतर एक बड़ा तबका इस बात को मानता है कि जब से ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल का चुनाव जीता और वह पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करने गईं, उसके बाद से ही उन्होंने विपक्षी एकजुटता के नाम पर जो मुहिम चलाई, उसमें सिर्फ़ कांग्रेस को कमज़ोर किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान और उससे पहले कैसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और गवर्नर जगदीप धनखड के बीच राजनैतिक विवाद समाप्त हो गया, कैसे अब केन्द्र सरकार की एजेंसियों ने अभिषेक बैनर्जी की जांच बंद कर दी, कैसे सिर्फ़ एक ही ममता बनर्जी की सीट पर उपचुनाव हुआ और टीएमसी सिर्फ़ कांग्रेस में सेंध लगाना चाहती है. फिर चाहे वो मेघालय के 12 विधायकों को तोड़ना हो या फिर सुष्मिता देव, अशोक तंवर या फिर कीर्ति आज़ाद को टीएमसी में शामिल करना. इन तमाम उठापटक के बीच शिवसेना ने ज़रूर कांग्रेस आलाकमान को हैरान कर दिया और अगर आगे चलकर शिवसेना यूपीए का हिस्सा बन जाए तो ज़्यादा हैरान मत होना. मेरा देश बदल रहा है तो राजनीति कैसे पीछे रह सकती है. वह भी बदलेगी.
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