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पहाड़ की चोटी पर बसा पाकिस्तान का सबसे आलीशान महल का नाम है बनी गाला स्टेट
प्रवीण कुमार।
पहाड़ की चोटी पर बसा पाकिस्तान (Pakistan) का सबसे आलीशान महल का नाम है बनी गाला स्टेट. इसी महल से इमरान खान (Imran Khan) ने पाकिस्तानी अवाम को हसीन सपने दिखाए थे कि वो आएंगे तो साथ में नया पाकिस्तान लाएंगे. लेकिन इमरान के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों में पाकिस्तान गरीबी से कंगाली में डूब गया. पाकिस्तान की संसद (Parliament of Pakistan) में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, हर पाकिस्तानी पर 1 लाख 75 हजार रुपये से अधिक का कर्ज है. पिछले 2 साल में हर पाकिस्तानी पर 54 हजार रुपए यानि 46 फीसदी कर्ज बढ़ गया है.
बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक मोर्चे पर फेल इमरान अभी भी अवाम को कश्मीरी राग सुनाकर बहकाने में लगे हैं, लेकिन अब लोग इमरान के जुमलों को पहचान चुके हैं. इमरान चारों तरफ से घिर चुके हैं और विपक्ष एकजुट हो चुका है इमरान की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए. आने वाले 10 दिन पाकिस्तान और इमरान के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है.
बड़े राजनीतिक संकट की तरफ बढ़ रहा पाकिस्तान
इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और तख्तापलट की आशंका के बीच पाकिस्तान एक बार फिर बड़े राजनीतिक संकट की तरफ बढ़ रहा है. अपने अस्तित्व में आने के बाद पाकिस्तान पहली बार बड़े बिखराव के इतना करीब पहुंच रहा है. बिलावल भुट्टो और नवाज शरीफ की पार्टी ने संयुक्त रूप से पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) गठबंधन बनाकर इमरान की सत्ता के खिलाफ 'युद्ध' की घोषणा कर दी है. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने इमरान खान को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है. बिलावल ने कहा है कि इमरान इस्तीफा दें नहीं तो अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता से बेदखल होने के लिए तैयार रहें.
इसके साथ ही पीडीएम ने इमरान सरकार के खिलाफ नेशनल असेंबली सेक्रेटेरिएट में अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर दिया है. कहने का मतलब यह कि पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान गंभीर राजनीतिक संकट से जूझ रहे हैं. एक तरफ महंगाई और बेरोजगारी के मोर्चे पर उनकी नाकामी ने आवाम के लोगों को बेहद निराश किया है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मुल्क की प्रतिष्ठा लगातार दरक रही है. ऊपर से विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव. किसी ने सच ही कहा है- कोई भी देश लंबे वक्त तक वह अपने हुक्मरानों के खोखले नारों पर भरोसा नहीं करता है.
अविश्वास प्रस्ताव से बौखला गए हैं इमरान
पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के अविश्वास प्रस्ताव से बौखलाए इमरान खान अपने राजनीतिक विरोधियों को गाली देने शुरू कर दिये हैं. अपने संबोधन में विपक्षी नेताओं मौलाना फजलुर रहमान के लिए फजलू डीजल, आसिफ अली जरदारी के लिए सिनेमा टिकट ब्लैकर, नवाज शरीफ के लिए भगोड़ा अपराधी, शहबाज शरीफ के लिए बेहद अपमानजनक 'जनरलों का बूट पॉलिशर' शब्दों का प्रयोग कर इमरान अपनी रही-सही इज्जत को मिटाने में लग गए हैं. देश में आर्थिक संकट के लिए इमरान को दोषी ठहराते हुए विपक्ष ने आरोप लगाया है कि आम आदमी महंगाई की सुनामी में डूबता जा रहा है.
इमरान सरकार ने कर्ज के लिए भीख मांगी, जो पहले कभी हासिल किए गए कर्ज से तीन गुना अधिक है. आर्थिक विश्लेषकों की मानें तो इमरान की पीटीआई जब सत्ता में आई थी, तब उसने पिछली सरकारों पर देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर देने का आरोप लगाया था. तब आवाम ने उनकी बातों पर यकीन भी किया, क्योंकि 2017-18 में चालू खाते का घाटा 19 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका था. लेकिन अब पीटीआई के चार साल के शासन काल के बाद ये रिकॉर्ड 20 बिलियन डॉलर को छूने वाला है. चालू खाते का घाटा 20 बिलियन डॉलर तक जाने का मतलब यह होगा कि इस वित्त वर्ष में ये घाटा देश की जीडीपी के 6 फीसदी के बराबर हो जाएगा.
चौतरफा संकट से घिर गए हैं वजीर-ए-आजम
पाकिस्तान की फौजी हुक्मरान को भी अब यह अहसास होने लगा है कि एक खिलंदड़ क्रिकेटर को आवाम का वजीर-ए-आजम बनाने का प्रयोग पूरी तरह से फ्लॉप विफल रहा. आईएसआई प्रमुख को बदलने के बाद से आवाम की मिलिट्री लीडरशिप के साथ भी इमरान खान की पटरी नहीं बैठ रही है. ऊपर से उनके खिलाफ विपक्ष जिस तरह से गोलबंद होकर प्रहार कर रहा है, नियाजी इमरान के लिए यह बेहद नाजुक वक्त है. ऐसे में अब इमरान के सामने दो ही विकल्प रह जाता है, या तो वे आईएसआई और फौज के हाथों की कठपुतली बने रहें या फिर पद छोड़कर नया जनादेश हासिल करने की तैयारी करें.
हालांकि ये दोनों विकल्प जोखिम भरे हैं क्योंकि आईएसआई व फौज के हाथों की कठपुतली बने रहने से वे किसी तरह अपना कार्यकाल तो पूरा कर लेंगे लेकिन उनका राजनीतिक भविष्य और सियासी सफर एक अंधे कुएं में समा जाएगा. दूसरी ओर विधानसभा भंग कर चुनाव की तरफ बढ़ना और भी कांटों भरा है. क्योंकि पाकिस्तान में जिस तरह से बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है, आर्थिक संकट जिस तरह से गहराया हुआ है, ऐसे में उनके लिए अपने दल को राजनीतिक वैतरणी पार कराना आसान नहीं होगा. अतरराष्ट्रीय फलक पर देखें तो अफगानिस्तान में तालिबान के समर्थन के बाद पाकिस्तान पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है.
पाकिस्तान सरकार और सेना तक की कलई खुल चुकी है. वह दुनिया से अलग-थलग पड़ चुका है. चीन के साथ उसकी दोस्ती भी काम नहीं आ रही है. आज की परिस्थिति में आर्थिक मोर्चे पर वह चीन से बहुत उम्मीद नहीं कर सकता है. उधर, तालिबान को खुले समर्थन के बाद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान से किनारा कर लिया है. अंतराष्ट्रीय फंडिंग करने वाली एजेंसियों पर भी दबाव है. कहने का मतलब यह कि इमरान के लिए मौजूदा वक्त का संकट 'आगे कुआं और पीछे खाई' जैसी हो गई है.
अवाम का भरोसा हासिल करना अब असंभव
इमरान खान की शख्सियत आत्ममुग्ध और सत्ताजीवी नेता के तौर पर पहचानी जाने लगी है. उनकी छवि एक गैर जिम्मेदार, बार-बार यू-टर्न लेने वाले और रंगीनमिजाज राजनेता की है. कहा जाता है कि बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इमरान अपने से अधिक क्षमतावान लोगों को आगे नहीं आने देते. शायद यही वजह रही कि वजीर-ए-आजम पद की शपथ लेने के बाद वे चुनाव से पहले जनता से किये गये एक भी वादे को पूरा नहीं कर सके. इतना ही नहीं, पाकिस्तानी अवाम की बात करें तो वह जनरल बाजवा और इमरान खान दोनों को एक ही चश्मे से देख रही है. दोनों की सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि से पाकिस्तान का आम अवाम भावनात्मक जुड़ाव महसूस नहीं करता है.
जनरल बाजवा अहमदिया समुदाय के हैं जो बहुसंख्यक आबादी में हाशिए पर रहने वाला समुदाय है. इसी तरह इमरान खान का खानदान नियाजी है और ढाका में पाकिस्तानी सेना ने जनरल नियाजी के नेतृत्व में ही भारत के सामने हथियार डाले थे. इस समर्पण के बाद नियाजियों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा था. लाखों नियाजियों ने अपनी जाति लिखनी ही छोड़ दी थी. इस तरह दोनों शिखर पुरुष मुल्क में शासन तो कर रहे हैं लेकिन बहुमत वाली अवाम का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
नई सुरक्षा नीति का भी संकट से है कनेक्शन
प्रवीण कुमार।
याद हो तो साल 2022 की शुरूआत में इमरान खान ने नई सुरक्षा नीति का मुद्दा उछाला था. दिसंबर 2021 में इस नीति को पाक कैबिनेट की मंजूरी दी गई थी. खास बात यह थी कि इसमें भारतीय जनता पार्टी और जम्मू कश्मीर का विशेष तौर पर जिक्र किया गया था. तो क्या ये माना जा सकता है कि पाकिस्तान में आज जो कुछ हो रहा है उसकी भनक इमरान खान को तभी लग गई थी लिहाजा उन्होंने नई सुरक्षा नीति का ऐलान कर मुद्दों को भटकाने की कोशिश की थी जो पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सकी?
दरअसल, नई सुरक्षा नीति में इस बात का उल्लेख किया गया था कि भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली भारत सरकार पाकिस्तान का इस्तेमाल घरेलू राजनीति में कर रही है. भारत की सरकार अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए पाकिस्तान के साथ रिश्तों के मुद्दे का राजनीति में इस्तेमाल करती है. इतना ही नहीं पाकिस्तानी अफसरानों ने इस नीति को जारी करते हुए भारत को इस बात के लिए आगाह भी किया था कि अगर नई दिल्ली के साथ पाकिस्तान के रिश्ते नहीं सुधरे तो सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही होगा. असल में जम्मू कश्मीर और भाजपा का नाम लेकर इमरान सरकार अपनी जनता का ध्यान बेरोजगारी और मंहगाई के मुद्दों से हटाना चाहती थी. इमरान जानते हैं कि भारत के खिलाफ बात करने से पाकिस्तान की जनता की भावनाओं से खेलना आसान हो जाता है. तो कुल मिलाकर पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का मकसद देश की आंतरिक राजनीति से और इमरान का अपना सत्ता हित जुड़ा था जिसको कामयाब बनाने में वह पूरी तरह से विफल रहे.
बहरहाल, पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान ने अटार्नी जनरल से मुलाकात कर विपक्ष द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर कानूनी राय मांगी है. विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव से घबराई पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी इमरान सरकार को बचाने की सारी जुगत भिड़ा रही है. कहने को तो इमरान कह रहे हैं कि फौज उनके साथ है, लेकिन कब तक? ये बड़ा सवाल है. पाकिस्तान नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें है. सरकार बनाने के लिए 177 सीटों की जरूरत होती है. इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के पास अभी 156 सीट हैं. सहयोगी दलों को मिलाकर इमरान गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. लेकिन इमरान के सहयोगी दलों को लेकर विपक्ष का दावा अगर सही निकला तो इमरान खान की कुर्सी को कई नहीं बचा सकता है. पाकिस्तान में अगले साल आम चुनाव प्रस्तावित है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)
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