सम्पादकीय

विधानसभा चुनावों के पहले हिजाब के मसले को राष्ट्रीय विवाद बनाने की साजिश के पीछे किसका हाथ था?

Gulabi Jagat
25 March 2022 8:34 AM GMT
विधानसभा चुनावों के पहले हिजाब के मसले को राष्ट्रीय विवाद बनाने की साजिश के पीछे किसका हाथ था?
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हिजाब मामले में फैसला देने वाले हाईकोर्ट जजों को धमकी मिलने के बाद सरकार ने उन्हें वाय कैटेगरी की विशेष सुरक्षा दी थी

विराग गुप्ता का कॉलम:

हिजाब मामले में फैसला देने वाले हाईकोर्ट जजों को धमकी मिलने के बाद सरकार ने उन्हें वाय कैटेगरी की विशेष सुरक्षा दी थी। धमकी देने वाले दो लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। लेकिन हिजाब की आड़ में सोशल मीडिया में अफवाह फैला रही बहुत सारी फेक न्यूज़-वीडियोज के प्रसार को रोकना अदालत और सरकार दोनों के लिए टेढ़ी खीर है। एक पुराने फैसले के आधार पर फेक न्यूज़ वायरल हो रही है, जिसमें बम्बई हाईकोर्ट के जज द्वारा हिजाब के हक में फैसले को सराहा जा रहा है। दूसरे फेक वीडियो में हिजाब की कथित पीआईएल पर डांट लगाते चीफ जस्टिस वकील पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दे रहे हैं। चुनावों के पहले इस मसले को राष्ट्रीय विवाद बनाने के पीछे मजहबी ताकतों के अलावा, सियासतदानों और सोशल मीडिया का बड़ा योगदान था। तीन जजों की बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि जिस तरीके से इस मामले ने देश-विदेश में तूल पकड़ा, उससे लगता है कि शांति और भाईचारे को नुकसान पहुंचाने के खेल के पीछे बड़ी ताकतें शामिल हो सकती हैं। हाईकोर्ट के फैसले के आखिरी पन्नों में एक पीआईएल के हवाले से चार कट्टरपंथी संगठनों का नाम भी दिया हुआ है। हाईकोर्ट ने यह फैसला कुछेक लड़कियों से जुड़ी सात रिट पिटीशन में सुनवाई के बाद दिया। लेकिन इस बारे में दायर पीआईएल यानी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई से जजों ने इंकार कर दिया था। इसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट के सामने फाइल की गई अपील सार्वजनिक हित के बजाय व्यक्तिगत अधिकारों के बारे में सीमित है। लेकिन सोशल मीडिया में गर्मी बढ़ने के साथ अनेक लोग सीधे सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर कर रहे हैं।
यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल फाइल कर दिया और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड भी पीआईएल की तैयारी में है। नियम के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सम्बंधित पक्षकार ही सुप्रीम कोर्ट में विशेष अवकाश याचिका (एसएलपी) दायर कर सकते हैं। अपील के पुराने मामलों के साथ यदि पीआईएल के नए मामलों को जोड़ा गया तो मामले का दायरा बढ़ जाएगा, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट की विशेष अनुमति जरूरी है।
हिजाब मामले में समानता (अनुच्छेद 14), अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 19) और प्राइवेसी (अनुच्छेद 21) के साथ धार्मिक आस्था और अधिकारों (अनुच्छेद 25-26) के संवैधानिक बिंदुओं पर मामले को आगे बढ़ाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। तीन तलाक, गुजारा भत्ता देने का कानून और वायुसेना में गैर सिखों को दाढ़ी बढ़ाने के अधिकार के बारे में अनेक फैसलों से अदालतों ने धर्म के ऊपर समानता और संविधान को वरीयता दी।
इसलिए पुराने फैसलों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले का जल्द फैसला हो सकता है। सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के मामले में कई राउंड की सुनवाई के बाद अब 9 जजों की बेंच को फैसला करना है। लेकिन तीन साल पुराने फैसले के बावजूद अभी तक बेंच का गठन नहीं हुआ। हिजाब मामले में भी नई पीआईएल याचिकाओं पर यदि लंबी-चौड़ी बहस यानी बौद्धिक विलास की इजाजत दी गई तो इससे फैसले में विलम्ब के साथ ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। सोशल मीडिया में फैल रहे फेक समाचारों और कानूनी बारीकियों के चक्कर में गए बिना फैसले की दो अहम बातों को समझना जरूरी है।
पहला यह फैसला कर्नाटक के सिर्फ उन्ही स्कूलों के भीतर लागू होगा, जहां पर ड्रेस कोड का नियम बनाया गया है। दूसरा मुस्लिम बच्चों के साथ हिंदू छात्र भी भगवा शाल जैसे धार्मिक प्रतीक धारण नहीं कर सकते। डॉ. आंबेडकर ने सभी धर्मों की महिलाओं के लिए परदे से मुक्ति की बात कही थी। शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है और शिक्षित करना समाज और सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी।
इसलिए तालीम के ऊपर लड़कियों को हिजाब चुनने के लिए प्रेरित करना प्रतिगामी है। अनेक विद्वानों और याचिकाकर्ताओं के अनुसार हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है। इस तर्क को सही मानें तो बाजार, ऑफिस, मेट्रो, अस्पताल, स्कूल और काॅलेजों में हिजाब के बगैर दिख रही करोड़ों लड़कियां और महिलाएं क्या इस्लाम के दायरे से बाहर मानी जाएंगी? सत्तारूढ़ दल के नेताओं को भी हिजाब मामले पर संयत और समावेशी रुख अपनाकर समान नागरिक संहिता के प्रति आम सहमति पैदा करनी चाहिए, जिससे 21वीं सदी में मध्यकालीन मुद्दों पर विवादों से बचा जा सके।
हाईकोर्ट का फैसला तथ्य, तर्क और कानून तीनों ही कसौटियों पर साफ है। फिर भी हिजाब को अनिवार्य बनाने के नाम पर अगर सियासी ध्रुवीकरण की कोशिश हुई तो यह संवैधानिक उसूलों के खिलाफ होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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