सम्पादकीय

कौन चाहता है तानाशाह?

Subhi
6 March 2022 3:48 AM GMT
कौन चाहता है तानाशाह?
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अमेरिका में कहावत है कि ‘वेन द गोइंग गेट्स टफ, द टफ गेट गोइंग’ यानी ‘जब हालात मुश्किल भरे हों तो मुश्किलों में ही जीना है’। मैं हमेशा यह सोचता रहा हूं कि आखिर यह ‘मुश्किल या मजबूत (टफ)’ होता क्या है।

पी. चिदंबरम: अमेरिका में कहावत है कि 'वेन द गोइंग गेट्स टफ, द टफ गेट गोइंग' यानी 'जब हालात मुश्किल भरे हों तो मुश्किलों में ही जीना है'। मैं हमेशा यह सोचता रहा हूं कि आखिर यह 'मुश्किल या मजबूत (टफ)' होता क्या है। अलग-अलग संदर्भों में इस शब्द के मतलब भी अलग हैं। 'टफ' से अभिप्राय प्रतिबद्धता से हो सकता है, कठिनाइयों को सहने, संकटों में भी टिके रहने (जैसा कि मुश्किल खेलों में होता है) की क्षमता या हठधर्मिता (किसी भी स्थिति से निकलना)। टफ का एक मतलब धौंस-धपट्टी करने वाले, अशांत या हिंसक व्यक्ति से भी है।

आमतौर पर लोकतांत्रिक रूप से चुना गया नेता, जो लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद उसे छोड़ने से नफरत करने लगता है, बाद में 'कठोर' बन जाता है। हिटलर मेरे जन्म से पहले था। बड़ा हुआ तो जवाहरलाल नेहरू के करीबी दोस्तों को उदार से तानाशाह बनते देख कर बड़ा निराश हुआ। इनमें क्वामे नूरुमाह, जोसेफ टीटो, गमाल अब्देल नासेर और सुकर्णो थे। इनमें से हरेक ने अपने देश में आजादी के लिए आंदोलन चलाया था, अच्छी जीत हासिल की, लोगों से प्रशंसा मिली, लेकिन अंत में 'तानाशाह' बन गए और अपनी विरासत तथा लोकतंत्र को दफ्न कर डाला।

पंचशील के सिद्धांतों पर हस्ताक्षर करने वाले पांच नेताओं में जवाहरलाल नेहरू अकेले अपवाद थे। उनके प्रधानमंत्रित्व में 1952, 1957 और 1962 में सही मायनों में लोकतांत्रिक चुनाव हुए थे। उनके चुनावी भाषण लोकतंत्र के अध्याय थे। भारी-भरकम भीड़ अंग्रेजी नहीं समझती थी, लेकिन उसे यह पता होता था कि वे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, एक राष्ट्र निर्माण के मुश्किल काम, गरीबी खत्म करने, सरकार की भूमिका आदि के बारे में बात कर रहे हैं। नेहरू सबके पसंदीदा नेता थे, वे कभी 'तानाशाह' नहीं बने।

वर्तमान विश्व तानाशाह नेताओं से भरा पड़ा है। अगर आज स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए होते, तो इनमें से कोई नहीं जीत पाता। मशहूर तानाशाहों में ब्राजील के जाएर बोलसोनारो, तुर्की के रेसेप एर्दोआन, मिस्र के अब्दुल अल-सिसि, हंगरी के विक्टर ओरबान, बेलारूस के एलेक्जेंडर लुकाशेन्को, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और ऐसे ही दर्जनों नेता हैं, जिन्हें उनके देश या महाद्वीप के बाहर कोई जानता भी नहीं है। पुतिन अपने में एक हैं। ऐसे ही शी जिनपिंग हैं। दोनों ही ह्यतानाशाहह्ण हैं, जो जब तक जिंदा हैं तब तक राज करना चाहते हैं। जैसा कि मैंने लिखा है, तानाशाह रूसी नेता असहाय यूक्रेन पर राकेट और बम बरसा रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार बावन देशों की सरकारों को तानाशाह सरकार कहा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने 'सख्त' नेताओं को चुने जाने की जरूरत बताई। बहराइच में एक रैली में मोदी ने कहा- जब दुनिया में अशांति फैली हुई है, तो भारत को मजबूत बनाने की जरूरत है और मुश्किल हालात के लिए भारत को कठोर नेता चाहिए (इकोनोमिक टाइम्स 23 फरवरी, 2022)। संयोगवश, बहराइच उत्तर प्रदेश के उन जिलों में से है, जहां नीति आयोग के अनुसार गरीबी अनुपात सत्तर फीसद से ज्यादा है।

मोदी स्पष्ट रूप से चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेता आदित्यनाथ दोबारा चुने जाएं, क्योंकि वही एक 'सख्त' नेता हैं, जिनकी इस 'मुश्किल' हालात में जरूरत है। आदित्यनाथ कानून और व्यवस्था लागू करने और विपक्ष को बर्दाश्त न करने में यकीन रखते हैं। 'मुठभेड़ों' पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध है। किसी भी अपराधी को कानून की अदालत के सामने लाने की जरूरत नहीं है, उसे 'मुठभेड़' में ढेर किया जा सकता है। द इंडियन एक्सप्रेस (13 जुलाई, 2021) की एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2017 से जून 2021 के बीच पुलिस मुठभेड़ में एक सौ उनतालीस अपराधी मारे गए और तीन हजार एक सौ छियानवे जख्मी हुए।

आदित्यनाथ का एक पसंदीदा शब्द है- 'बुलडोजर'। 27 फरवरी, 2022 को सुलतानपुर जिले के करका बाजार में एक रैली को संबोधित करते हुए आदित्यनाथ ने कहा था- 'हमने यह एक ऐसी मशीन बनाई है, जो एक्सप्रेस हाईवे बनाती है और माफियाओं और अपराधियों से भी निपटती है। मेरा मानना है कि पांच विधानसभाएं हैं और हम हरेक में एक भेजेंगे ,तब सब ठीक हो जाएगा' (इंडिया टुडे)। उत्तर प्रदेश में किसी इमारत को गिराने या लोगों से खाली करवाने (जो अवैध है) के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल के लिए अदालती आदेशों और किसी भी प्रकार की न्यायिक प्रक्रिया पूरी करने की जरूरत नहीं है।

आदित्यनाथ इतने बेरहम हैं कि पत्रकार सिद्दीक कप्पन 5 अक्तूबर, 2020 से जेल में बंद हैं। कप्पन हाथरस बलात्कार और हत्याकांड की खबर करने उत्तर प्रदेश गए थे। द वायर के अनुसार, जबसे आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं, प्रदेश में बारह पत्रकार मारे गए हैं, अड़तालीस पर हमला हुआ है और छियासठ पत्रकारों को अलग-अलग मामलों में आरोपित या गिरफ्तार किया गया है। ऐसे सख्त मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी को इस बात के लिए राजी कर लिया है कि चार सौ तीन विधानसभा सीटों में से किसी पर भी मुसलिम को टिकट नहीं देना है, जबकि प्रदेश में मुसलिम आबादी प्रदेश की कुल आबादी का बीस फीसद है।

सख्त नेता के राज में उत्तर प्रदेश गरीब है, लोग और गरीब हो गए हैं और पिछले पांच साल में राज्य में कर्ज का बोझ चालीस फीसद और बढ़ गया है, जो छह लाख बासठ हजार आठ सौ इनक्यानवे करोड़ रुपए की भारी-भरकम रकम तक जा पहुंचा है।

मेरा मानना है कि विनम्र नेता सबसे अच्छे होते हैं। वे समझदार होते हैं, विनम्रता से बोलते हैं, लोगों की बात सुनते हैं, संस्थाओं और कानून का सम्मान करते हैं, अनेकता का आनंद लेते हैं, लोगों के बीच सद्भाव के लिए काम करते हैं और चुपचाप पद छोड़ देते हैं। वे लोगों के जीवन को बेहतर बनाते हैं। वे रोजगार, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध करवाते हैं। वे युद्ध के खिलाफ हैं और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपट रहे हैं। दुनिया में ऐसे कई नेता हुए हैं और हैं। नेलसन मंडेला ऐसे ही एक अतुलनीय नेता हैं। दूसरे उदाहरण देखें तो जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल, न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डेन, नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रुट और ऐसे कुछ और भी हैं।


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