- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- किसका विरोध, क्या जनता...
सर्वोच्च न्यायालय ने जन-प्रदर्शनों के बारे में जो ताज़ा फैसला किया है, उससे उन याचिकाकर्ताओं को निराशा जरूर हुई होगी, जो विरोध-प्रदर्शन के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। यदि किसी राज्य में जनता को विरोध-प्रदर्शन का अधिकार न हो तो वह लोकतंत्र हो ही नहीं सकता। विपक्ष या विरोध तो लोकतंत्र की मोटरकार में ब्रेक की तरह होता है। विरोधरहित लोकतंत्र तो बिना ब्रेक की गाड़ी बन जाता है। अदालत ने विरोध-प्रदर्शन, धरने, अनशन, जुलूस आदि को भारतीय नागरिकों का मूलभूत अधिकार माना है लेकिन उसने यह भी साफ़-साफ़ कहा है कि उक्त सभी कार्यों से जनता को लंबे समय तक असुविधा होती है तो उन्हें रोकना सरकार का अधिकार है। अदालत की यह बात एकदम सही है, क्योंकि आम जनता का कोई हुक्का-पानी बंद कर दे तो यह भी उसके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। यह सरकार का नहीं, जनता का विरोध है। प्रदर्शनकारी तो सीमित संख्या में होते हैं लेकिन उनके धरनों से असंख्य लोगों की स्वतंत्रता बाधित हो जाती है।