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- सिद्धू के बाद अब कौन?
एक पुरानी कहावत है-'हाथी पर बैठने के बावजूद कुछ काट लेता है।' कांग्रेस के संदर्भ में यह कहावत सटीक है। हाथी और काटना प्रतीकात्मक हैं। कमोबेश पंजाब के संदर्भ में आसानी से समझा जा सकता है। बीती 28 सितंबर का दिन कांग्रेस आलाकमान के प्रति बग़ावत, उसे चुनौती देने का दिन था अथवा गौरव और उल्लास का दिन था! उल्लास का एहसास इसलिए माना जा सकता है, क्योंकि 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' के छात्र नेता रहे कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हुए और गुजरात की वडगाम सीट से निर्दलीय विधायक एवं अंबेडकरवादी चेहरा जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस के साथ राजनीति करने की घोषणा की। वह अभी औपचारिक कांग्रेसी नहीं बने हैं। शायद उन्हें बाबा अंबेडकर की नसीहत याद नहीं रही कि कांग्रेस से जुड़ना या उसमें शामिल होना 'आत्मघाती' है। कन्हैया ने लगभग आधा दर्जन बार दोहराया कि वह कांग्रेस के जहाज को बचाने पार्टी में शामिल हुए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी बगल में खड़े यह दावा सुनते रहे और तालियां भी बजाईं। ये दोनों नौजवान चेहरे कांग्रेस को कितना बचा पाएंगे या अपनी ही राजनीतिक वैतरणी पार करना चाहेंगे, यह तो वक्त ही तय करेगा। कांग्रेस के लिए सबसे विश्वासघाती और अस्थिर पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ही साबित हुए हैं। उन्होंने पार्टी आलाकमान को विश्वास में लेने और जानकारी देने के बजाय अपना इस्तीफा सोशल मीडिया के जरिए सार्वजनिक किया। सिद्धू बीती 18 जुलाई को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए थे और 28 सितंबर को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। यह अस्थिरता की पराकाष्ठा नहीं, तो और क्या है? इतने से अंतराल में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को बदला गया। नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी बनाए गए। नई कैबिनेट और नए नौकरशाह तय किए गए। पंजाब जैसे घोर संवेदनशील राज्य को नेतृत्व देने के दावे किए ही जा रहे थे कि सिद्धू ने आदतन सब कुछ ठोंक कर रख दिया। अंततः कैप्टन सही और सटीक साबित हुए। सिद्धू की फितरत ही अस्थिर है। अलबत्ता कोई ऐसे ठोस और वाजिब कारण नहीं थे कि सिद्धू को इस्तीफा देना पड़ा।
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