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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) अपने गुस्से के लिए विख्यात हैं
अजय झा ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) अपने गुस्से के लिए विख्यात हैं. शनिवार को दीदी का गुस्सा आख़िरकर फुट ही पड़ा और निशाने पर बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी (Congress Party) भी थी. अवसर था भवानीपुर विधानसभा उपचुनाव (Bhawanipur By poll Election) में दीदी का भाषण. ममता बनर्जी खुद भवानीपुर से चुनाव लड़ रही हैं ताकि उनकी कुर्सी पर कोई आंच ना आए. चुनाव प्राचर के आखिरी चरण में दीदी ने बीजेपी (BJP) और कांग्रेस, भारत की दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को आड़े हाथों लिया और दोनों पार्टियों पर देश के साथ धोखा करने का आरोप लगाया. दीदी ने कांग्रेस पार्टी पर डरपोक होने का आरोप लगाया और कहा कि जहां कांग्रेस पार्टी बीजेपी से डरती है, वह बीजेपी से टक्कर ले रही हैं.
बीजेपी पर उनका हमला समझा जा सकता है पर कांग्रेस पार्टी तो भवानीपुर से दीदी के समर्थन में अपना उम्मेदवार भी नहीं उतार रही है और वामदलों का साथ भी उसने छोड़ दिया है. तो फिर क्या वजह थी कि दीदी कांग्रेस पर बिफर गईं? इस पहेली को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा. अभी हाल ही में दीदी के भतीजे अभिषेक बनर्जी जो राज्यसभा सांसद हैं और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, का एक बयान आया था जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी की आलोचना की थी और ममता बनर्जी को बीजेपी का एकलौता विकल्प करार दिया था.
फिर तृणमूल कांग्रेस का अख़बार 'जागो बंगला' में एक सम्पादकीय लेख छपा, जिसमें कहा गया की तृणमूल कांग्रेस के बिना कांग्रेस पार्टी बीजेपी खिलाफ नहीं खड़ी हो सकती. कांग्रेस के युवराज को लेकर कहा गया कि अभी राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प नहीं बने हैं. मोदी का विकल्प सिर्फ ममता बनर्जी ही हैं.
ममता बनर्जी के नेतृत्व में TMC पूरे देश में प्रचार करेगी
बात यहीं ख़त्म नहीं हुई. तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा की कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी पूरे देश में प्रचार करेगी. इस संपादकीय लेख के छपने के ठीक बाद तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन गोवा पहुंचे, एक पर्यटक के रूप में घूमने नहीं बल्कि वहां तृणमूल कांग्रेस के लिए जमीन तलाश करने. गोवा विधानसभा का चुनाव अगले वर्ष मार्च में होना तय है. डेरेक ओ ब्रायन ने घोषणा की कि गोवा विधानसभा के सभी 40 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस चुनाव लड़ेगी और पार्टी जल्द ही अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा कर देगी. डेरेक ओ ब्रायन ने कांग्रेस पार्टी पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि तृणमूल कांग्रेस में आलाकमान कल्चर नहीं है और गोवा के लोग ही फैसला करेंगे कि उनका मुख्यमंत्री कौन होगा. इसका फैसला नयी दिल्ली से नहीं लिया जाएगा.
पंजाब छोड़कर हर राज्य में चुनाव लड़ेगी TMC?
गोवा से ख़बरें आ रही हैं कि कांग्रेस पार्टी के कुछ बड़े नेता जो पार्टी से नाराज़ हैं तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं. कांग्रेस पार्टी का एक पूर्व मुख्यमंत्री उनमें से एक है जिसके नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस चुनाव लड़ेगी. जिस पार्टी का अब तक गोवा में नामो निशान तक नहीं था, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह गोवा में चुनाव जीत जाएगी. तृणमूल कांग्रेस की योजना लग रही है कि कांग्रेस पार्टी में जो भी नेता बचे हैं, उन्हें शामिल कर के विधानसभा में अपना खाता खोल ले. कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर विधायक पिछले चुनाव के बाद बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की स्थिति नाज़ुक है.
गोवा एकलौता प्रदेश नहीं है जहां तृणमूल कांग्रेस चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. अगले वर्ष की शुरुआत में पांच प्रदेशों में चुनाव होने वाला है, तृणमूल कांग्रेस बिना कांग्रेस पार्टी से गठबंधन किए उत्तर प्रदेश, मणिपुर और गोवा में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है. सम्भव है कि पार्टी उत्तराखंड में भी चुनाव लडे़. सिर्फ पंजाब ही अभी तृणमूल कांग्रेस की राडार पर नहीं है. इसके पीछे तृणमूल कांग्रेस की योजना साफ़ दिख रही है. पार्टी नहीं चाहती की कांग्रेस पार्टी की शक्ति में वृद्धि हो. अगर कांग्रेस पार्टी और भी कमजोर हो गयी तो विपक्षी दलों के बीच तृणमूल कांग्रेस की हैसियत बढ़ जाएगी और ममता बनर्जी राहुल गांधी की जगह विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बन जाएंगी.
विपक्ष कांग्रेस को साथ लेकर चलना चाहता है उसके नेतृत्व में नहीं
योजना का दूसरा पहलू है कि आगामी लोकसभा चुनाव होने तक तृणमूल कांग्रेस को एक राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता मिल जाए.
इसी क्रम में हाल ही में एनसीपी के संस्थापक शरद पवार के उस बयान को भी जोड़ कर देखा जा सकता है जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी की तुलना उस जमींदार से कर दी थी जिसकी जमीन छिन गयी और सिर्फ एक जर्जर हवेली में बैठ कर वह बड़े सपने देख रहा है. मतलब साफ़ हो जाता है कि बड़े क्षेत्रीय दल कांग्रेस पार्टी के रुख से नाराज़ हैं. वह विपक्षी एकता के पक्ष में हैं और कांग्रेस पार्टी को साथ में ले कर चलना कहते हैं, ना कि कांग्रेस पार्टी की अगुआई में.
दरअसल कांग्रेस पार्टी की जल्दीबाजी उसे विपक्ष में अलग-थलग कर सकती है. मई महीने में पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने केंद्र में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का एक संयुक्त मोर्चा बनाने की बात की थी. उनके सलाहकार प्रशांत किशोर दो बार शरद पवार से मिले फिर शरद पवार के घर पर कुछ विपक्षी दलों की बैठक हुई जिसमे कांग्रेस पार्टी को आमंत्रित नहीं किया गया था. बाद में प्रशांत किशोर और पवार की सफाई आयी कि बिना कांग्रेस पार्टी के विपक्षी एकता की कल्पना भी नहीं की जा सकती तथा कांग्रेस पार्टी की प्रस्तावित मोर्चे में प्रमुख भूमिका रहेगी.
सोनिया गांधी का पुत्र मोह डूबो देगा कांग्रेस की लुटिया?
इसके कुछ समय पश्चात ममता बनर्जी दिल्ली आईं. सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कई विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं से मिलीं. दीदी की कोलकाता वापसी होते ही राहुल गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं को नाश्ते पर आमंत्रित किया, जहां राहुल गांधी ने बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो कर टक्कर लेने की बात की. ऐसा लगा मानो कांग्रेस पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस की योजना को हाईजैक कर लिया है, और पार्टी नहीं चाहती थी कि राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी संयुक्त विपक्ष की और से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बन जाएं. इसके कुछ दिनों बाद सोनिया गांधी ने भी विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये विपक्षी नेताओं की एक बैठक ली.
अब तक यह साफ़ हो चुका था कि भले ही राहुल गांधी को लगातार दो बार भारत की जनता ने प्रधानमंत्री पद के लिए नकार दिया हो, पर कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से उन्हें ही प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने पर अमादा है. सोनिया गांधी का सपना है कि उनका बेटा अपने पिता, दादी और परनाना की तरह प्रधानमंत्री बने, जो विपक्षी एकता में बाधा बनने वाला है.
बीजेपी इस विपक्षी एकता से क्यों विचलित नहीं हो रही है?
उस समय तो ममता बनर्जी चुप रहीं, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में भले ही भारी जीत हुई थी पर दीदी खुद चुनाव हार गयी थीं. नियमों के अनुसार उन्हें 6 महीनों के भीतर विधायक चुना जाना अनिवार्य था और कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बीच यह स्पष्ट नहीं था कि चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में उपचुनाव करवाएगा भी या नहीं. पर चुनाव आयोग ने 30 सितम्बर को उपचुनाव कराने की घोषणा की और इसकी सम्भावना बहुत कम है कि ममता बनर्जी एक बार फिर से चुनाव हार जाएं. अब जब दीदी को जीत का पूरा भरोसा है और उनकी कुर्सी सुरक्षित रहेगी तो उनका गुस्सा कांग्रेस पार्टी पर फूट ही गया. दीदी की अब यही तमन्ना दिख रही है कि बीजेपी से लोहा लेने से पहले कांग्रेस पार्टी को उसके घुटनों पर लाना जरूरी है.
गौरतलब है कि जहां विपक्षी एकता की बात चल रही थी, बीजेपी इससे विचलित बिल्कुल नहीं दिख रही थी. पार्टी को शायद भरोसा था कि सोनिया गांधी का पुत्रमोह विपक्षी एकता को सफल नहीं होने देगा. बीजेपी का भरोसा सही साबित होता दिख रहा है और ऐसा लगने लगा है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की ख्वाहिश में ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी डूबती जा रही है, बल्कि गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी 2024 में नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर से प्रधानमंत्री का पद थाली में परोस कर देने की तैयारी में लग गयी है.
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