सम्पादकीय

जो केजरीवाल कुरेद रहे

Rani Sahu
25 April 2022 7:17 PM GMT
जो केजरीवाल कुरेद रहे
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कांगड़ा की धरती पर चुनाव के बिगुल बज गए और अगले पांच साल के सफर पर राजनीति निकल पड़ी है

कांगड़ा की धरती पर चुनाव के बिगुल बज गए और अगले पांच साल के सफर पर राजनीति निकल पड़ी है। राजनीति के सुर नेताओं में सम्राट ढूंढे या नहीं, लेकिन यह तय है कि इस बार नेताओं का वजूद डोल रहा है। नई पीढ़ी का कदमताल और कार्यकर्ताओं का स्वाभिमान ऐसे मोड़ पर नए विकल्प को कितनी शक्ति प्रदान करता है, यह मुआयना नड्डा की नगरोटा और केजरीवाल की चंबी रैली का सबसे बड़ा निष्कर्ष हो सकता है। कांगड़ा पहुंच कर नड्डा की गंभीरता किसी लाव लश्कर के बजाय हिमाचल सरकार के प्रदर्शन को टटोल रही है, तो केजरीवाल की मुट्ठी भले ही मंडी में बंद दिखी, लेकिन कांगड़ा में आकर खुल गई और यहां कई तीर व कई निशाने जाहिर हुए हैं। एक दिन पहले नड्डा ने अपने सारे हथियार कांग्रेस की तरफ मोड़ कर हिमाचल के अधिकारों की बात की, लेकिन उनके निशाने पर जो 'आप' बच्चा दिखाई दे रही थी वह चंबी रैली में आकर यकायक मुख्य दुश्मन हो गई। यह इसलिए भी क्योंकि केजरीवाल ने न केवल सरकार के फैसलों में 'नकल' पकडऩे का एलान किया, बल्कि दोनों पार्टियों के नेताओं को बेपर्दा करने का साहस भी दिखाया।

यहीं से अगले पांच साल का गणित शुरू होता है और अगर आम आदमी पार्टी के साथ आम हिमाचली और आम कार्यकर्ता जुड़ता है, तो बड़े नेताओं पर कयामत आएगी। खोखले विजन, क्षेत्रवाद, परिवारवाद और सत्ता के प्रभाव में पलते रहे नेताओं की तरफ इशारा करते हुए केजरीवाल ने कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेताअ्रों की आफत बढ़ा दी है। इसी बीच भाजपा ने गंभीरता से अपने विधायकों से मंत्रियों तक के रिपोर्ट कार्ड को सूंघना शुरू किया है। केजरीवाल जितना कुरेदेंगे, उतनी ही मिकदार में हिमाचल अपने पारंपरिक नेताओं के प्रदर्शन पर शक करेगा। हर क्षेत्र सत्ता के फलक पर क्षेत्रवाद ढूंढेगा तो यह भी फैसला होगा कि भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने कितना खोट पैदा किया। इसमें दो राय नहीं कि भाजपा की अबकी सत्ताओं ने कांगड़ा को दरकिनार किया है और इसकी सजा अब स्थानीय नेता भुगतेंगे।
केंद्रीय विश्वविद्यालय, कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार, फोरलेन परियोजनाओं, बागबानी व कृषि परियोजनाओं, परिवहन सेवाओं, पर्यटन योजनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कांगड़ा के बड़े नेता जितने फिसड्डी साबित हुए उतने ही गुस्से की लहर इस बार कहर बरपाएगी। अब तक कांग्रेस और भाजपा की बार-बार अंगुली पकडऩे वाली जनता के सामने केजरीवाल 'आप' के विकल्प को सशक्त कर रहे हैं और कारवां आगे बढऩे से दरारें चीख उठेंगी। केजरीवाल का पहला ब्रह्मास्त्र दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं पर प्रहार करने वाला है। तीसरे विकल्प की भूमिका में रंगा चंबी का मैदान अपने सामने युवा, महिला व वर्षों से पिछलग्गू रहे कार्यकर्ताओं को देखता रहा है।
जाहिर है पीछे रह गए या ईमानदारी से आगे बढऩे वाले बुद्धिजीवियों के लिए केजरीवाल का कारवां कितना सही बैठता है, इसके ऊपर अधिकांश आंखें लगी हैं। आम आदमी पार्टी की रिहर्सल ही अगर चंबी का मैदान मार लेती है, तो यह सफर आगे चलकर नए चेहरों को अपना मुरीद बना लेगा। कांग्रेस और भाजपा की चिंता यह होनी चाहिए कि कल की पार्टी आज हिमाचल और हिमाचलियत को अपनी ओर खींच रही है। शहर से देहात तक की चर्चाओं में भाजपा से रूठे दिल और कांग्रेस के बिगड़े दिन अगर गिने जा रहे हैं, तो केजरीवाल का रेला सभी को दर्द देगा। देखना यही है कि धीरे-धीरे 'आप' बनाम भाजपा की चर्चा व बहस से कांग्रेस कितनी छिटक जाना पसंद करेगी। कम से कम 'आप' की दो रैलियों व रोड शो के बाद मूर्छित कांग्रेस के पास फिलहाल कोई संजीवनी नजर नहीं आ रही।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली


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