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- जो केजरीवाल कुरेद रहे

कांगड़ा की धरती पर चुनाव के बिगुल बज गए और अगले पांच साल के सफर पर राजनीति निकल पड़ी है। राजनीति के सुर नेताओं में सम्राट ढूंढे या नहीं, लेकिन यह तय है कि इस बार नेताओं का वजूद डोल रहा है। नई पीढ़ी का कदमताल और कार्यकर्ताओं का स्वाभिमान ऐसे मोड़ पर नए विकल्प को कितनी शक्ति प्रदान करता है, यह मुआयना नड्डा की नगरोटा और केजरीवाल की चंबी रैली का सबसे बड़ा निष्कर्ष हो सकता है। कांगड़ा पहुंच कर नड्डा की गंभीरता किसी लाव लश्कर के बजाय हिमाचल सरकार के प्रदर्शन को टटोल रही है, तो केजरीवाल की मुट्ठी भले ही मंडी में बंद दिखी, लेकिन कांगड़ा में आकर खुल गई और यहां कई तीर व कई निशाने जाहिर हुए हैं। एक दिन पहले नड्डा ने अपने सारे हथियार कांग्रेस की तरफ मोड़ कर हिमाचल के अधिकारों की बात की, लेकिन उनके निशाने पर जो 'आप' बच्चा दिखाई दे रही थी वह चंबी रैली में आकर यकायक मुख्य दुश्मन हो गई। यह इसलिए भी क्योंकि केजरीवाल ने न केवल सरकार के फैसलों में 'नकल' पकडऩे का एलान किया, बल्कि दोनों पार्टियों के नेताओं को बेपर्दा करने का साहस भी दिखाया।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली
