सम्पादकीय

अपमान का कौन दोषी?

Triveni
13 July 2021 3:30 AM GMT
अपमान का कौन दोषी?
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भारत के लिए गहरे अपमान की बात है।

भारत के लिए गहरे अपमान की बात है। इतना ही नहीं, बल्कि इसके साथ भारत का आर्थिक भविष्य भी जुड़ा है। सभ्य और स्थिर देश ऐसा व्यवहार नहीं करते, जिससे विदेशों में किसी को उनकी संपत्ति जब्त करने की नौबत आए। लेकिन ब्रिटिश कंपनी केर्न की याचिका पर ने फ्रांस एक अदालत ऐसा आदेश करने का आदेश दिया, तो समझा जा सकता है कि आज भारत की छवि दुनिया में कैसी बन गई है? कहा जा सकता है कि इस समस्या के लिए मूल रूप से नरेंद्र मोदी सरकार दोषी नहीं है। इसका दोष पिछली यूपीए सरकार पर जाता है, जिसने बीती तारीख से टैक्स के नियमों में फेरबदल करने का दुस्साहस दिखाया था। आज जो भारत की आर्थिक दुर्दशा है, उसमें यूपीए सरकार के उस अविवेकी फैसले का भी बड़ा योगदान है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के पास उस गलती को सुधारने का मौका था। वह उन कंपनियों से कोर्ट के बाहर समझौता कर सकते मामला निपटा सकती थी। इसमें कुछ आर्थिक नुकसान होता, लेकिन उससे कई गुना अधिक महत्त्वपूर्ण देश की छवि और साख बच जाती।

लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नतीजा है कि फ्रांस के एक ट्रिब्यूनल ने पेरिस में स्थित भारत सरकार की करीब 20 संपत्तियों को फ्रीज करने का आदेश दिया। इन संपत्तियों का कुल मूल्य दो करोड़ यूरो से भी ज्यादा है। केर्न कंपनी का कहना है कि ये इन संपत्तियों का मालिकाना हक लेने की दिशा में एक आवश्यक कदम है। यह कदम यह भी सुनिश्चित करता है कि अगर इन संपत्तियों को बेचा जाता है, तो उससे होने वाली कमाई केर्न को ही मिलेगी। केर्न कंपनी ने भारत सरकार के खिलाफ इस तरह के और मामले अमेरिका, ब्रिटेन, नेदरलैंड्स, सिंगापुर और क्यूबेक में भी दर्ज कराए हुए हैं। जाहिर है, अब पेरिस के फैसले को वो वहां मिसाल के तौर पर पेश करेगी। गौरतलब है कि भारत में तेल और गैस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी केर्न को दिसंबर में हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने इस मामले में 1.2 अरब डॉलर से भी ज्यादा के हर्जाने का हकदार घोषित किया था। यह निर्णय कंपनी और भारत सरकार के बीच बीती तारीख से लगाए गए कुछ टैक्स दावों पर चली एक लंबी लड़ाई का नतीजा था। कंपनी के मुताबिक अब भारत सरकार का उस पर कुल 1.7 अरब डॉलर बकाया है।


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