सम्पादकीय

इमारत ढहने के लिए जिम्मेदार कौन?

Rani Sahu
6 Oct 2021 7:06 PM GMT
इमारत ढहने के लिए जिम्मेदार कौन?
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किसी भी देश में भवन निर्माण नियम इस उद्देश्य के साथ बनाए जाते हैं

किसी भी देश में भवन निर्माण नियम इस उद्देश्य के साथ बनाए जाते हैं, जिससे जन स्वास्थ्य, जीवन रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। भवन निर्माण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि भूमि भवन निर्माण के लिए उपयुक्त है अथवा नहीं। जिस शहर में भवन निर्माण हो रहा है, वह शहर आपदाओं की दृष्टि से भवन निर्माण के लिए कितना उपयुक्त है। किसी भी राज्य में विधायिकाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के पास यह शक्तियां निहित होती हैं कि भवन निर्माण के समय यह देखे कि कहीं नियमों की अवहेलना तो नहीं हो रही है। नियमों की इन अवधारणाओं का वर्णन इंडियन म्यूनिसिपल लेजिसलेशन में किया गया है जिसमें से बहुत कुछ ब्रिटिश म्यूनिसिपल लैजिसलेशन पर आधारित है। आधुनिक समय में केंद्रीय सरकार भवन निर्माण के नियम तथा नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश जारी करती है और राज्य सरकार से आशा की जाती है कि अपने राज्य में इन बिल्डिंग कोड्स की अनुपालना करवाने का ध्यान रखे। राज्य सरकारों के म्यूनिसिपल एक्ट के अनुसार स्थानीय सरकारी निकाय अपने-अपने क्षेत्र में इस कार्य को करने के लिए स्वीकृति और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार हंै। इसके साथ-साथ नगर पालिका, नगर विकास प्राधिकरण और टाउन एंड प्लांनिंग डिपार्टमैंट इन नियमों की अनुपालना का ध्यान रखते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों के लिए जितने भी नियम बनाए गए हैं, वे नेशनल बिल्डिंग कोड, देहली मास्टर प्लान और आईएस कोड से संबंधित हैं। यदि हम बडे़-बडे़ पहाड़ी नगरों की बात करें तो इसमें शिमला का नाम सबसे पहले आता है, जो कि समुद्र तल से लगभग 2130 मीटर की ऊंचाई पर है और कोलोनियल आर्किटैक्चर का सर्वोत्तम उदाहरण है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार शिमला नगर की जनसंख्या लगभग 2 लाख थी। शिमला एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2001 में जहां शिमला में टूरिस्ट की संख्या 1167605 थी, वहीं 2021 में 3204767 होने की संभावना है। पिछले कुछ वर्षों से शिमला अपने ऊपर विकास के लिए अत्यधिक दबाव झेले हुए है।

अपनी बाधित स्थलाकृति, ढलान आकारिक भौगोलिक स्थिति के कारण शिमला के हर स्थान पर भवन निर्माण सुरक्षित नहीं है। इसके साथ-साथ वर्तमान में शिमला अन्य समस्याओं से भी घिरा है जैसे नदी-नालों में प्रदूषण, नगरीकरण से भीड़ व तंग रोड से दुर्घटनाएं आम बात हो गई है। शिमला के लिए कोई भी नोटिफाईड विकासात्मक योजना नहीं है, लेकिन हर वर्ग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विकास पूरा हो रहा है और वह भी पुराने नियमों पर आधारित है, जो कि नेशनल बिल्डिंग कोड और देहली मास्टर प्लान पर आधारित है। यह अपने आप में ही विचारणीय विषय है कि देहली मास्टर प्लान शिमला जैसे पहाड़ी राज्य में कैसे संभव है। शिमला को खतरे के कगार पर लाने और इसकी खूबसूरती को बिगाड़ने में यहां के पुराने जर्जर भवनों ने भी कमी नहीं रखी जिसके लिए एडवर्स पोजैशन नियम भी जिम्मेदार है। गौरतलब है कि एक मकान मालिक अपने लिए भवन निर्माण करता है, कुछ वर्षों के बाद किराएदार मकान पर अपने मालिकाना हक के लिए कोर्ट चला जाता है। कोर्ट ऐसे केसिज की सुनवाई भी क्यों करता है, कोई किसी की बनाई संपत्ति पर कब्जा कैसे कर सकता है? आज भी शिमला में लिमिटेशन एक्ट 1963 के अंतर्गत एडवर्स पोजैशन नियम ही लागू है, जिसका फायदा पुराने किराएदार उठाते हैं और इसकी वजह से आधा शिमला जीर्ण-शीर्ण अवस्था में नजर आता है। अभी हाल ही में शिमला में सात मंजिला इमारत ढह गई। यह घटना अपने आप में हैरान करने और भविष्य में आने वाले खतरे के लिए आगाह करने वाली है। क्या हमारी जिम्मेदारी महज अफसोस पर ही खत्म हो जाती है या फिर यह सवाल उठाया जाए कि यह लापरवाही किसकी है? क्या वह भवन निर्माण वाला दोषी है, जिसने इतनी कम जमीन पर इतनी बड़ी इमारत बना दी या उसके लिए स्वीकृति देने वाले स्थानीय निकाय या फिर सायरन बजाते हुए शहर से गुजरने वाले देश-प्रदेश के मंत्री जो कि सत्ता के नशे में आंखें मूंद कर इन्हीं बहुमंजिला इमारतों के आसपास से गुजरते हैं। शिमला शहर में यदि तीन मंजिला इमारत बनाने की ही इजाजत है तो इनकी स्वीकृति किसने दी?
क्या यह राजनीतिक पहुंच या रिश्वतखोरी का नतीजा है, जबकि भूकंप की दृष्टि से भी शिमला जोन फाईव में आता है, जो कि बहुत ही असुरक्षित है। अभी भी ऐसी परिस्थितियों पर काबू पाया जा सकता है, यदि कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए। जैसे शिमला शहर को चार जोन्स ईस्ट, वैस्ट, नॉर्थ और साऊथ में बांटकर हर एक जोन की मैपिंग की जाए तथा असंवेदनशील जोन की पहचान की जानी चाहिए। हाई रिस्क बिल्डिंग की पहचान कर बरसात के मौसम में बेशक खाली करवा दें। इसके साथ ही हाई रिस्क जोन से जनसंख्या और नव निर्माण का भार कम कर, शहर के बाहर सुरक्षित जमीनों पर भवनों का निर्माण करना चाहिए। ऐसे में शहर के बाहर से आए लोगों को पढ़ाई और रोजगार के लिए अन्य जगहों पर विस्थापित किया जा सकता है। कुछ वर्षों के लिए नव निर्माण कार्य रोक देना चाहिए। भवन निर्माण की अनुमति देने वाले स्थानीय निकायों पर निगरानी के लिए एक गैर सरकारी संस्था की स्थापना होनी चाहिए, जिसमें आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ, स्वास्थ्य और सुरक्षा आदि विभागों से ईमानदार विशेषज्ञों को लिया जाना चाहिए। शहर में बहने वाली छोटी नालियों को बडे़ नालों से जोड़कर उन्हें डंगा देकर सुरक्षित किया जा सकता है। नालों के पास बने भवनों को डंगा देकर सुरक्षित करने के आदेश दिए जाने चाहिए। शहर में मकानों का किराया मकान की स्थिति को ध्यान में रखकर निश्चित किया जाना चाहिए, ताकि मकान मालिक मकान के रिस्क फैक्टर्ज का पूरा ध्यान रखे। बिल्डिंग सुरक्षा विनियमन के लिए जागरूकता अभियान होने चाहिए, ताकि हर व्यक्ति अपने आसपास की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखे। यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाए तो कुछ हद तक शिमला को सुरक्षित बनाया जा सकता है।
डा. रीता परिहार
शिक्षिका, सांध्य महाविद्यालय

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