सम्पादकीय

सेब किससे नाराज़

Rani Sahu
31 Aug 2021 6:55 PM GMT
सेब किससे नाराज़
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सेब की मिलकीयत में हिमाचल के नए जख्म संबोधित हैं और इस तरह गिरते दामों ने माहौल में तल्खी पैदा की है

दिव्याहिमाचल। सेब की मिलकीयत में हिमाचल के नए जख्म संबोधित हैं और इस तरह गिरते दामों ने माहौल में तल्खी पैदा की है। कारणों की जद में मसला हिमाचल से दिल्ली सरकार तक की नीयत-नीति से जुड़ते हुए किसान संघर्ष के सवालों तक को छू रहा है। सेब इस बार बाजार की नरमी में अपनी लालिमा पर भले ही थप्पड़ खा रहा है, लेकिन अपने दामों के तराजू पर इसने सत्रह बागबान एवं किसान संगठन इकट्ठे कर लिए हैं। शिमला के कालीबाड़ी हाल में संयुक्त किसान मंच का गठन संघर्ष की इबारत लिख रहा है, जो 13 सितंबर का प्रदर्शन इस मुद्दे को जमीनी अस्मिता से जोड़ सकता है। पहली बार सेब बिखर और बिफर रहा है, तो यह प्रदेश की 4500 करोड़ की आर्थिकी के लिए सबसे बड़ी ङ्क्षचता होनी चाहिए। सेब मूल्य निर्धारण की वर्तमान स्थिति में कारपोरेट घरानों का साजिशी तंत्र पूरे देश को बता रहा है कि कल जिस तारीफ में कृषि कानूनों की खिड़कियां खुली होंगी, वहां व्यापारिक उद्देश्य कितने जहरीले हो सकते हैं। हिमाचली सेब का बाजार एक ओर आयातित सेब से एकतरफा मुकाबला कर रहा है, तो दूसरी ओर वाजिब समर्थन मूल्य निर्धारित न होने की वजह से कारपोरेट के मकसद में अपनी इज्जत गंवा रहा है।

आश्चर्य यह भी कि जिस तरह यह मसला बड़ा होता जा रहा है, उसके विपरीत सरकार की ओर से खामोशी भी मायूस कर रही है। आंदोलन के प्रारूप में किसान-बागबान की संवेदना के संवाहक नेता भी हो सकते हैं और यह भी कि धीरे-धीरे ये कदम एक बड़ी राजनीति को आगे बढ़ा सकते हैं। दशकों बाद प्रदेश खुद को सेब राजनीति के जरिए फिर निहारने लगा है और उन दावों की हकीकत से पूछने लगा है कि फलों के रस का अधिकतम प्रयोग शीतल पेयों में करने का आखिर हुआ क्या। फल आर्थिकी को आगे करके प्रदेश ने क्या पाया, इस चर्चा के विविध आयाम दिखाई दे रहे हैं। यह दीगर है कि आज भी हिमाचल फल राज्य के नाम पर सेब को इंगित करता है और इसी दृष्टि से अनुसंधान, व्यापारिक उत्थान तथा बाजार देखा जाता है। सेब की महिमा में प्रदेश की राजनीति के इकबालिया बयानों का अर्थ और अतीत का संदर्भ जुड़ता रहा है। इस तरह किसान मंच केवल तर्क नहीं, अधिकार प्राप्त करने का ऐसा तरीका है जो आगे चलकर माकूल समर्थन मूल्यों की बात को आगे बढ़ाएगा। बेशक बात सेब से शुरू हुई, लेकिन किसान मंच के आंदोलन में टमाटर, अदरक और लहसुन तक की स्थिति का जिक्र होगा।
राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के मुद्दे पर खड़ा आक्रोश, हिमाचल के सेब का सहारा बनेगा या यहां की हवाएं देश के किसानों को आंदोलन की आक्सीजन देंगी, यह आने वाला समय बताएगा। राकेश टिकैत का हिमाचल दौरा भले ही विवादों में रेखांकित हुआ, लेकिन इन रास्तों पे अब किसान-बागबानों का नमक पिघलेगा। हालांकि हिमाचल का वर्णन कृषि कानूनों की व्यावहारिकता को आदर्श बनाता रहा है और यहां कारपोरेट दखल में सेब आर्थिकी निरूपित हुई, लेकिन इस सीजन में बाजार की चादर हट गई। किसान मंच ने सेब दामों पर जिन चेहरों का वर्णन किया है, वहां कारापोरेट के खिलाफ हिमाचल में भी तर्क बुलंद होंगे। तेरह सितंबर की शुुरुआत आगे चलकर 26 तक क्या शक्ल लेती है या समर्थन मूल्यों की तलब में सेब व अन्य नकदी फसलों पर कितना सियासी रंग चढ़ेगा, यह काफी कुछ कहेगा। मंडी संसदीय क्षेत्र उपचुनाव से पहले कम से कम सेब आधारित राजनीति का प्रवेश तो हो ही गया। चुनावी फसल के लिए योजनाएं-परियोजनाएं बांटती सरकार का सामना किसान
मंच पर उठे सवालों से निश्चित रूप से होगा, अत: इस विषय पर स्पष्टता चाहिए।


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