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- सेब किससे नाराज़
दिव्याहिमाचल। सेब की मिलकीयत में हिमाचल के नए जख्म संबोधित हैं और इस तरह गिरते दामों ने माहौल में तल्खी पैदा की है। कारणों की जद में मसला हिमाचल से दिल्ली सरकार तक की नीयत-नीति से जुड़ते हुए किसान संघर्ष के सवालों तक को छू रहा है। सेब इस बार बाजार की नरमी में अपनी लालिमा पर भले ही थप्पड़ खा रहा है, लेकिन अपने दामों के तराजू पर इसने सत्रह बागबान एवं किसान संगठन इकट्ठे कर लिए हैं। शिमला के कालीबाड़ी हाल में संयुक्त किसान मंच का गठन संघर्ष की इबारत लिख रहा है, जो 13 सितंबर का प्रदर्शन इस मुद्दे को जमीनी अस्मिता से जोड़ सकता है। पहली बार सेब बिखर और बिफर रहा है, तो यह प्रदेश की 4500 करोड़ की आर्थिकी के लिए सबसे बड़ी ङ्क्षचता होनी चाहिए। सेब मूल्य निर्धारण की वर्तमान स्थिति में कारपोरेट घरानों का साजिशी तंत्र पूरे देश को बता रहा है कि कल जिस तारीफ में कृषि कानूनों की खिड़कियां खुली होंगी, वहां व्यापारिक उद्देश्य कितने जहरीले हो सकते हैं। हिमाचली सेब का बाजार एक ओर आयातित सेब से एकतरफा मुकाबला कर रहा है, तो दूसरी ओर वाजिब समर्थन मूल्य निर्धारित न होने की वजह से कारपोरेट के मकसद में अपनी इज्जत गंवा रहा है।