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- सच-झूठ की किसे परवाह?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सच्ची उपलब्धियों पर गर्व करना एक उचित भावना है। लेकिन अगर उपलब्धि ना हो, तो उसे गढ़ लेना अपने को धोखे में रखना होता है। दुर्भाग्य से आज भारत में यही हो रहा है। इसका दूरगामी नुकसान यह होग कि लोग अपनी कमजोरियों की जानकारी से दूर हो जाएंगे और एक भ्रम में खोये रहेंगे। अब यह साफ हो गया है कि समाचार एजेंसी एएनआई गलत खबर प्रसारित की। उसके आधार पर भारत के कई मीडिया चैनलों ने उसे दिखा दिया। खबर में झूठा दावा किया गया था कि पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक जफर हिलाली ने 2019 बालाकोट एयरस्ट्राइक में 300 मौतों की बात स्वीकार की है। अब ये बात सच है या झूठ, इसके चक्कर में कितने लोग पड़ेंगे? भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा एक राजनीतिक परियोजना का हिस्सा बन चुका है। उसका मकसद वर्तमान सरकार और उसके मुखिया की छवि को चमकाए रखना है। अब अगर इसमें झूठ का ही सहारा लिया गया हो तो वह इसकी चिंता नहीं करता। वरना, जिन माध्यमों ने जोरशोर से ये खबर दिखाई, आखिर उनमें से कितनों ने उसका उसी अंदाज में खंडन किया? तो असल बात है कि बात जहां पहुंचानी थी, पहुंच गई। अब बाकी काम सच- झूठ का पता लगाने वालों का है। वे लगाते रहें, लेकिन आखिर उनकी पहुंच कितनी है?