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प्रदीप पंडित, संपादक
गांधी के चचेरे भाई मंगतलाल गांधी का मूल शब्द या 'सदाग्रह' अर्थात सद्उद्देश्य पर टिके रहो, डिगो नहीं। गांधी ने इसका परिष्कृत रूप किया और इंडियन ओपिनियन में इसे सत्याग्रह निरूपित कर दिया। इसकी सीधी-सीधी मीमांसा यह है कि साथ में प्रेम अन्वित है, शामिल हैं। अर्थात किसी भी 'रूट कॉज' के लिए उसे उन्मूलित करने के लिए अथवा लागू करने के लिए मुद्दे के साथ खड़े रहना। इसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी उन सभी अहिंसा के सैनिकों अथवा सत्याग्राहियों पर होती है, लिहाजा इसका एक मूल तत्व है आत्मानुशासन। गांधी 21 बरस दक्षिण अफ्रीका रह कर आए थे। वहां भी उन्होंने इसी भावबोध के साथ काम किया।
लेकिन राहुल गांधी के कुछ घंटे प्रवर्तन निदेशालय के साथ गुजारने के साथ साथ कांग्रेसी सड़क पर आ गए। एक कांग्रेसी ने प्रधानमंत्री को कुत्ता कहा। एक पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री रेणुका चौधरी ने पुलिसकर्मी का कॉलर पकड़ लिया। पहले दिन के प्रदर्शन में ही कांग्रेस ने इसे 'सत्याग्रह' का नाम दिया था। अब यदि आप इसे 'सत्याग्रह' कहते हैं तो यह अपने आप गांधी से जुड़ जाता है। और कांग्रेस की हरकतें इस सब को गांधी के मान्य सिद्धांतों से दूर ले जाती है। अर्थात वह कुछ और हो सकते है सत्याग्रह कतई नहीं। इसके बाद तो पराजित और कुंठित कांग्रेसी प्रतिस्पर्धा में आ गए कि कौन किस स्तर तक अराजक और हिंसक हो सकता है।
फिर राहुल गांधी पर केस क्या है? प्रवर्तन निदेशालय जो कुछ भी कर रहा है वह ट्रॉयल कोर्ट के आर्डर पर कर रहा है। कोर्ट ने आयकर विभाग को आदेशित किया था कि वह नेशनल हेराल्ड प्रकरण में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का टैक्स एसेसमेंट करे। इस बारे में 2013 में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने एक याचिका दायर की थी।
डॉक्टर स्वामी का आरोप था कि नेशनल हेराल्ड एकबार को लेते हुए चीटिंग (धोखाधड़ी) की गई और वित्तीय गड़बड़ियां भी हो गई। पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय ने राहुल को बुलाया। नेशनल हेराल्ड की स्थापना1938 में नेहरू ने की थी। वह खुद भी इसमें संपादकीय लिखते थे। इसका मालिकाना हक एसोसिएट जनरल लिमिटेड के पास था। यहीं से हिंदी का 'नवजीवन' और उर्दू का 'कौमी आवाज' भी छपता था। 1956 में इसे धारा 25 के तहत आकर मुक्त कर दिया गया। 2008 में इसे बंद कर दिया और कंपनी पर 90 करोड़ का कर्ज भी चढ़ गया। 23 अप्रैल 2010 को यंग इंडिया प्राइवेट निमिटेड बना। इसमें सुमन दुबे, मोतीलाल, आॅस्कर फर्नाडिस, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी लिए गए। राहुल गाँधी को निदेशक बनाया गया। करीब एक साल बाद सोनिया गाँधी भी निदेशक बना दी गईं। इसके 78 फीसदी शेयर राहुल और सोनिया के पास थे। कांग्रेस पार्टी ने नई कंपनी को 90 करोड़ का भुगतान भी किया।
मुद्दा लम्बे समय से लंबित है। ऐसे में पूछताछ करने पर बुलाने पर हंगामा करने की जरूरत क्या थी? खड्गे से भी पूछताछ हुई, लेकिन पत्ता नहीं खड़का। फिर राहुल से पूछताछ में क्या खास हो गया कि कांग्रेस ने इसे अपनी अस्मिता में जोड़ लिया। मंजर यह है कि इसमें कांग्रेसियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जिनकी जगह कांग्रेसी आजम पर कहीं नहीं हैं। अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों में अनेक अपने लोग ही उनकी खिलाफत में जूते में दाल बांट रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि वे ज्यादा निष्ठावान समझ लिए जाएं और कोई पुरस्कार उनकी झोली में आ गिरे।
अनवरत कहा जा रहा है कि हम संसदीय पणाली, लोकतंत्र सहिष्णुता और न्याय व्यवस्था में यकीन रखते है। लेकिन जब भी ऐसे अवसर आते हैं, हमारे देश की दलीय व्यवस्था की दलदल में धंसे लोग शर्मनाक हरकतों पर उतर आते हैं। लगता है कि वे सड़कों पर उतरने की लिए योग्य मुद्दे नहीं तलाश पाते।
राहुल का जन्मदिन भी हैं और उन्होंने उसे उन लोगों के संघर्ष को सौंपने का मन बनाया है जो परेशां है। यह स्वागत योग्य है। लेकिन उन्हें चाहिए कि वे पार्टी को गांधीवाद, समाजवाद और कांग्रेसी मूल्यों पर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करें। प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ, कोई मसला नहीं जिसे लोकतंत्र पर हमला बताया जाए। वस्तुत: इससे लोकतंत्र पुष्ट हो रहा है। यहां का संविधान किसी को किसी से बड़ा साबित नहीं करता। समानधर्मी संविधान में पूछताछ बदले की कार्रवाई नहीं है। कांग्रेसियों को इस पर भी प्रदर्शन करना है तो करें मगर उसे सत्याग्रह न कहें।