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- आतंक के ठिकाने
खबर के मुताबिक फरवरी 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले के आरोपी सज्जाद भट ने इसी संस्थान से पढ़ाई की थी। गौरतलब है कि पुलवामा हमला इस समूचे इलाके में पसरे आतंकवाद का त्रासद उदाहरण है। सवाल है कि शोपियां के इस धार्मिक स्कूल में किस शैली की पढ़ाई हो रही है कि वहां से निकले कुछ युवक आतंकवाद का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं!
ऐसा लगता है कि अनुच्छेद-370 की स्थिति में बड़े बदलाव के बाद जम्मू-कश्मीर के समूचे इलाके में शासन-प्रशासन के काम करने से लेकर स्थानीय आबादी तक के सोचने-समझने के तरीके में जो बदलाव आया है, उसमें आतंकवादी संगठन अपने लिए जगह बना पाना आसान नहीं पा रहे हैं। अब उनके लिए स्थानीय युवकों को अपने जाल में उलझा कर आतंकी बनाना भी मुश्किल हो रहा है। शायद इसी वजह से अब उन्होंने वैसे केंद्रों और खासतौर धार्मिक शिक्षा देने के नाम पर चलने वाले स्कूलों को अपना निशाना बनाना शुरू किया है, जहां कम उम्र के बच्चे जमा होते हैं और उन्हें संबोधित करने वाला व्यक्ति उन पर असर रखता है।
शोपियां का जो धार्मिक स्कूल निगरानी के कठघरे में आया है, उसके बारे में अधिकारियों का मानना है कि इस तरह के संस्थानों में मारे गए आतंकियों को नायक की तरह बताया जाता है। लगातार इस तरह की बातें कम उम्र के छात्रों के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ते हैं और किन्हीं नाजुक क्षण में वे किसी अवांछित तत्त्व से प्रभावित होकर आतंकवाद के रास्ते पर बढ़ जाते हैं। मुश्किल यह है कि उन्हें इस मसले पर समझाने और इसका नुकसान बताने वाला कोई नहीं होता है। बाद में जब वे कानून के शिकंजे में फंसते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
दरअसल, पिछले कुछ समय से राज्य में स्थानीय पुलिस, सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल की वजह से आतंकवाद की जगह सिकुड़ी है। लगातार आतंकवादी घटनाओं और उस पर प्रशासन की सख्त प्रतिक्रिया की वजह से उनके ठिकाने भी खत्म हुए हैं। इसके अलावा, स्थानीय आबादी के बीच भी आतंकवाद और उसके हासिल को लेकर धारणा बदली है और उन्होंने ऐसी गतिविधियों में शामिल लोगों से दूर बरतनी शुरू कर दी है।
यही वजह है कि अब उनके निशाने पर कम उम्र के बच्चे आने लगे हैं और स्थानीय स्तर पर चलने वाले स्कूलों के संचालकों की मिलीभगत से वे अपने एजेंडे को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे अनेक मामले देखे गए जिनमें कुछ केंद्रों में छात्रों को आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए उकसाया गया। यह जितना आतंकवाद से लड़ते समूचे तंत्र के लिए चुनौती है, उससे ज्यादा वहां के लोगों को सोचने की जरूरत है कि अगर उनकी भावी पीढ़ियों को आतंकवाद की आग में झोंका जाता है तो इसका हासिल क्या होगा!