सम्पादकीय

इटली को कहां ले जाएंगी मेलोनी : स्त्रीवादी विचार से विरोधाभास और पुरुषों के वोट बैंक में सेंध के मायने

Rounak Dey
1 Oct 2022 2:09 AM GMT
इटली को कहां ले जाएंगी मेलोनी : स्त्रीवादी विचार से विरोधाभास और पुरुषों के वोट बैंक में सेंध के मायने
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इसी संदर्भ में मेलोनी की इस जीत को देखा जाना चाहिए।

इटली की नेता जियोर्जिया मेलोनी इन दिनों चर्चा में हैं। हाल ही में वह सत्ता में आई हैं। उनकी पार्टी का नाम है-ब्रदर्स ऑफ इटली। वह इकत्तीस साल की उम्र में इटली की सबसे युवा मंत्री भी थीं। वह लोगों पर टैक्स कम और लोगों की भलाई पर अधिक पैसा खर्च करना चाहती हैं। उनका नारा है-मैं जियोर्जिया हूं। मैं एक स्त्री हूं। मां हूं। मैं इटली की हूं। ईसाई हूं। यदि उनके नारे को ध्यान से पढ़ें, तो जोर इस पर है कि वह स्त्री हैं और मां भी। यानी कि स्त्री का मां होना महत्वपूर्ण बात है।

उन्होंने यह भी कहा था कि अगर बच्चे नहीं, तो इटली भी नहीं। यदि इस बात को स्त्रीवादी दृष्टिकोण से देखें, तो यह विचार स्त्री विरोधी लगेगा। स्त्रीत्ववादी विचार, स्त्री के करिअर पर ज्यादा जोर देता है, न कि मां होने पर, क्योंकि विवाह, संतान आदि को करिअर में भारी रुकावट माना जाता है। इसके अलावा उनका यह कहना कि वह इटली की हैं, यानी कि उनके लिए देश सर्वोपरि है। जीतने के बाद, उन्होंने कहा भी कि वह हर तरह से अपने देश और यहां के निवासियों की भलाई करेंगी। इटली को एक रखेंगी।
मतलब कि वह एक राष्ट्रवादी नेता हैं। यही नहीं, उन्हें अपने ईसाई होने पर गर्व है। अब तक बहुत से नेता अपने-अपने धर्म को बताने में शरमाते रहे हैं। प्रगतिशील विचार धार्मिक होने के विचार को नकारता है, धर्म को भी। धर्म को बताने के बजाय वह उसे छिपाने में यकीन करता है। इसीलिए मेलोनी के कैथोलिक धर्म को वहां के स्त्रीवादी शक की नजर से देख रहे हैं। उनका कहना है कि शायद वह गर्भपात के अधिकार पर भी रोक लगा देंगी।
जब जियोर्जिया मेलोनी छात्रा थीं, तो इटैलियन सोशल मूवमेंट से जुड़ी थीं। इस संगठन को मुसोलिनी ने खड़ा किया था। अतीत में इसकी काफी तारीफ भी कर चुकी हैं। इसीलिए जब इटली में उनकी जीत को फासिज्म की जीत बताया जाने लगा, तो उन्होंने कहा कि वह फासिस्ट नहीं हैं। वह शरणार्थियों के अपने देश में आने की लगातार आलोचना भी करती रही हैं। पर हाल ही में उन्होंने कहा कि वह सिर्फ अवैध शरणार्थियों के विरुद्ध हैं।
जियोर्जिया मेलोनी हों, फ्रांस की ली पैन हों, स्वीडन या जर्मनी में राष्ट्रवादी विचार की लहर हो, यह देखना दिलचस्प है कि इन दिनों यूरोप, जिसे फर्स्ट वर्ल्ड कहते हैं, में उन विचारों को लोग पसंद कर रहे हैं, जहां एक धर्म के वर्चस्व, राष्ट्रवाद की वकालत और शरणार्थियों को बेरोजगारी, बढ़ते अपराध के लिए जिम्मेदार माना जाता है। ऐसे विचार वाले नेताओं की बातें भी लोग पसंद करते हैं, उन्हें जिता देते हैं। सिर्फ यूरोप ही क्यों, अमेरिका में भी गोरे लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जल्दी ही वे अपने देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
वहां भी राष्ट्रवाद का जोर बढ़ रहा है। यह स्त्रीवादी विचार कि ग्लास सीलिंग तोड़कर स्त्रियों को सत्ता के शिखर पर बैठा दो, तो वे हर तरह की नफरत का खात्मा कर देंगी, युद्ध कभी नहीं होने देंगी, शांति की वकालत करेंगी, उन्हीं देशों में अस्वीकृत किए जा रहे हैं, जिन देशों में स्त्रीवादी विचार फला-फूला था। यूरोप की महिला नेताओं द्वारा मातृत्व को सर्वोपरि कहने की वकालत यह भी बता रही है कि वह अतिवादी विचार समाज में अपनी जगह खो रहा है, जो कोख को स्त्री का सबसे बड़ा शत्रु मानता है।
वे परिवार की वापसी चाहती हैं। अमेरिका में ट्रेडिशनल वाइफ मूवमेंट की आवाजें सुनी जा रही हैं। जिसमें न केवल विवाहित, बल्कि अविवाहित युवा महिलाएं कहती हैं कि मैं अगर अपने पति, अपने बच्चों, अपने घर की देखभाल करना चाहती हूं, तो किसी को मेरा मजाक उड़ाने का क्या हक है। यह मेरी पसंद है, जैसे कि किसी की पसंद अकेली रहना होती है। इन सारी बातों का एक कारण यह भी नजर आता है कि जो स्त्रीवाद, स्त्रियों के मानव अधिकारों के लिए शुरू हुआ था, उसका एक हिस्सा, इन दिनों पुरुष मात्र से नफरत में बदल गया है।
इस दौर में आप किसी से नफरत करके, अपने विचार को सहज, स्वीकृत नहीं बना सकते, क्योंकि जिससे नफरत करने की बात कर रहे हैं, वह भी अपने अधिकारों के लिए उठ खड़ा होता है। इसीलिए मेलोनी को पुरुषों ने भी खूब वोट दिया है। इसी संदर्भ में मेलोनी की इस जीत को देखा जाना चाहिए।

सोर्स: अमर उजाला

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