सम्पादकीय

पंतप्रधान की तपस्या में कहां हुई चूक?

Nilmani Pal
25 Nov 2021 12:06 PM GMT
पंतप्रधान की तपस्या में कहां हुई चूक?
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डॉ राजाराम त्रिपाठी,

राष्ट्रीय संयोजक,

अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा

नई-दिल्ली। हे करुणानिधान अवतारी पंतप्रधान, आपने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेते समय बड़े करुण शब्दों में देश के अज्ञानी मूढ़ किसानों को समझाते हुए,अपनी तपस्या में किसी अज्ञात कमी के बारे में देश को अवगत कराते हुए देश से माफी मांगी थी। आपने लकीर खींच कर यह कहा कि आप के कानून तो "पवित्र जोत" थे, बिल्कुल सही जरूरी थे, आंदोलन कारी किसान ही गलत थे, गलत हैं , आपकी गलती केवल यह रही कि एक साल तक अपार तपस्या करने के बावजूद आप किसानों को उनकी गलती समझा नहीं पाए।। हे प्रभु आपकी वाणी पर मां सरस्वती का वास है, आप शब्दों के इस सदी के सबसे बड़े जादूगर हैं। पर किसान बेचारे क्या करें, खेत खलिहान में कोई माया, बहुरूप, कोई काला पीला,हरा, भगवा जादू नहीं चलता। कहावत भी है बातन और संदेशन खेती नहीं होती।खेती में जांगर लगता है। कठोर परिश्रम कर पसीना बहाना होता है तब खेती होती है, शाब्दिक बाजीगरी से नहीं। खेती किसानी से भला आपको क्या लेना देना? संतन को कहा सीकरी सों काम , आप ठहरे संत सो तपस्या तो आप का मूल कर्म है ही।अब चाहे कोई हिमालय में जाकर तपस्या करें या दिल्ली में या फिर लखनऊ में यह तो संत की मर्जी, इससे भला किसी को क्या?

बहरहाल आपके उद्बोधन के दिन से देश के सभी किसान बेतरह परेशान हैं। साल भर से दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड,पूरे मानसून की बारिश झेलते हुए तथा जलती सड़क पर तपते हुए किसान यह सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए हैं , मूर्छित हो रहे हैं कि आखिर आपने ढाई एकड़ के सर्वोच्च सुविधा युक्त प्रधानमंत्री भवन में आखिर ऐसी कौन सी गुप्त तपस्या कब और कैसे और कहां की ? और आपकी कथित पावन तपस्या में ऐसी क्या चूक रह गई ?

जी पंत प्रधान प्रभु यह तो हथेली पर धरे आंवले की तरह परम सत्य है कि, आपने तो देश के किसानों के लिए लगातार अपार कठिन तपस्या की है, बारह महीने तक हठयोग साधा है। पिछले कार्यकाल में भी आपने कितना भारी-भरकम, कृषक कल्याणकारी "भूमि अधिग्रहण बिल" कंधे पर ढो कर ले आए थे, तब भी अर्जुन की भांति आपकी और आपकी संत मण्डली की पावन कुदृष्टि देश व किसानों के जमीनों पर ही जमी थी ,पर इन नामुराद किसानों ने उस समय भी उसे जमीन पर धरने भी ना दिया और बैरंग वापस करवा दिया,, फिर अशक्त किसानों को रिचार्ज करने के लिए लिए नया बिजली बिल लाकर बिजली का जोर का झटका डबल जोर से दिया, किसान आपके इस झटके से उबर भी नहीं पाया था कि, हे कृपालु आपका संत हृदय देश के गरीब, मजबूर किसानों के लिए अतिशय करूणा से छलकने लगा, आखिर यही तो सच्चे संतों का लक्षण है। सो बिन मांगे आपने किसानों पर ताबड़तोड़ कृपा बरसाते हुए तीन चमकदार कानून बनाकर किसानों को एक ही वार में पूरी तरह से निहाल कर दिया।

यह आपकी तपस्या का ही सुफल था कि इन कानूनों की कुंजी के जरिए आपके मित्र कारपोरेट अपनी तिजोरी और दिल दोनों के दरवाजे देश के किसानों के लिए खोलने जा रहे थे। वाह भाई वाह , खाद बीज दवाई ट्रैक्टर, डीजल सब कुछ मुफ्त और बदले में पूरा उत्पादन खरीदने की शत प्रतिशत गारंटी भी। हे कलियुग के भागीरथी देश के किसानों के लिए अपनी कठोर तपस्या से साक्षात स्वर्ग उतार कर ला रहे थे आप, और यह अभागे किसान हैं किअ स्वर्गवासी बनने को तैयार नहीं ।

किसानों को अपने उत्पादन की असीमित मात्रा में भंडारण करने की अनुमति देकर तो आपने किसानों का दिलो दिमाग ही जीत लिया (अब बस खेत खलिहान जीतना ही बाकी बचा था), किसानों के प्रति आपका यह अपार प्रेम तथा तपस्या देखकर सच में समझदार किसानों की आंखों में तो मानो आंसुओं की बाढ ही आ गई ,अब इसका क्या करें बेचारे, कि ये खुशी के आंसू बंद ही नहीं हो रहे।

आपने देश के किसानों के लिए अपिछले साल भर में कितनी विकट तपस्या की है यह पूरे देश दुनिया ने देखा है और भक्तजनों ने न केवल सराहा है, बल्कि अब तो अखंड आर्यावर्त के समस्त भक्तगण दो हजार बाइस से लेकर चौबीस तक के लिए नमो नाम केवलम् के अखंड कीर्तन, तथा नमोधुन सम्मोहन नृत्य में लीन हो गए हैं।

हे अवतारी पुरुष (?) गंगा जी के लिए भागीरथी जी की तपस्या भी किसानों के लिए आपकी कठिन तपस्या के सन्मुख तुच्छ है। किस तरह सालभर तक अपनी क्रीतदसी मीडिया को साधते हुए अन्नदाताओं का मान सम्मान बढ़ाने में लगाए रखा, जिस तरह से दिल्ली आ रहे सभी किसानों के लिए समभाव से आपने त्वरित गति से सड़कें खुदवाकर तथा शीतल जल की जबरदस्त बौछारें मारकर सीमाओं पर स्वागत किया, किसानों की समुचित सुरक्षा हेतु बेहद मजबूत बैरिकेड लगावाए, सुरक्षाकर्मियों की फोर्स झोंक दी, रातों-रात दीवारें खड़ी की, रास्तों में कांटे बिछाने जैसे पिछड़े दकियानूसी विचारों से ऊपर उठते हुए आपने किसानों की राहों में सीधे जंगी भाले ही गढ़वा दिए । राजधानी की सीमा पर किसानों का परंपरागत तरीके से लाठियों तथा गोलियों से तथा भरपूर कड़कड़ाती ठंड में किसानों को ठंड से बचाने के दृष्टिकोण से लोहे को लोहा काटता है की तर्ज पर किसानों पर जो बर्फीले तेज पानी की बौछारें करते हुए आत्मा को तृप्त करने वाला जो भरपूर स्वागत सत्कार किसानों का किया वह अभूतपूर्व तथा ऐतिहासिक था। देश का किसान आपके द्वारा इस अप्रतिम स्वागत सत्कार की व्यवस्था के पीछे छिपी आपकी अपार तपस्या देख समझकर गदगद हो गया।आपने अपनी सुदीर्घ साधना व तपस्या से अर्जित बहुसंख्य दिव्यास्त्र जैसे कि देशद्रोही,खालिस्तानी ,पाकिस्तानी ,माओवादी, उग्रवादी, आंदोलनजीवी, परजीवी, खालिस्तानी, मवाली, टुकड़े टुकड़े गैंग, मुट्ठीभर लोग, पिज्जा बर्गर भक्षक आदि आरोपास्त्र किसानों पर चलाकर उन्हें एकजुट तथा मजबूत किया उसके लिए निश्चित रूप से देश के सारे किसान आपके आभारी हैं।

प्रभु आपकी तपस्या का कहीं अंत नहीं, आपने कठिन हठयोग साधते हुए किसानों पर कहीं पाषाण वर्षा करवाई तो कहीं अग्निदेव का आवाहन कर अग्नि कांड करवा दिया। लोगों पर किसानों पर ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज किए कईयों को जेल भेजा इस सब पर भी मन नहीं भरा तो तपोबल से अपने परमवीर मंत्री पुत्र की गाड़ी से कुचलवाकर कई किसानों को बिना किराया स्वर्ग लोक तक पहुंचा दिया। आप इस तपस्या की आग में इस तरह तपे कि आपके हृदय की सारी मानवीय संवेदनाएं ही सूख गई, तभी तो आप की देहरी दिल्ली सीमा पर दिन प्रतिदिन दम तोड़ती 700 से ज्यादा किसानों की मौत पर भी आप दो आंसू ( भले घड़ियाली आंसू ही सही) तो छोड़िए सांत्वना ,श्रद्धांजलि के दो शब्द भी न दे पाए।

किसान हित तथा देश हित के लिए आपकी इस प्रचंड तपस्या को देश के ये अभागे मूर्ख किसान तथा देश की जनता देखकर भी समझ नहीं समझ पा रही है, निश्चित रूप से यह देश और किसानों का दुर्भाग्य ही है। हे अवतारी पुरुष आपकी तपस्या में किंचित मात्र भी कोई कमी न पहले थी न अब है,अगर कहीं कोई कमी है तो यह इस देश की तथा किसानों की नामुराद सोच में कमी है। यह कैसे हतभाग्य किसान हैं, जो अपने खेत खलिहानों घर बार जैसी नश्वर तथा तुच्छ दुनियावी वस्तुओं के लिए बेवजह आप जैसे महान अवतारी पुरुष की अपार तपस्या में बाधा डाल रहे हैं। इन्हें समझना चाहिए कि आखिर इस धरती पर क्या लेकर आए थे, और क्या लेकर ऊपर जाएंगे? सब कुछ तो यहीं छूट जाएगा ना, फिर घर परिवार जमीन जायदाद खेत खलिहान का अनावश्यक मोह किसानों को आखिर क्यों रखना। वैसे भी इसे संभाल तो पा नहीं रहे हो, बेहतर है, बड़की बड़की मित्र कंपनियां आएं और खेत खलिहान का टंटा संभाले और आप आराम से अपने खेतों में काम मजूरी करो, और भरपूर मौज करो।खेती किसानी का टेंशन खाली-पीली काहे को लेने का? आज के युग में परम शक्तिशाली मोक्षदायिनी कार्पोरेट्स कंपनियों की शरण में जाने में ही कल्याण है। हद है यह तो, आखिर ये लकीर के फकीर किसान आपके साक्षात पारदर्शी जीवन के इस एकदम स्पष्ट संदेश को भी समझ क्यों नहीं पा रहे हैं।

अब यह तो तय है कि ये किसान निश्चित रूप से आपकी पावन, भक्त मनभावन, कारपोरेट मित्रजन कल्याणार्थ पवित्र तपस्या भंग के पाप हेतु कठोर कुंभीपाक नरक दंड विधान भोग के भागी हैं । हे त्रिकालज्ञ परम प्रतापी अवतारी महा-पुरुष आप तो करूणानिधान हैं, दया के सागर हैं इन मूढमति किसानों तथा देश की अज्ञानी जनता को इनकी सतत गलतियों के माफ कर दीजिए। अगली बार ये गलती से भी यह गलती दोबारा नहीं दुहराऐंगे, बाकी तो आप समझ ही गए होंगे आगे आपको आपकी संत मंडली को लंबी तपस्या के निर्विघ्न अवसर मिलने वाले हैं। कृपा निधान आपसे अचूक चूक अंजाने तो होती नहीं। वैसे चूक हो या फिर गलती चाहे जैसी भी हो, माफी तो होनी ही चाहिए,,, कहा भी गया है कि, अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया,,क्षिमा बड़न को चाहिए छोटन को उतपात।

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