सम्पादकीय

ग्रीन हाइड्रोजन से जहां ऊर्जा सुरक्षा का लक्ष्य हासिल होगा, वहीं हरित अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी

Gulabi Jagat
7 April 2022 10:35 AM GMT
ग्रीन हाइड्रोजन से जहां ऊर्जा सुरक्षा का लक्ष्य हासिल होगा, वहीं हरित अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी
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पिछले दिनों केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ग्रीन हाइड्रोजन कार से संसद पहुंचे
अरविंद कुमार मिश्र। पिछले दिनों केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ग्रीन हाइड्रोजन कार से संसद पहुंचे। उनकी इस पहल ने हाइड्रोजन कारों और हाइड्रोजन ऊर्जा को लेकर कौतूहल बढ़ा दिया है। हाइड्रोजन कारों के भविष्य को समझने से पहले हाइड्रोजन ऊर्जा के विज्ञान एवं लागत प्रक्रिया को समझना होगा। यह तीन रूप में पाई जाती है। धूसर और नीले हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन जैसे प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल से तैयार होते हैं। यह प्रक्रिया कार्बन उत्सर्जक है। वहीं ग्रीन हाइड्रोजन तैयार करने में अक्षय ऊर्जा संसाधन उपयोग में लाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रोलाइजर के जरिये पानी से हाइड्रोजन और आक्सीजन को अलग करते हैं।
दुनिया की कई दिग्गज वाहन कंपनियां हाइड्रोजन आधारित फ्यूल सेल विकसित कर रही हैं। इसमें फ्यूल सेल हाइड्रोजन का इस्तेमाल कर वाहन को चलाने के लिए बिजली पैदा करता हैं। फ्यूल टैंक से ग्रीन हाइड्रोजन की आपूर्ति फ्यूल सेल को होती है। यह हवा में मौजूदा आक्सीजन को खींच कर हाइड्रोजन और आक्सीजन की रासायनिक क्रिया से बिजली तैयार करता है। इस प्रक्रिया में पानी अवशेष के रूप में बाहर आता है। साफ है कि हाइड्रोजन का हरित रूप पर्यावरण अनुकूल और किफायती है। यह ऊर्जा भंडारण का नया विकल्प बन सकता है। यह शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को पूरा करने में भी सहायक होगा।देश में इलेक्टिक वाहनों (ईवी) की बिक्री में तेजी आई है। बैटरी से चलने वाले इन इलेक्टिक वाहनों की लोकप्रियता हाइड्रोजन ऊर्जा पर निर्भर करेगी, क्योंकि ग्रीन हाइड्रोजन का सबसे अधिक इस्तेमाल परिवहन क्षेत्र में ही होगा। अभी रेलवे, बड़े जहाजों, बसों या ट्रकों आदि में ग्रीन हाइड्रोजन दुनिया के कई हिस्सों में उपयोग में लाई जा रही है। हालांकि ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों की लोकप्रियता सुरक्षा मानकों, लागत और रीफिलिंग स्टेशन की उपलब्धता पर निर्भर करेगी।
अमेरिकी ऊर्जा विभाग के मुताबिक एक किलोग्राम हाइड्रोजन गैस 2.8 किलोग्राम गैसोलीन के बराबर होती है। इलेक्ट्रोलाइजर 39 किलोवाट इलेक्टिसिटी से एक किलोग्राम हाइड्रोजन तैयार करता है। देश में मौजूदा समय में इलेक्ट्रोलाइसिस द्वारा तैयार हाइड्रोजन की लागत लगभग 350 रुपये प्रति किलोग्राम आती है। भारत की कोशिश है कि 2030 तक यह दर 160 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ जाए। द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) के मुताबिक 2050 तक हाइड्रोजन ऊर्जा की खपत में दस गुना वृद्धि होगी। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा स्नोतों से हरित हाइड्रोजन तैयार करने वाले इलेक्ट्रोलाइजर्स की उपलब्धता बढ़ानी होगी। इसीलिए इलेक्ट्रोलाइजर उत्पादन को पीएलआइ (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) स्कीम के दायरे में लाए जाने की मांग लंबे समय से हो रही है। ऐसा कर हम हाइड्रोजन उत्पादन की प्रक्रिया को सस्ती कर सकते हैं।
केंद्र सरकार ने हरित हाइड्रोजन नीति के तहत कुछ ठोस कदम उठाए हैं। अब ग्रीन हाइड्रोजन तैयार करने वाली इकाइयां कच्चे माल के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा कहीं से और किसी से ले सकती हैं। ये कंपनियां सौर या पवन ऊर्जा के संयंत्र भी लगा सकती हैं। हरित अमोनिया के निर्यात के लिए बंदरगाहों के पास बंकर बनाए जा रहे हैं। 25 साल की अवधि के लिए अंतरराज्यीय पारेषण शुल्क से छूट देने से राज्यों को काफी मदद मिलेगी। इससे हरित हाइड्रोजन की पहुंच दैनिक जरूरत के कार्यो में संभव हो पाएगी।
हरित हाइड्रोजन से रोजगार के अनगिनत अवसर भी सृजित होंगे, लेकिन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था से जुड़ी विशेषज्ञता एवं कौशल की कमी बड़ी चुनौती है। इसका परिवहन और भंडारण महंगा है। हाइड्रोजन एक ज्वलनशील गैस है। इसके भंडारण में एक अन्य चुनौती रीफिलिंग में लगने वाला समय है। इलेक्ट्रोलाइसिस प्रक्रिया में लगभग 30 से 35 प्रतिशत हाइड्रोजन का नुकसान होता है। हाइड्रोजन को अमोनिया आदि रूप में तरलीकृत करने की प्रक्रिया में 13 से 25 प्रतिशत ऊर्जा नष्ट होती है। इसी तरह हाइड्रोजन के परिवहन के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल में सुरक्षा मानकों को और अधिक प्रभावी बनाना होगा। हाइड्रोजन की ज्वलनशीलता और अल्पभार के कारण इसके उपयोग में विशेष सावधानी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हाइड्रोजन ऊर्जा के परिवहन के लिए प्राकृतिक गैस पाइपलाइन ग्रिड की तरह स्वतंत्र ग्रिड बनाई जाए।
सरकार की योजना आगे चल कर रसोई गैस में भी हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल करने की है, लेकिन इसके लिए गैस पाइपलाइन के साथ ही गैस चूल्हों में भी कुछ बदलाव करने होंगे। 2034-35 तक 75 प्रतिशत उर्वरक उद्योग में भी पर्यावरण अनुकूल हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल होने लगेगा। यदि सरकार पीएनजी में भी 15 प्रतिशत हरित हाइड्रोजन मिलाए जाने को मंजूरी देती है तो इससे हाइड्रोजन ऊर्जा की खपत बढ़ेगी।
इसमें दोराय नहीं कि हाइड्रोजन के हरित रूप को विकसित कर हम वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं को भी समय पर पूरा कर पाएंगे। भारत ने इस दशक के अंत तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इससे देश में ऊर्जा का यह टिकाऊ संसाधन जीवाश्म ईंधन का विकल्प बनेगा। ऊर्जा आत्मनिर्भरता की इस यात्र में सौर और पवन ऊर्जा के साथ हाइड्रोजन ऊर्जा की विशेष भूमिका होगी।
(लेखक हिंदुस्तान ओपिनियन एनर्जी से संबद्ध हैं)
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