सम्पादकीय

अब रास्ता किधर है?

Gulabi
18 May 2021 4:41 PM GMT
अब रास्ता किधर है?
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इसके बाद दूरगामी योजना बनानी चाहिए। अगर फिर से आज जैसी मुसीबत को दोहराए जाने से रोकना है तो

इसके बाद दूरगामी योजना बनानी चाहिए। अगर फिर से आज जैसी मुसीबत को दोहराए जाने से रोकना है तो इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है कि भारत को अपनी जीडीपी का 5 से 6 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश करे। साथ ही स्वस्थ्य प्रणाली को विकेंद्रित करना जरूरी है।


आजादी के बाद महामारियों से निपटने में भारत का रिकॉर्ड बेहतर रहा है। कोरोना महामारी आने के पहले अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने इस बारे में एक चर्चा में कहा था कि जब एड्स आया, तो कहा गया था कि इसकी सबसे ज्यादा मार भारत पर पड़ेगी। लेकिन एहतियाती कदम उठाकर ऐसा होने से रोक दिया गया। आज भी ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में सिलसिलेवार तरीके से और राष्ट्रीय स्तर पर योजना बना कर वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है। उनके मुताबिक आज भारत की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक सही संवाद की कमी है। ऐसा संवाद जो सच पर आधारित हो और जिसमें लोगों को गुमराह ना किया जाए। अब हम जहां पहुंच गए हैं, वहां तुरंत सरकारों को राजनीतिक रैलियों और धार्मिक समारोहों सहित शादियों और सामूहिक समारोहों में भाग लेने से हतोत्साहित करना चाहिए। लोगों को बताया जाना चाहिए कि ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने से वायरस तेजी से फैल रहा है। एड्स और पोलियो महामारी को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के बीच जैसा प्रभावी संदेश प्रसारित किया गया था, वैसा कोविड-19 के दौरान सिलसिलेवार तरीके से नहीं हो पाया है। इसके बाद दूरगामी योजना बनानी चाहिए।

अगर फिर से आज जैसी मुसीबत को दोहराए जाने से रोकना है तो इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है कि भारत को अपनी जीडीपी का 5 से 6 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश करे। साथ ही स्वस्थ्य प्रणाली को विकेंद्रित करना जरूरी है। मसलन, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को संचालित करने का अधिकार जिला स्तर तक के स्थानीय अधिकारियों को दिया जा सकता है। केंद्र को सिर्फ ऐसे अधिकारियों को तकनीकी दिशा-निर्देश देने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मेडिकल ऑक्सीजन और दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति बनी रहे। भुखमरी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए। अब यह तो साफ है कि हमें सरकारी अस्पतालों और केंद्रों में डॉक्टरों, नर्सों, और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अन्य कर्मचारियों जैसे लैब टेक्नीशियन और एक्स-रे टेक्नीशियन के लिए काम का बेहतर माहौल बनाना होगा, ताकि गरीब लोग निजी क्षेत्र की दया पर निर्भर न रहें। लेकिन ये सब विशेषज्ञों की सलाह है, जिन्हें शायद ही सुना जाएगा। दरअसल, आज के सत्ताधारी ऐसा करते तो आज जैसी हालत ही क्यों पैदा होती!
क्रेडिट बाय नया इंडिया
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