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- ‘रेल कवच’ कहां गया?
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यह अंतिम रेल सफर साबित हुआ। बीते 30 सालों में ऐसी घोर भयावह, जानलेवा, त्रासद रेल दुर्घटना नहीं देखी गई। ओडिशा के बालासोर जिले की रेल दुर्घटना अपनी किस्म की अभूतपूर्व त्रासदी है। वैसे यह तीसरा सबसे बड़ा, भयानक और त्रासद रेल हादसा है, क्योंकि तीन रेलगाडिय़ों की टक्कर अभूतपूर्व और अकल्पनीय है। रेल आम आदमी का आसान और सुरक्षित सफर माना जाता रहा है। दुर्घटनाएं भी कम हुई हैं। लाखों यात्री हररोज रेल के जरिए ही आवागमन करते हैं। देश का रेल रूट 68,103 किलोमीटर लंबा है। हम विश्वस्तरीय रेलवे हैं। बालासोर हादसे में 288 मौतें हो चुकी हैं और 1116 लोग घायल हैं। अस्पतालों में उनका इलाज जारी है। करीब 56-58 यात्रियों की हालत गंभीर बताई गई है, लिहाजा मौत का आंकड़ा बढ़ सकता है। हावड़ा से चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन में और बेंगलुरू से हावड़ा जाने वाली दुरंतो सुपरफास्ट रेलगाड़ी में सवार यात्री आश्वस्त थे। कोई अपने घर, गांव जा रहा था, तो किसी को अपने गन्तव्य तक पहुंचना था। किसी के घर में समारोह था अथवा किसी को मुद्दत के बाद परिजनों से मिलना था। तीन रेलगाडिय़ों की टक्कर ने सब कुछ चकनाचूर कर दिया। किसी की बाजू रह गई, किसी की टांग ही शेष रही, तो किसी का चेहरा ही विकृत हो गया।
यात्री बोगियों के बीच फंस गए, तो कुचले गए। टीवी चैनलों पर दृश्य देखे, तो मन विचलित हो उठा। वेदना ने तालू चिपका दिया। क्या भारतीय रेल इतनी असुरक्षित है? क्या किसी मानवीय चूक और मैकेनिकल नाकामी के कारण इतनी बड़ी और वीभत्स मानवीय त्रासदी हुई? क्या तकनीकी स्तर और रेलवे स्टेशन पर स्थित नियंत्रण-कक्ष की प्रौद्योगिकी में हम इतने अक्षम हैं कि रेल हादसे नहीं रोक सकते? इस हादसे पर ‘एंटी कोलिजन डिवाइस’ का मुद्दा पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने उठाया है और विशेषज्ञ भी रेलवे के ‘सुरक्षा कवच’ पर सवाल कर रहे हैं। दरअसल यह ‘कवच’ 2020 में लागू किया गया था। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ‘कवच’ का परीक्षण और प्रयोग देखा था, तो खूब तालियां बजाई थीं और ‘कवच’ को संचालित करने वालों की पीठ थपथपाई थी। दरअसल इस ‘कवच’ की हकीकत यह है कि 31 दिसंबर, 2022 तक 1455 किलोमीटर रूट ही ‘कवच’ से कवर किया जा सका था। यानी 95 फीसदी से ज्यादा रेल रूट ‘कवचहीन’ है। देश में 13,215 रेल इंजन हैं। इनमें से सिर्फ 65 में ही ‘कवच’ की व्यवस्था है। रेल के 19 जोन में से 18 में एक भी ‘कवच’ सिस्टम नहीं है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि ‘कवच’ होता, तो दूरंतो का इंजन 400 किमी पहले ही रुक जाता। रेल मंत्री के स्तर पर खूब दावे किए गए थे कि दो टे्रन की संभावित टक्कर को यह ‘कवच’ रोक सकता है, क्योंकि इसकी प्रौद्योगिकी दुर्घटना को भांप लेती है और टे्रन में स्वचालित ब्रेक लग जाते हैं। बहरहाल यह राजनीति और दोषारोपण का समय नहीं है। घोर त्रासद हादसा हुआ है।
जो जिंदा हैं, उनका बेहतर इलाज किया जाए। यदि सरकार उन्हें कुछ मुआवजा देती है, तो कमोबेश भारत सरकार के खजाने से ‘बूंद भर’ राशि ही निकलेगी। कितनों को संबल मिलेगा और नए सिरे से सक्रिय होने का साहस भी मिलेगा, यह अनुभव प्रधानमंत्री मोदी को है। हादसों के बाद रेल मंत्रियों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफे दिए हैं, लेकिन यह कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है। मंत्री के इस्तीफे से त्रासदी की भरपाई नहीं की जा सकती। बेहतर होगा कि उच्चस्तरीय समिति और रेल सेफ्टी कमिश्नर की अलग-अलग जांच रपटें यथाशीघ्र सामने आ जाएं, ताकि जवाबदेही और जिम्मेदारी तय की जा सके।
By: divyahimachal
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Rani Sahu
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