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- 'ये धुआं-सा कहां से...
सोपान जोशी। दिल्ली के प्रसिद्ध कवि मीर ने एक बार पूछा था, देख तो दिल कि जां से उठता है, ये धुआं-सा कहां से उठता है। गजल का यह मतला कोई ढाई-सौ साल पुराना है। दिल्ली में हम आज भी कुछ ऐसे ही सवाल पूछ रहे हैं, चाहे मीर का अंदाज-ए-बयां न भी हो। एक नया आकलन बताता है कि दिल्ली की जहरीली हवा में सांस लेने वालों की उम्र उम्मीद से करीब दस साल कम रह जाती है। उत्तर भारत के लिए यह आंकड़ा साढ़े-आठ साल है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड वाले अपनी अपेक्षित आयु से सात-आठ साल पहले ही वायु प्रदूषण की बलि चढ़ जाते हैं। इस तरह के तथ्य ढाई दशक से लगातार सामने आ रहे हैं। किंतु सेहत को नुकसान भी बढ़ रहा है और जान को जोखिम भी। झोली भर-भरकर ओलंपिक पदक बटोरने की आकांक्षा करने वाली दिल्ली के हर तीसरे बच्चे का फेफड़ा इस समय कमजोर पाया जा रहा है। वायु प्रदूषण की हमारी समझ जितनी गहरी होती जा रही है, इससे निपटने का हमारा बूता उतना ही घटता दिख रहा है।