सम्पादकीय

भारत को कहां ले आए?

Gulabi
25 Jun 2021 5:03 PM GMT
भारत को कहां ले आए?
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के उन नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया

तो आज कश्मीर, पाकिस्तान, तालिबान और चीन- सब मामलों में एक तरह से भारत सरकार की नीति या पलट चुकी है या गंभीर रूप से डांवाडोल है। ये कहना मुश्किल है कि इसकी जड़ें उसके रणनीतिकारों की नासमझी में है या सरकार किसी ऐसी कमजोरी में, जिसे हम नहीं जानते।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( Narendra Modi Kashmir Issue ) ने कश्मीर के उन नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया, जिन्हें अभी कुछ महीने पहले तक सत्ता पक्ष और उसका समर्थक मीडिया 'गुपकार गैंग' और ना जाने क्या-क्या लांछनों के साथ बुलाता था। उधर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार में सहमति बनी कि दोनों देश मिल कर आतंकवाद और चरमपंथ का मुकाबला करेंगे। उससे पहले इस बात की लगभग पुष्टि हो गई कि भारत तालिबान के साथ सीधी बातचीत कर रहा है। इसी बीच चीन के विदेश मंत्रालय ने ये साफ कर दिया कि लद्दाख में जहां तक पिछले साल चीन की सेना आई थी, वहां से लौटने का उसका कोई इरादा नहीं है। उससे भी ज्यादा चिंताजनक बात उसने यह कही कि ये सेना वहां इसलिए तैनात है ताकि भारतीय फौजें सीमा का उल्लंघन ना कर पाएं। इस बयान पर भारत सरकार की तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। क्या इन सभी बातों में कोई आपसी संबंध है?
सवाल तो कई उठते हैं। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि अभी दो साल पहले तक पाकिस्तान के घर में घुस कर मारने का एलान करने वाली सरकार अचानक उसे आतंकवाद से लड़ाई में सहयोगी कैसे मानने लगी? फिर तालिबान को उसने इतनी वैध शक्ति कब मान लिया कि उससे सीधी बात की जा सके। चीन के मामले में तो गड़बड़ियां शरुआत से जाहिर हैं। जब प्रधानमंत्री ने ही यह कह दिया कि कोई हमारी सीमा में नहीं घुसा है, तो बात वहीं ठहर गई। उसके बाद सेना के अध्यक्ष रह चुके केंद्रीय मंत्री ने जब यह कह दिया कि चीन ने जितनी बार घुसपैठ की है, उससे ज्यादा बार भारत ने की है, तो पिर चीनी कार्रवाइयों को आक्रामक बताने का भारत सरकार का नैतिक अधिकार भी कहां बचा? तो आज कश्मीर, पाकिस्तान, तालिबान और चीन- सब मामलों में एक तरह से भारत सरकार की नीति या पलट चुकी है या गंभीर रूप से डांवाडोल है

Narendra Modi Kashmir Issue : ये कहना मुश्किल है कि इसकी जड़ें उसके रणनीतिकारों की नासमझी में है या सरकार किसी ऐसी कमजोरी में, जिसे हम नहीं जानते। मगर कुल मिलाकर भारत की एक कमजोर और डावांडोल स्थिति बन गई है। क्या जो बाइडेन प्रशासन के सत्ता में आने के बाद 'लोकतांत्रिक देशों' की सूची में अपना दर्ज कराए रखने की चिंता में भारत सरकार सरकार ऐसे समझौते कर रही है, ये प्रश्न ही सहज मन में उठता है.

क्रेडिट बाय नया इंडिया


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