सम्पादकीय

जब आप किसी मुद्दे को बच्चों की नजर से देखेंगे, तो आप अपनी दुनिया में बड़ा बदलाव ला सकेंगे

Gulabi Jagat
15 April 2022 8:33 AM GMT
जब आप किसी मुद्दे को बच्चों की नजर से देखेंगे, तो आप अपनी दुनिया में बड़ा बदलाव ला सकेंगे
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ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
आपने ट्रेन से कई बार यात्राएं की होंगी। पर कितने लोगों ने सोचा होगा कि प्रथम श्रेणी के डिब्बों में रेलवे ने अंग्रेजी, हिंदी और स्थानीय भाषा के साथ रोमन में 'I' लिखा है, जो कि संख्यात्मक रूप से 1 नंबर से मेल खाता है, जबकि द्वितीय श्रेणी में ऐसा नहीं होता। इसमें 'II' लिखा होता है और बिना पढ़े-लिखे लोगों को ज्यादा भ्रमित करता है।
मुंबई की लोकल ट्रेनों में इस तरह के निर्देशों पर ध्यान जाने और प्रश्न उठाने के बाद एक बारह साल की लड़की ने इस गुरुवार को देश की आर्थिक राजधानी की जीवनरेखा में बदलाव करवा दिए। अपनी एक यात्रा में VIII (आठवीं) की छात्रा हुमायरा जी मोरीवाला ने द्वितीय श्रेणी डिब्बों के बाहर रोमन में 'II' लिखा देखा और फिर यात्री सुविधा कार्यकर्ता मंसूर उमर दरवेश के साथ मिलकर इस मामले को आगे ले गईं, इससे अधिकारी प्रभावित हुए और रेलवे को इसे बदलना पड़ा। हुमायारा का रेलवे पर आरोप है कि वह सिर्फ प्रथम श्रेणी में तीन भाषाओं में लिखता है, जबकि द्वितीय श्रेणी में इस तरह की सुविधा नहीं मिलती।
दरवेश को लगा कि यह सही सुझाव है और सभी श्रेणियों में भाषा निर्देशों के मानकीकरण की जरूरत है। वह इस मुद्दे को डिविजनल रेलवे मैनेजर के पास ले गए और रेलवे, हुमायरा और दरवेेश के बीच कई दौर की बातचीत के बाद आखिरकार रेलवे ने यार्ड में द्वितीय श्रेणी में भी तीन भाषाओं में साइन बोर्ड तैयार करना शुरू कर दिए हैं।
पहले चरण में पश्चिम रेलवे ऐसा करेगा और उसके बाद मध्य रेलवे इसे लागू करेगा। मैं दरवेश को व्यक्तिगत तौर पर पिछले 35 सालों से जानता हूं और वह मेरे भी कई सुझावों को बड़े अधिकारियों तक ले गए हैं और उन्हें लागू करा चुके हैं। पर यह पहली बार हुआ है, जब वह आठवीं कक्षा की बच्ची के सुझाव को बोर्ड रूम में ले गए!
मुझे 2011 का एक वाकिया याद आ रहा है, जब एक साढ़े तीन साल की बच्ची लिली रॉबिन्सन ने इसी तरह से एक ब्रांड 'टाइगर ब्रेड' का नाम बदलवाकर 'जिराफ ब्रेड' करवा दिया था, क्योंकि किसी भी ब्रेड का बाहरी हिस्सा (लोफ) जिराफ जैसा दिखता है न कि टाइगर जैसा।
लंदन में एक दिन फुटपाथ पर चलते हुए लिली का ब्रेड की दुकान पर इस ओर ध्यान गया और उसने दुकानदार के पास जाकर इसका नाम बदलने के लिए कहा। 105 साल पुरानी ब्रेड कंपनी का नाम बदलने का अनुरोध मजाकिया लगा, पर उसने उसे कंपनी के हेडक्वार्टर जाने के लिए कहा। वह घर गई और ब्रेड बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी सेंसबरी को माता-पिता की मदद से पत्र लिखा।
सेंसबरी की ग्राहक सेवा टीम के सदस्य 27 वर्षीय क्रिस किंग ने पत्र लिखकर उसे समझाया कि कैसे इसका नाम पड़ा : 'यह टाइगर ब्रेड कहलाती है क्योंकि इसे जिस पहले बेकर ने बनाया था, वह बहुत पहले की बात है और उसे लगा कि इसकी धारियां टाइगर जैसी हैं।' उसने सुनने से इंकार कर दिया और बदलवाने के लिए दबाव डाला।
लिली और क्रिस के बीच हुई बातचीत को उसकी मां ने फेसबुक पर डाल दिया, जो कि वायरल हो गया और इसे बदलने के लिए लंदन के लोगों का दबाव देखते हुए कंपनी ने अचानक इसे स्वीकार कर लिया। जब बोर्ड ने इसे मान लिया तो क्रिस ने वापस लिली को पत्र लिखा, 'मुझे लगता है कि टाइगर ब्रेड का नाम बदलकर जिराफ ब्रेड कर देना बहुत अच्छा आइडिया है- ये ब्रेड टाइगर की धारियों के बजाय जिराफ पर धब्बे जैसी लगती है, क्या ऐसा नहीं है?' और आखिरकार कंपनी ने अपने अस्तित्व के 105 साल बाद ब्रेड का नाम बदल दिया!

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