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- हम कब सुधरेंगे?
महाराष्ट्र में भारी बारिश से 150 के करीब मौत और हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में रविवार को हुआ भूस्खलन जितना त्रासद है, उतना ही खौफनाक। लेकिन इसे महज एक हादसे के रूप में नहीं देखा जा सकता। भारत ही नहीं दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और मौसम की बढ़ती अनियमितता से जुड़े ऐसे हादसे लगातार हो रहे हैं, जिन्हें कभी सदियों में एकाध बार होने वाली परिघटना माना जाता था। उत्तर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हीट वेव और जंगलों की आग से त्रस्त हैं तो चीन और यूरोप में भीषण बारिश और बाढ़ ने तबाही मचा रखी है। ग्लेशियर पिघलने और समुद्र का जलस्तर बढ़ने से डूबने का खतरा झेल रहे छोटे-छोटे द्वीपों के निवासी अलग पूरी दुनिया से अपील कर रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने का कोई उपाय जल्द से जल्द करें। इन सबका एक प्रभाव तो यह हुआ ही है कि कल तक जिन लोगों को पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े सवाल दूर की कौड़ी लगते थे, उनमें से भी एक वर्ग को लगने लगा है कि इन सवालों पर बैठकों और बहसों में उलझे रहने के बजाय तत्काल ठोस कदम उठाने की जरूरत है। धीरे-धीरे ही सही, पर इसका असर सरकारों के फैसलों और उनकी योजनाओं पर भी दिख रहा है।