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- कब खत्म होगी ये जंग
आदित्य नारायण चोपड़ा; राजेंद्र राजन की यह पंक्तियां रूस-यूक्रेन युद्ध पर सटीक बैठती हैं। दुनिया में युद्ध नया नहीं है। इससे पहले भी युद्ध होते रहे हैं। युद्ध में एक हारता है दूसरा जीतता है। कभी-कभी कोई नहीं हारता और कोई नहीं जीतता। सबके हाथ खाली रहते हैं लेकिन युद्ध में मरते हैं जवान और लोग, तहस-नहस हो जाते हैं शहर। सरकारों के लिए मौतें सिर्फ आंकड़ा होती हैं। अनाथ हुए बच्चों के हृदय में क्या गुजर रहा है इसका किसी को कुछ पता नहीं होता। असमय ही विधवा हुई महिलाओं के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं ला सकता। राहत शिविर में रह रहे लोगों का दर्द कोई नहीं बांट सकता। युद्ध के विशाल जबड़ों में समा जाती हैं संस्कृतियां, सभ्यताएं और मानवता। रूस-यूक्रेन युद्ध को चार महीने से ज्यादा हो चुके हैं। इस युद्ध में दोनों देशों के सैनिक और नागरिक मारे जा चुके हैं। बम धमाकों और मिसाइल हमलों से यूक्रेन के कई शहर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं।
रूसी हमले की वजह से यूक्रेन के लगभग 70 लाख लोग पलायन को मजबूर हुए हैं जो उसकी आबादी का लगभग 15 फीसदी है। इसका अर्थ यह है कि हर 6 में से एक यूक्रेनी को अपना देश छोड़ना पड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन 70 लाख लोगों में से लगभग 36 लाख लोग पड़ोसी देश पोलैंड पहुंचे हैं जिसकी वजह से पोलैंड की जनसंख्या में दस फीसदी का उछाल आया है। 2021 में यूक्रेन की आबादी 4.3 करोड़ थी जो अब घटकर 3.7 करोड़ रह गई है। दूसरी तरफ 80 लाख लोग यूक्रेन के भीतर विस्थापित हुए हैं। जिसकी वजह से एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया है। यह संकट इतना विकराल है कि यूक्रेन में हर गुजरते सैकेंड के साथ एक बच्चा युद्ध शरणार्थी बन रहा है। अगर परिस्थितियों को देखें तो रूस यूक्रेन के कई इलाकों पर कब्जा कर चुका है।
रूसी राष्ट्रपति हमेशा ही यह कहते रहे हैं कि यूक्रेन रूस का ही हिस्सा था और यह विशाल देश कभी यूरोप का सबसे बड़ा मुल्क हुआ करता था। 20वीं सदी की शुरूआत में यूक्रेन ने अपनी अलग पहचान बनानी शुरू की। सोवियत संघ के विखंडन के बाद रूस विरोधी पश्चिमी देशों के प्रभाव के कारण यूक्रेन रूस को अपना दुश्मन समझने लगा। रूस ने दावा किया है कि उसका यूक्रेन के पूरे लुहांस्के पर कब्जा हो गया है और हफ्तों की भारी लड़ाई के बाद यूक्रेनी सैनिक लुहांस्के के आखिरी शहर लिसी चांस्क से पीछे हट गए हैं। अब सवाल यह है कि क्या यह जंग थमेगी। कौन नहीं जानता कि यूक्रेन के राष्ट्रपति अमेरिका और पश्चिमी देशों के छलावे में आ गए और उन्हें न चाहते हुए भी युद्ध लड़ना पड़ा। अमेरिका और उसके मित्र देशों ने एक बार फिर विध्वंस का खेल खेला है। अमेरिका और पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियार दे रहे हैं जिसका रूस प्रबल विरोधी रहा है। ऐसा लगता है कि पश्चिमी देश चाहते ही नहीं कि युद्ध खत्म हो और वहां शांति स्थापना के गंभीर प्रयास किए जाएं। यूक्रेन के शहर एक-एक करके मलबे में तब्दील हो रहे हैं। युद्ध की वजह से दुनियाभर के देशों में खाद्य संकट और पैट्रोल डीजल का संकट खड़ा हो चुका है और अभी तक युद्ध का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। यूक्रेन में तबाही मचा रहा रूस भले ही युद्ध जीत ले लेकिन वह लोगों के दिलों को कभी नहीं जीत पाएगा।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन तब तक युद्ध विराम नहीं करेंगे जब तक यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की देश छोड़कर भाग नहीं जाते या फिर मारे नहीं जाते। अमेरिकी प्रभुत्व वाले तीस देशों के सैन्य संगठन नाटो एक बार फिर संगठित होकर स्वयं को जीवित रखने के लिए सक्रिय हैं। रूसी राष्ट्रपति का यही कहना था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बने उनकी आशंकाएं भी सही हैं। जिस तरह से छोटे देशों में नाटो अपने स्थायी अड्डे बनाने में लगा हुआ है उससे पूरे विश्व में सैन्यीकरण को बढ़ावा मिलने की आशंका बढ़ गई है। यही कारण है कि 1965 के बाद परमाणु युद्ध की धमकी की गूंज सुनाई दी है। अब युद्ध थकाने वाला साबित हो रहा है। तबाही और बर्बादी की तस्वीरें ही सामने आ रही हैं। दावे कोई भी कितना क्यों न करे युद्ध से रूस को भी भारी नुक्सान हुआ है। यूक्रेन अमेरिका और मित्र देशों के हथियारों के बल पर अभी तक युद्ध में टिका हुआ है। ये जंग कब खत्म होगी। भविष्य में क्या तय होगा इसकी कोई रूपरेखा सामने नहीं आ रही। कौन जीतता है कौन हारता है लेकिन तब तक मानवता भयंकर विध्वंस का शिकार हो चुकी होगी।