सम्पादकीय

सीवर के मौतघर बनने पर कब लग पाएगा पूर्ण विराम, कौन है इसका जिम्मेदार?

Rani Sahu
13 Oct 2022 5:12 PM GMT
सीवर के मौतघर बनने पर कब लग पाएगा पूर्ण विराम, कौन है इसका जिम्मेदार?
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
By पंकज चतुर्वेदी
छह अक्तूबर को जिस समय दिल्ली हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सतीशचंद्र की पीठ यह कह रही थी कि दुर्भाग्य है कि आजादी के 75 साल बाद भी मैला हाथ से ढोने की प्रथा लागू है व इस संबंध में कानून की परवाह नहीं की जा रही है और दिल्ली विकास प्राधिकरण को निर्देश दिए थे कि बीते नौ सितंबर को मुंडका में सीवर सफाई के दौरान मारे गए दो श्रमिकों के परिवार को तत्काल दस-दस लाख रुपए मुआवजा दिया जाए, ठीक उसी समय दिल्ली से सटे फरीदाबाद के एक अस्पताल के सीवर सफाई में चार लोगों की मौत की खबर आ रही थी।
यह सरकारी आंकड़ा भयावह है कि गत बीस सालों में देश में सीवर सफाई के दौरान 989 लोग जान गंवा चुके हैं। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट कहती है कि सन्‌ 1993 से फरवरी 2022 तक देश में सीवर सफाई के दौरान सर्वाधिक लोग तमिलनाडु में 218 मारे गए। उसके बाद गुजरात में 153 और बहुत छोटे से राज्य दिल्ली में 97 मौत दर्ज की गई। उप्र में 107, हरियाणा में 84 और कर्नाटक में 86 लोगों के लिए सीवर मौतघर बन गया।
ऐसी हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है। हर बार कहा जाता है कि यह लापरवाही का मामला है। पुलिस ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। यही नहीं, अब नागरिक भी अपने घर के सैप्टिक टैंक की सफाई के लिए अनियोजित क्षेत्र से मजदूरों को बुला लेते हैं और यदि उनके साथ कोई दुर्घटना होती है तो न तो उनके आश्रितों को कोई मुआवजा मिलता है, न ही कोताही करने वालों को कोई समझाइश। शायद यह पुलिस को भी नहीं मालूम है कि सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है। समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक-कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है।
यह विडंबना है कि सरकार व सफाई कर्मचारी आयोग सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के नारों से आगे इस तरह से हो रही मौतों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट ने सात साल पहले सीवर की सफाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनकी परवाह और जानकारी किसी को नहीं है। सरकार ने भी सन्‌ 2008 में एक अध्यादेश लाकर गहरे में सफाई का काम करने वाले मजदूरों को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने की अनिवार्यता की बात कही थी। नरक कुंड की सफाई का जोखिम उठाने वाले लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था के कई कानून हैं और मानव अधिकार आयोग के निर्देश भी। लेकिन इनके पालन की जिम्मेदारी किसी की नहीं।
Rani Sahu

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