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- प्रदेश की खेल नीति कब...
पिछले चार सालों से हिमाचल प्रदेश में खेल नीति को नया स्वरूप देने की बात चल रही है। अभी तक पूरा मसौदा तैयार तो हो गया है, मगर उसे कानूनी जामा नहीं पहनाया गया है। खेल नीति घोषित करने से पहले सुनिश्चित किया जाए कि इस नीति में वो सब है जो हिमाचल की खेलों को ऊपर उठा सके। उपचुनाव एक सप्ताह में पूरे हो जाएंगे, उसके बाद सरकार को चाहिए कि वह इस बहुत देर से प्रतीक्षा करवा रही खेल नीति को जल्दी ही प्रदेश के खिलाडि़यों को समर्पित कर दे। प्रदेश के तत्कालीन हुकमरानों ने खेल विभाग को कभी खेल प्राधिकरण तो कभी खेल संस्थान बनाने की वकालत की है, मगर हिमाचल प्रदेश में खेलों की हकीकत सब के सामने है। हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए विश्व स्तरीय खेल ढांचा तो बन कर तैयार हो चुका है, मगर प्रशिक्षकों व अन्य सुविधाओं के अभाव में वहां पर उस तरह का प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ नहीं हो पाया है। हिमाचल प्रदेश में अभी तक भी खेल संस्कृति का अभाव साफ देखा जा सकता है। धूमल सरकार में बनी खेल नीति में हिमाचल के खिलाडि़यों को सरकारी नौकरी में तीन प्रतिशत आरक्षण बहुत बड़ी सौगात है। अब दो दशक बाद विभिन्न पहलुओं के ऊपर नई खेल नीति में सुधार किया जा रहा है। पिछले साल खेल मंत्री की धर्मशाला के मिनी सचिवालय में नई खेल नीति के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके खिलाडि़यों, प्रशिक्षकों व खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ एक मैराथन बैठक हुई। इस बैठक में खेल उत्थान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई । इसके बाद भी खेल मंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर विभिन्न खेल संघों से मिल कर लंबी चर्चा कर नई खेल नीति के लिए व्यावहारिक पहलुओं तक जाने की सोची थी, मगर कोरोना के दोबारा कहर से वह सब नहीं हो पाया है। इसके बाद अब खेल विभाग के अधिकारी व खेल के जानकार अपनी खेल नीति को नए स्वरूप तक ले जाने के लिए संघर्षशील हो गए हैं। खेलों में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो, इससे जब हजारों विद्यार्थी फिटनेस कार्यक्रम से गुजरेंगे तो उनमें कुछ अच्छे खिलाड़ी भी मिलेंगे।