सम्पादकीय

पेट्रोलियम पदार्थो के मूल्यों में वृद्धि का सिलसिला कब थमेगा?

Gulabi Jagat
30 March 2022 6:24 AM GMT
पेट्रोलियम पदार्थो के मूल्यों में वृद्धि का सिलसिला कब थमेगा?
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कोरोना महामारी से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था को जिस तरह यूक्रेन संकट का सामना करना पड़ा
कोरोना महामारी से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था को जिस तरह यूक्रेन संकट का सामना करना पड़ा, उसके नतीजे में महंगाई बढ़नी ही थी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वृद्धि से दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत भी जूझ रहा है। चूंकि भारत अपनी खपत का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल आयात करता है, इसलिए उस पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ा है।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि पेट्रोलियम पदार्थो के मूल्यों में वृद्धि का सिलसिला कब थमेगा, लेकिन यदि वह थमा नहीं तो महंगाई की चुनौती और अधिक गंभीर होना तय है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि महंगाई यूक्रेन संकट के पहले से ही सिर उठा रही थी, क्योंकि कोरोना पर लगाम लगने के कारण खपत में वृद्धि हो रही थी और उसके चलते अनेक वस्तुओं के दाम बढ़ रहे थे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह कहना सही है कि भले ही यूक्रेन युद्ध दुनिया के एक कोने में लड़ा जा रहा हो, लेकिन सभी देशों पर उसका असर कुछ वैसे ही पड़ रहा है, जैसे कि कोरोना महामारी का पड़ा, लेकिन समस्याओं का उल्लेख करने मात्र से वे हल होने वाली नहीं हैं।
सरकार को ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता है, जिससे यूक्रेन संकट से उपजी परिस्थितियों के प्रभाव को कम किया जा सके। यह ठीक है कि सरकार के पास सीमित विकल्प हैं, लेकिन उसे जो कुछ संभव हो, वह तो करना ही होगा। रिजर्व बैंक को भी यह देखना होगा कि वह अपने स्तर पर क्या कर सकता है? सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि खाने-पीने की सामग्री के साथ अन्य अनेक वस्तुओं के दाम भी बढ़ रहे हैं और इससे आम लोगों का बजट बिगड़ रहा है।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि कच्चे तेल के दामों में वृद्धि कब तक जारी रहेगी, इसलिए सरकार को वैकल्पिक उपायों की तलाश करनी चाहिए। इस क्रम में उसे यह भी देखना होगा कि आयातित पेट्रोलियम पदार्थो पर निर्भरता कैसे घटाई जाए? उसे अपने ऊर्जा हितों को सुरक्षित करने के जतन भी करने होंगे। इस पर हैरत नहीं कि विपक्षी दल संसद से लेकर सड़क तक महंगाई को लेकर सरकार पर हमलावर हैं। उन्हें इस मसले को उठाना ही चाहिए, लेकिन केवल सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करने से बात बनने वाली नहीं।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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