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तवलीन सिंह: किसी हिंदी सिनेमा में रुपए से भरे कमरे दिखते थे तो हम कहते कि घटिया सिनेमा है जो भोले-भाले दर्शकों के मनोरंजन के लिए कुछ भी दर्शाते हैं। लेकिन जब असल में किसी बड़े राजनेता की दोस्त के घर में दिखते हैं रुपए से भरे कमरे तो यह मनोरंजन की बात नहीं है, चिंता की बात है। अब तो उस मंत्री को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने निकाल दिया है मंत्रिमंडल से और अपने तृणमूल कांग्रेस पार्टी से भी, लेकिन रुपए से भरे कमरों का दृश्य भुलाना मुश्किल है।
अपनी तरफ से मैं यह जरूर कहना चाहूंगी कि पश्चिम बंगाल के उस मंत्री के तथाकथित दोस्त के घर में 21 करोड़ रुपए नकद देख कर मैं कुछ मिनटों के लिए हैरान रह गई थी। हैरान रहने के लिए समय कम मिला, इसलिए कि अगले दिन मालूम पड़ा कि पार्थ चटर्जी की दोस्त अर्पिता मुखर्जी के घर से 28 करोड़ रुपए और बरामद हुए हैं नकद में, पांच किलो सोना और लाखों रुपए के गहनों के साथ।
यह कोई नई बात नहीं है कि किसी आला राजनेता के पास इस तरह काला धन मिलना। कई बार ऐसा हुआ है, लेकिन समय आ गया है कि हम अपने जन प्रतिनिधियों से जवाबदेही मांगना शुरू करें, ताकि इस तरह की लूटमार बंद हो जाए। हम सब देखते हैं कि लोकसभा या विधानसभा पहुंचने के फौरन बाद हमारे सांसद और विधायक अचानक कितने अमीर हो जाते हैं। हमारी आंखों के सामने बनते हैं उनके आलीशान मकान।
देखते-देखते वे लोग, जिनके पास मारुति गाड़ी खरीदने की क्षमता नहीं होती थी, बेहद महंगी गाड़ियों के काफिलों में घूमने लगते हैं। ऐसा देखते तो हैं हम, लेकिन मालूम नहीं क्यों, जवाबदेही का सिलसिला कभी शुरू भी नहीं होता है। जब बहुत बड़ा घोटाला होता है, जैसे अभी बंगाल में हुआ है, तो सुर्खियों में रहता है कुछ दिन, फिर ठंडा हो जाता है। कानूनी कार्यवाही इतनी लंबी चलती है कि लोग भूल जाते हैं कब क्या हुआ था।
नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने ऊंचे स्वर में कहा था- 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा'। वादा यह भी किया कि विदेशों में लूटा हुआ देश का धन वापस लाया जाएगा और यह धन इतना ज्यादा है कि अगर वापस लाया जाता है तो संभव है कि भारत के हर गरीब नागरिक के बैंक खाते में पंद्रह लाख रुपए डाले जाएंगे।
इसके बाद शुरू हुई मुहिम गरीबों के बैंक खाते खोलने की और गरीब से गरीब लोग भी खाते खोल बैठे, इस उम्मीद में कि सरकार कभी न कभी इन खातों में इतना पैसा डाल देगी कि कम से कम अपना घर बन सके। मैंने कई साल मुंबई के सड़कों पर रहने वाले लोगों से वास्ता रखा है और यकीन मानिए कि उनको पूरा विश्वास था कि मोदी जी उनके खातों में पैसा विदेशों से वापस लाकर डालेंगे।
इसलिए जब नोटबंदी आई, गरीब देशवासियों ने एतराज नहीं किया, क्योंकि प्रधानमंत्री ने उनको आश्वस्त किया था कि तकलीफ तो होगी थोड़ी-बहुत कुछ दिनों के लिए, लेकिन उसके बाद काला धन जमा करने की प्रथा बिल्कुल खत्म हो जाएगी। ऐसा नहीं हुआ है।
हम देख ही रहे हैं। लेकिन अब मोदी भक्त इस झूठ को साबित करने में लग गए हैं कि काला धन सिर्फ उन राज्यों में मिलता हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी का शासन नहीं है। कुछ महीने पहले कोई बीस करोड़ रुपए पाए गए थे झारखंड में पूजा सिंघल के घर से, जो जांच संस्थाएं कहती हैं कि वह लूटा गया था 'मनरेगा' योजना से।
सच यह है कि काला धन वसूल होता है तब, जब छापे पड़ते हैं आला अधिकारियों और राजनेताओं के घर और जाहिर है कि भाजपा के मुख्यमंत्रियों के घर छापे नहीं पड़ेंगे जब तक प्रधानमंत्री भारतीय जनता पार्टी से होंगे। सच यह भी है कि भ्रष्टाचार मोदी के आने के बाद कम नहीं हुआ है, लेकिन उसे छिपाने के रास्ते थोड़े से पेचीदा हो गए हैं।
जो लोग अपने घरों में छिपा कर रखते हैं नकद में अपना काला धन, वे अनाड़ी हैं। अक्लमंद खिलाड़ी अपने काले धन को इन दिनों छिपा कर रखते हैं कारोबारों में, बड़ी-बड़ी जायदाद में। और जो सबसे होशियार हैं वे अपने धन को छिपाते हैं बड़े-बड़े उद्योगपतियों की जायज कंपनियों में, ताकि उनको पकड़ना मुश्किल नहीं, नामुमकिन हो।
सवाल यह है कि जिस देश में करोड़ों लोगों के पास दो वक्त की रोटी के लिए पैसा नहीं है, एक टूटी-फूटी छत से सिर को ढकने की क्षमता नहीं है, क्या उस देश में ऐसे लोग होने चाहिए जो अपने घरों में करोड़ों रुपए जमा करते हों और वह भी ऐसे लोग जो चुने जाते हैं जनता की सेवा करने के लिए?
सच पूछिए तो मुझे बंगाल के इस मंत्री के घर में इतना पैसा देख कर कुछ ज्यादा तकलीफ इसलिए हुई कि कुछ ही दिन पहले मुझसे उधार लेने के लिए मेरा एक बिहारी मुलाजिम आया था, जिसने मुझे कहा कि उसको सख्त जरूरत है पैसों की, क्योंकि उसका घर आंधी में गिर गया है। गांव में अब उसके माता-पिता इधर-उधर भटकने पर मजबूर हो गए हैं। मैंने जब उससे पूछा कि उसे कितने पैसे चाहिए तो उसने आंखें नीची करके कहा कि 'पचास हजार रुपए'।
शर्म से मेरी आंखें नीची हो गईं यह सुन कर। यह सोच कर कि इतनी छोटी रकम के लिए लोग तड़पते हैं अपने भारत महान में, जहां मंत्रियों के दोस्तों के घर मिलते हैं करोड़ों रुपए गठरियों में रखे हुए। पार्थ चटर्जी को शर्म आए न आए, हम सबको आनी चाहिए इस तरह की असमानता को देख कर और वह भी ऐसे समय, जब देश में आजादी की अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है धूमधाम से।