सम्पादकीय

दो वर्षों से बंद शिमला बुक कैफे कब खुलेगा

Rani Sahu
17 Nov 2021 6:56 PM GMT
दो वर्षों से बंद शिमला बुक कैफे कब खुलेगा
x
एक समय था जब राजधानी शिमला के लेखक और साहित्यिक संस्थाएं स्थानाभाव के कारण न तो गोष्ठियां कर पा रही थीं

एक समय था जब राजधानी शिमला के लेखक और साहित्यिक संस्थाएं स्थानाभाव के कारण न तो गोष्ठियां कर पा रही थीं और न ही साहित्यिक विचार-विमर्श के लिए कोई ऐसी जगह उपलब्ध थी जहां आप बिना रोकटोक आजादी से मिल-बैठ सकते थे। जब से शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर का नवीकरण हुआ उसमें उपलब्ध सभागारों के किराए में इतनी बढ़ोतरी की गई कि लेखकों और साहित्यिक संस्थाओं से वह दूर होता चला गया। गेयटी में साहित्यिक गोष्ठियों के लिए केवल कान्फ्रेंस हॉल ही सबसे उपयुक्त है जिसमें 50 के करीब लेखक और श्रोता बैठ सकते हैं, लेकिन उसका किराया प्रतिदिन दस हजार रुपए है, फिर उसे आप दो घंटों के लिए लें या पूरे दिन के लिए। दूसरी समस्या यह है कि इसमें जलपान प्रतिबंधित है। समय-समय पर हम प्रदेश सरकार व भाषा विभाग से यह मांग करते रहे हैं कि गेयटी के किराए साहित्यिक संस्थाओं के लिए कम कर दिए जाएं, लेकिन हमेशा ही हमारा अनुरोध अनसुना किया जाता रहा, इसलिए एक गंभीर समस्या हमारे सामने थी कि समय-समय पर हम लेखक कहां बैठें और गोष्ठियां करें। यही नहीं, शिमला ऐसी जगह है जहां देश-विदेश से लेखक भ्रमण करने आते रहते हैं और उनकी इच्छा रहती है कि वे स्थानीय लेखकों के साथ चर्चा-परिचर्चा करें और उनके साथ इत्तमिनान से बैठें। लेखकों और साहित्यिक संस्था का यह सपना अचानक उस समय पूर्ण हो गया जब शिमला नगर निगम ने शिमला रिज मैदान के ऊपर टका बैंच के स्थान पर छोटे से बुक कैफे का निर्माण किया।

यह कैफे आमजन के लिए 12 अप्रैल, 2017 को लोकार्पित हुआ और उसके बाद यहां साहित्यिक व सांस्कृतिक चहल-पहल शुरू हो गई। सवाल इसके संचालन का था। निःसंदेह यदि यह प्राइवेट सेक्टर में जाता तो महज एक चाय की दुकान बन कर रह जाता और पर्यटन विभाग इसे चलाता तो यह एक रेस्तरां से ज्यादा कुछ नहीं होता। लेकिन यह खुशी की बात थी कि इस कैफे के संचालन के लिए साहित्य प्रेमी पुलिस महानिदेशक (कारागार व सुधार सेवाएं) श्री सोमेश गोयल जी आगे आए और उन्होंने इस कैफे को एक लघु पुस्तकालय और सभागार के साथ छोटे जलपान गृह में परिवर्तित कर दिया। श्री सोमेश गोयल पहले ही हिमाचल की जेलों में अभूतपूर्व सुधार के लिए जाने जाते रहे हैं। वे विख्यात लेखक और छायाकार भी हैं। उन्होंने हिमाचल की प्रत्येक जेल को आदर्श सुधार गृहों में परिवर्तित किया है जहां कारागार में रह रहे बंदियों के हर हाथ को काम दिया गया है। उन्हीं में से कुछ ईमानदार और कर्मठ इन्मेट्रस को उन्होंने इस बुक कैफे को चलाने के लिए तैनात कर दिया। मैंने इस कैफे में जब साहित्यिक गतिविधियां शुरू कीं तो सबसे पहले अपने दो लेखक मित्रों डा. कुल राजीव पंत और चर्चित कवि आत्मा रंजन से विचार-विमर्श किया। उसके बाद शिमला के लेखकों से दूरभाष, सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क साधते रहे कि वे आएं और किताबें भेंट करने के साथ लघु साहित्यिक गोष्ठियां भी शुरू करें। उसके बाद देश के लेखकों के लिए भी फेसबुक के माध्यम से एक संदेश भेजा कि वे अपनी-अपनी पुस्तकें इस कैफे के लिए भेंट करें।
कुछ ही दिनों में प्रदेश व देश के लेखकों के सहयोग से इस बुक कैफे की शेल्फें अंग्रेजी व हिंदी की पुस्तकों से भर गईं और हमारी गोष्ठियों की अच्छी शुरुआत हुई। धीरे-धीरे जब यह बात मीडिया में उजागर हुई तो साहित्य जगत का इस ओर विशेष ध्यान गया। अब हमारी गोष्ठियों से यह कैफे इतना चर्चित हो गया कि शिमला आने वाला हर लेखक न केवल हमें तलाशता यहां पहुंचता परंतु अपनी पुस्तक भेंट के साथ अपना रचनापाठ करना भी शिमला में एक उपलब्धि के तौर पर लेता। हमारा प्रयास रहा है कि हम प्रत्येक गोष्ठी में स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों को जोड़ते रहें और उन्हें साहित्य की ओर आकर्षित करें। और हम इस उद्देश्य में कामयाब भी हुए हैं। हमारी दो संस्थाओं, जिनमें हिमालय साहित्य संस्कृति और पर्यावरण मंच और नवल प्रयास शामिल थे, ने मिलकर प्रत्येक सप्ताह गोष्ठियों का सिलसिला जारी रखा। साथ ही यदि हिमाचल के किसी कोने या बाहर से कोई लेखक शिमला आता तो उसके सम्मान में हम तत्काल गोष्ठी आयोजित कर दिया करते थे। इस तरह यह एक साहित्यिक लैंडमार्क बन गया और निःसंदेह जलपान की बिक्री में भी बढ़ोतरी होती रही। उच्च अध्ययन संस्थान के फैलोज भी निरंतर हमारी गोष्ठियों में भाग लेते रहे हैं। और कई बार ऐसा संयोग हुआ है कि हमारी गोष्ठियों के मध्य विदेशों के पर्यटक लेखक भी शामिल हुए हैं। इस बुक कैफे और साहित्यिक गोष्ठियों की देश भर में चर्चा तो हुई, साथ ही यह कैफे शिमला में स्थित उच्च अध्ययन संस्थान, गेयटी थियेटर, हनुमान मंदिर जाखू, मॉल और रिज तथा क्राइस्ट चर्च जैसे दुर्लभ लैंडमार्क के साथ आ खड़ा भी हुआ था। इसकी साहित्यिक दृष्टि से एक अलग पहचान निर्मित हुई थी। अचानक अगस्त, 2019 में जब इस बुक कैफे को निजी हाथों सौंपने का निर्णय नगर निगम द्वारा लिया गया तो हिमाचल ही नहीं, देश भर के लेखक चकित रह गए।
हमने हिमालय साहित्य मंच के बैनर तले इसे बचाने की पुरजोर मुहिम शुरू कर दी। हमने आयुक्त नगर निगम शिमला और प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर को भी निवेदन पत्र ही नहीं दिए, बल्कि उनसे मुलाकात करके भी सारी स्थिति स्पष्ट की। आश्वासन देने के बावजूद शिमला बुक केफै बिकने से नहीं बचाया जा सका। इसके पीछे प्रदेश व देश के एक बड़े राजनेता का हाथ बताया गया जिनके आशीर्वाद से यह किसी चहेते व्यापारी को दे दिया गया। उन्होंने बजाय इसे बुक कैफे की तर्ज पर चलाने के, एक ढाबे में बदल दिया। कुछ अर्से तक वे इसे चलाते रहे, लेकिन बताया गया कि वे निगम द्वारा तय लीज मनी के मुताबिक बिक्री नहीं कर पाए और घाटा बता कर इसे बंद कर दिया। अब लगभग दो वर्षों से इस बुक कैफे में ताले लटके हैं। नगर निगम न इसे जेल विभाग को दे पा रहा है, न ही इसे लीज पर। निजी हाथों बेच कर यह बुक कैफे फिर से एक 'राजनीतिक' ढाबा बन जाएगा, जिसका न कोई महत्त्व होगा और न ही उसका कोई उद्देश्य रह पाएगा। कितना अच्छा हो कि बजाय निजी हाथों सौंपने के, इसे पुनः जेल विभाग को सौंप दिया जाए ताकि इसका संचालन सुचारू रूप से हो और यह पुनः एक साहित्यिक लैंडमार्क बन जाए।
एसआर हरनोट
साहित्यकार


Next Story