- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- दो वर्षों से बंद शिमला...
एक समय था जब राजधानी शिमला के लेखक और साहित्यिक संस्थाएं स्थानाभाव के कारण न तो गोष्ठियां कर पा रही थीं और न ही साहित्यिक विचार-विमर्श के लिए कोई ऐसी जगह उपलब्ध थी जहां आप बिना रोकटोक आजादी से मिल-बैठ सकते थे। जब से शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर का नवीकरण हुआ उसमें उपलब्ध सभागारों के किराए में इतनी बढ़ोतरी की गई कि लेखकों और साहित्यिक संस्थाओं से वह दूर होता चला गया। गेयटी में साहित्यिक गोष्ठियों के लिए केवल कान्फ्रेंस हॉल ही सबसे उपयुक्त है जिसमें 50 के करीब लेखक और श्रोता बैठ सकते हैं, लेकिन उसका किराया प्रतिदिन दस हजार रुपए है, फिर उसे आप दो घंटों के लिए लें या पूरे दिन के लिए। दूसरी समस्या यह है कि इसमें जलपान प्रतिबंधित है। समय-समय पर हम प्रदेश सरकार व भाषा विभाग से यह मांग करते रहे हैं कि गेयटी के किराए साहित्यिक संस्थाओं के लिए कम कर दिए जाएं, लेकिन हमेशा ही हमारा अनुरोध अनसुना किया जाता रहा, इसलिए एक गंभीर समस्या हमारे सामने थी कि समय-समय पर हम लेखक कहां बैठें और गोष्ठियां करें। यही नहीं, शिमला ऐसी जगह है जहां देश-विदेश से लेखक भ्रमण करने आते रहते हैं और उनकी इच्छा रहती है कि वे स्थानीय लेखकों के साथ चर्चा-परिचर्चा करें और उनके साथ इत्तमिनान से बैठें। लेखकों और साहित्यिक संस्था का यह सपना अचानक उस समय पूर्ण हो गया जब शिमला नगर निगम ने शिमला रिज मैदान के ऊपर टका बैंच के स्थान पर छोटे से बुक कैफे का निर्माण किया।