सम्पादकीय

दुविधा,टालमटोल और अनिर्णय के भंवर से कब बाहर निकलेगी कांग्रेस !

Rani Sahu
26 April 2022 4:51 PM GMT
दुविधा,टालमटोल और अनिर्णय के भंवर से कब बाहर निकलेगी कांग्रेस !
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जिन लोगों ने टाइटेनिक फिल्म देखी होगी उन्हें याद होगा कि जब जहाज डूब रहा था

Faisal Anurag

जिन लोगों ने टाइटेनिक फिल्म देखी होगी उन्हें याद होगा कि जब जहाज डूब रहा था तब कप्तान धुन बजवा रहा था ताकि यात्री घबड़ाएं नहीं. कांग्रेस के साथ कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है. किसी भी मामले में निर्णय लेने में थका और उबा देने वाली देरी लाइलाज मर्ज की तरह उस पर हावी है. प्रशांत किशोर के प्रकरण में जो देरी दिख रही है उससे तो ऐसा ही जाहिर होता है. इसके साथ ही गुजरात में कुछ ही महीनों के भीतर चुनाव होने वाले हैं. गुजरात में कांग्रेस के भविष्य के बतौर तामझाम के साथ लाए गए हार्दिक पटेल उपेक्षा का आरोप लगाते हुए दलबदल के किनारे खड़े हैं
पूरा राज्य और केंद्रीय नेतृत्व ऐसा खामोश है मानो हार्दिक पटेल के आने या जाने से पार्टी के भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट तो यह है कि उस पर एक ऐसा समूह हावी है जो पार्टी में न तो नए नेतृत्व को ताकतवर होने देता है और न ही उसे टिकने दे रहा है. कमोवेश सभी राज्यों में यही हाल है.यदि प्रशांत किशोर के संदर्भ की चर्चा की जाए तो उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी की मजबूती देने के लिए एक कार्ययोजना दी थी.
ऐसा लगा था कि पार्टी अतीत को भूल कर नए सिरे से उठ खड़ा होना चाहती है. लेकिन कमेटियों के मकड़जाल में यह कार्य योजना प्रस्ताव फंसा हुआ है. इससे जाहिर होता है कि कांग्रेस एक ऐसे मर्ज का शिकार हो गयी है जिसमें वह जोखिम लेना ही नहीं चाहती. 2014 के बाद से हुए 45 चुनावों में 41 वार हार चुकी है लेकिन वह चुनौती का मुकाबला करने के बजाय पार्टी नौकरशाही में फंसी हुयी है. कांग्रेस पार्टी की नौकरशाही न जाने कब से जंग लगे हथियार की तरह धार खो चुकी है. वह न तो भविष्य के लिए सपना देखती है और न ही यथास्थिति को तोड़ने की दिशा में उठ खड़ी होती है
राहुल गांधी ने कुछ नजदीकी नेताओं के पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद कहा था कि जो निडर है वही कांग्रेस के साथ है. पार्टी के बाहर युवाओं का एक बड़ा तबका है जो कांग्रेस के साथ मिल कर लोकतंत्र और संविधान बचाने की लड़ाई लड़ना चाहता है. प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश चुनाव के समय लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा देकर एक माहौल बनाया था लेकिन करारी शिकस्त के बाद कांग्रेसी ही दबी जुबान में प्रिंयंका की रणनीति पर सवाल उठाने लगे हैं.
इस समय कांग्रेस के समक्ष सबसे बड़ा सवाल प्रशांत किशोर की भूमिका तय करने की है. लेकिन कांग्रेस जिस गति से चल रही है इससे ऐसा नहीं लगता कि हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव की तैयारी का वह पर्याप्त अवसर दे पाएगी. कांग्रेस की बाधाएं बहुआयामी हैं. एक तो नेतृत्व में सोनिया गांधी पहले की तरह सक्रिय नहीं रह पा रही हैं. वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी खुद की भूमिका को लेकर असमंजस में है. अभी दस बारह दिनों पहले ही उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि उन्हें सत्ता की चाह नहीं है क्योंकि उन्होंने जन्म के बाद से ही सत्ता को करीब से देखा है.
एक ऐसे समय में जब कांग्रेस के पास किसी ऐसा नेता का अभाव है जो देश के लोगों के साथ सीधा संवाद बना सके. राहुल गांधी का बयान दुविधा को ही दिखा रहा है. राहुल गांधी भले ही पीपुल्स कंटेक्ट की विधा में दक्षता हासिल नहीं की हो लेकिन उन्होंने भारत के सवालों पर सत्ता के खिलाफ खुलकर बोलने का साहस दिखाया है. यहां तक कि वे कांग्रेस के एकमात्र नेता हैं जो आरएसएस भाजपा की विचारधारा के खिलाफ कांग्रेस विचारधारा की बात करते हैं और आरएसएस भाजपा पर कड़ा प्रहार भी करते हैं.
वे कांग्रेस के एकमात्र नेता हैं जो नरेंद्र मोदी के आकर्षण के संजाल से बाहर हैं और उनकी नीतियों पर खुल कर प्रहार करते हैं. लेकिन सिर्फ इसी आलेाचना के साहस से कांग्रेस एक ताकतवर प्रतिद्वंदी के बतौर 2024 में दावेदारी नहीं कर सकेगी.कांग्रेस के ढांचे को पूरी तरह बदलने की जरूरत है.कांग्रेस को अपने ही इतिहास से सीखने की जरूरत है. इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया के बतौर सिंडिकेट ने प्रधानमंत्री बनवाया था. लेकिन इंदिरा गांधी ने सिंडिकेट को ही पार्टी से बाहर कर एक नए कांग्रेस को जन्म दिया.
जिस समय इंदिरा गांधी ने यह कदम उठाया वह पार्टी में बेहद कमजोर थीं. लेकिन इसी कदम ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस को नवजीवन दिया.यह तो अब कांग्रेस को भीतर से जानने वाले भी मानने लगे हैं कि पार्टी को कायाकल्प की जरूरत है. कांग्रेस को अपने जमीनी प्रभाव वाले नेताओं के पलायन को रोकने की जरूरत है और वैचारिक धरातल पर जोखिम उठाए बगैर टाइटेनिक को डूबने से बचाया नहीं जा सकता है.


Rani Sahu

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