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रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही दुनिया में गेहूं का संकट पैदा हुआ है
देविंदर शर्मा,
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही दुनिया में गेहूं का संकट पैदा हुआ है। दुनिया का 25 प्रतिशत गेहूं इन्हीं देशों से आता है। अब युद्ध की वजह से गेहूं का निर्यात प्रभावित हो गया है। यूक्रेन ने कुछ देशों को गेहूं दिया है, पर रूस शायद ऐसा नहीं कर पा रहा है। रूस पर अनेक तरह के प्रतिबंध लग गए हैं और उसके पास बंदरगाह की सुविधा का भी अभाव है। युद्ध की वजह से कम से कम 30 देश ऐसे हैं, जहां खाद्यान्न सुरक्षा की समस्या खड़ी हो गई है। यह भी बताते चलें कि कुल मिलाकर अब दुनिया के 53 देशों में खाद्यान्न संकट है। वैश्विक तौर पर देखा जाए, तो साल 2022 में जो अभाव की स्थिति बनी है, उससे 20 करोड़ लोग भूख के दायरे में आ गए हैं।
जब विश्व में गेहूं का संकट पैदा हुआ, तब भारत से उम्मीद की जाने लगी थी। भारत के पास अतिरिक्त गेहूं तो रहता है, लेकिन भारत गेहूं का कोई बहुत बड़ा निर्यातक नहीं है। गेहूं निर्यात में भारत दुनिया में आठवें स्थान पर आता है। तो यह कतई संभव नहीं है कि भारत खाद्यान्न के वैश्विक संकट का समाधान कर पाए। भारत के पास इतना गेहूं नहीं है कि पूरी दुनिया की पूर्ति हो जाए। दुनिया में खाद्यान्य के रूप में चावल के बाद गेहूं की ही सर्वाधिक खपत है।
बहरहाल, गेहूं संकट के पीछे अभी पहला कारण तो युद्ध है। दूसरी कारण यह है कि भारत में मार्च के महीने में तापमान बढ़ा, तो इसकी पैदावारमें काफी कमी आ गई है। सरकार ने भी गेहूं की पैदावार का अपना डाटा संशोधित किया है। गेहूं उत्पादन के अनुमान को 11.10 करोड़ टन से घटाकर 10.50 करोड़ टन कर दिया गया है। लेकिन उम्मीद की जाती है कि इस फसली चक्र के अंत तक इस अनुमान को फिर संशोधित करना पड़ेगा। गेहूं की जो मात्रा देश में मौजूद रहनी चाहिए, उसके मद्देनजर ही सरकार ने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। इसमें कोई शक नहीं है कि यदि हम बिना शर्त या बाधा के गेहूं निर्यात को मंजूरी देते हैं, तो आने वाला वर्ष गेहूं संकट का होगा। फिर भी मेरा मानना है कि भारत ने जो प्रतिबंध लगाया है, वह बिल्कुल समय से है और सही है। आज सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि देश में गेहूं पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि 80 करोड़ लोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा नीति के तहत आते हैं। इसके अलावा कुछ पता नहीं कि आने वाले समय में मौसम क्या करवट लेगा, क्या महामारी फिर वापसी करेगी? इन तमाम आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने बिल्कुल सही निर्णय लिया है।
गेहूं को लेकर इससे भी बड़ा संकट वर्ष 2005-06 में पैदा हुआ था। तब गेहूं की पैदावार भी खूब हुई थी, तो सरकार ने निजी क्षेत्र को गेहूं खरीदने के लिए कहा था। निजी क्षेत्र ने खूब गेहूं खरीद लिया। बाद में सार्वजनिक राशन वितरण में गेहूं की कमी हो गई, पर जब सरकार ने निजी कंपनियों से पूछा कि बताइए, आपके पास कितना गेहूं पड़ा है, तो सबने हाथ खड़े कर दिए, कहा कि हम नहीं बताएंगे। मुसीबत खड़ी हो गई थी, तब भारत सरकार को अगले दो साल में 71 लाख टन गेहूं का आयात करना पड़ा था। यह उस वक्त दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा आयात था। सबसे बड़ी बात, हमने अपने देश में किसानों से जिस समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद की थी, उससे दोगुनी कीमत पर हमने गेहूं का आयात किया। यह एक बड़ी गलती थी। अब यदि निर्यात को नहीं रोका जाता, तो हम फिर वैसे ही संकट में पड़ जाते। उस समय तो दुनिया के पास हमें देने के लिए गेहूं था, लेकिन आज तो वह स्थिति नहीं है। अत: सरकार ने गेहूं निर्यात रोकने का जो फैसला लिया है, उसके चलते हम दोबारा गेहूं संकट में नहीं जाएंगे। यह कतई ठीक बात नहीं है कि हम अभी गेहूं का निर्यात कर दें और अगले साल खुद भी गेहूं के लिए कटोरा लिए खड़े हो जाएं। ध्यान रहे कि भारत में खुद की आबादी बहुत ज्यादा है। हमारा गेहूं निर्यात भी सीमित है, आसपास के देशों को ही हम ज्यादा गेहूं देते रहे हैं। हम अपने अतिरिक्त गेहूं का लगभग आधा तो बांग्लादेश को ही दे देते हैं। तो दुनिया को भारत से वैसे भी बहुत उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। भारत पहले अपने लोगों को भोजन देगा।
गौर करने की बात है, जब युद्ध का संकट बहुत नहीं गहराया था, जब तापमान की मार ज्यादा नहीं पड़ी थी, तब हम गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की ओर बढ़ रहे थे। पिछली बार 10.90 करोड़ टन गेहूं हुआ था, तो इस बार 11.10 करोड़ टन गेहूं होने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन मौसम की मार ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। केवल पंजाब की बात करें, तो उत्पादन में प्रति एकड़ पांच क्विंटल की कमी दिख रही है। पैदावार पहले भी कम हुआ है, लेकिन इस बार कमी ज्यादा गंभीर है। न्यू साइंटिस्ट में एक शोध सामने आया है, पहले सौ साल में एक बार ऐसे तापमान बढ़ता था, जिसका फसलों पर असर होता था। अब सौ साल में तीन बार तापमान बढ़ने लगा है। इसका न केवल अनाज उत्पादन, बल्कि सब्जियों और फलों पर भी असर पड़ा है। भारत में सरसों पर असर नहीं हुआ, क्योंकि उसे पहले काट लिया जाता है। सब्जियों या आम के भाव में भी प्रतिकूल मौसम का असर दिख रहा है। वैसे भारत में ही नहीं, गेहूं के दस बड़े उत्पादक या निर्यातक देशों में पैदावार कम हुई है। चीन, अमेरिका, रूस लगभग हर जगह गेहूं कम हुआ है। अत: यह अपनी-अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा के बारे में सोचने का समय है। ज्यादा संभावना है, अगले साल गेहूं उत्पादन सामान्य हो जाएगा।
भारत में उत्तर प्रदेश में खूब गेहूं होता है, लेकिन यहां आबादी भी ज्यादा है। पंजाब में अतिरिक्त गेहूं होता है। मध्य प्रदेश में गेहूं उत्पादन बढ़ रहा है। आम तौर पर उत्पादन चिंता की वजह नहीं है, कई बार तो गोदामों में रखने की जगह नहीं होती है। रूस या यूक्रेन जैसे देशों में आबादी कम है, इसलिए उनके पास दूसरों को देने के लिए अतिरिक्त गेहूं रहता है। खैर, यह संकट भी टल जाएगा। संकट के गंभीर होने से पहले ही सरकार ने कदम उठा लिए हैं।

Rani Sahu
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