सम्पादकीय

जब अन्य कई लोकतांत्रिक देशों में समान नागरिक संहिता लागू है तो भारत में उसका विरोध क्यों ?

Gulabi Jagat
24 March 2022 8:00 AM GMT
जब अन्य कई लोकतांत्रिक देशों में समान नागरिक संहिता लागू है तो भारत में उसका विरोध क्यों ?
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सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ विभिन्न उच्च न्यायालय समय-समय पर समान नागरिक संहिता की आवश्यकता रेखांकित कर चुके हैं
सभी मत-मजहब वालों के लिए तलाक, गुजारा भत्ता, उत्तराधिकार, विवाह की आयु, बच्चों को गोद लेने और विरासत संबंधी नियम एकसमान बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि इन सभी मामलों में एक जैसे नियम बन जाते हैं तो समान नागरिक संहिता का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।
होना तो यह चाहिए था कि अभी तक इस उद्देश्य को हासिल कर लिया जाता, क्योंकि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में साफ तौर पर कहा गया है कि राज्य समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेगा। यदि ऐसा नहीं हो सका तो कुछ दलों के नकारात्मक रवैये, अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की राजनीति और इस दुष्प्रचार के कारण कि इससे विभिन्न समुदायों के रीति-रिवाजों में अनावश्यक हस्तक्षेप होगा।
दुर्भाग्य से यह दुष्प्रचार अभी भी जारी है। यह इसके बाद भी जारी है कि सर्वोच्च
न्यायालय के साथ-साथ विभिन्न उच्च न्यायालय समय-समय पर समान नागरिक संहिता की आवश्यकता रेखांकित कर चुके हैं। तथ्य यह भी है कि गोवा में समान नागरिक संहिता पहले से ही लागू है और वहां सभी समुदायों के लोग रहते हैं। आखिर जो व्यवस्था गोवा में बिना किसी बाधा के लागू है, वह शेष देश में क्यों नहीं लागू हो सकती? प्रश्न यह भी है कि जब अन्य कई लोकतांत्रिक देशों में समान नागरिक संहिता लागू है तो भारत में उसका विरोध क्यों होता है?
यह प्रश्न अनुत्तरित है तो इसीलिए कि अभी तक किसी सरकार ने समान नागरिक संहिता का मसौदा तक तैयार करने की जहमत नहीं उठाई। कम से कम अब तो यह काम होना ही चाहिए, ताकि उस पर व्यापक विचार-विमर्श हो सके। यह हास्यास्पद है कि एक ओर संविधान की दुहाई देकर यह कहा जाता है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं और दूसरी ओर भिन्न-भिन्न समुदायों के लिए विवाह विच्छेद, गुजारा भत्ता, उत्तराधिकार आदि से संबंधित नियम अलग-अलग बने हुए हैं। समान नागरिक संहिता के अभाव के चलते ही विभिन्न समुदायों के लोगों में आपसी एकता का वह भाव देखने को नहीं मिलता, जो आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। यह समझने की जरूरत है कि समान नागरिक संहिता का निर्माण देश की जनता को जोड़ने के साथ उनमें यह भाव जगाने का भी काम करेगा कि वे सब एक ही कानून से बंधे हुए हैं।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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