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देश की ऊर्जा में युवा प्रतिभा का आलोक गुजरात में राष्ट्रीय खेलों के 36वें महाकुंभ में देखा गया है। इसी में टहलती हिमाचल की बेटियां अगर कबड्डी की राष्ट्रीय चैंपियन बन जाती हैं, तो यह प्रदेश में सुदृढ़ हो रहे खेल ढांचे की भी करामात है। दस हजार मीटर की दौड़ में हिमाचल की सीमा स्वर्ण और कुश्ती में नवीन गुज्जर ब्रांज मेडल जीत लाते हैं, तो यह प्रदेश बड़ा दिखने लगता है। राज्य स्तरीय व भारतीय खेल प्राधिकरण की बदौलत आया बदलाव अगर यह बदलाव कर सकता है, तो हिमाचल की आबोहवा में इस क्षमता का विस्तार संभव है। इस दृष्टि से हिमाचल मणिपुर जैसे राज्य से सीख सकता है कि किस तरह 27 लाख की आबादी वाले प्रदेश ने खुद में खेल संस्कृति का विस्तार किया और देश के सामने उदाहरण पेश कर दिया। हिमाचल के पास खेल संभावनाओं की कमी नहीं, लेकिन आगे बढऩे तथा देश में दर्ज होने के लिए, एक अदद राष्ट्रीय खेलों का आयोजन आवश्यक हो जाता है। ऐसे समय में जबकि देश के खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का संबंध हिमाचल से है, यह अपेक्षा की जाती है कि यहां राष्ट्रीय स्तर के आयोजन व खेल ढांचा विकसित हो।
पिछले राष्ट्रीय खेल केरल के तिरुवनंतपुरम में आयोजित हुए तो इसके लिए 866 करोड़ का बजट उपलब्ध था और इस तरह तीन अतिरिक्त शहरों तक इसकी धमक पहुंची। इस बार दो हजार करोड़ की धनराशि से अहमदाबाद के अलावा गांधीनगर, वड़ोदरा, सूरत, भावनगर तथा राजकोट की परिधि में राष्ट्रीय खेलों का आयोजन गुजरात के खेल ढांचे को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा रहा है। देश की 36 खेलों और सात हजार के करीब एथलीटों की रौनक में सजा महाकुंभ पूरी संस्कृति बदल देता है। हिमाचल के भी कई शहरों में यह खूबी है कि ऐसे आयोजन की तैयारी में ये अपनी विशिष्टता, मौसम और पर्वतीय परिवेश की खासियत के साथ राष्ट्रीय खेलों के आयोजन करते हुए राज्य की खेल संस्कृति को उच्च मुकाम तक पहुंचा सकते हैं। ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी, कांगड़ा व कुल्लू जिलों में राष्ट्रीय खेलों के लिए अगर मैदान सजाए जाएं, तो मुख्य आयोजन के लिए धर्मशाला एक स्वाभाविक डेस्टिनेशन बन सकता है। यह इसलिए भी क्रिकेट स्टेडियम के कारण खेल के बड़े आयोजनों के लिए यहां आवश्यक ट्रैफिक सिस्टम, आवासीय व्यवस्था, सडक़, रेल व विमान कनेक्टिविटी के साथ पौंग झील के कारण भी कई प्रतियोगिताओं का आयोजन सहज हो जाएगा। इस क्षेत्र में स्थापित कृषि विश्वविद्यालय, एनआईटी, आईआईटी व केंद्रीय विश्वविद्यालय तथा भारतीय खेल प्राधिकरण के उच्च स्तरीय प्रशिक्षण केंद्रों के कारण आवश्यक खेल परिसरों का निर्माण सुविधाजनक होगा। यहां मणिपुर की तर्ज पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के देहरा परिसर को राष्ट्रीय स्पोट्र्स यूनिवर्सिटी का खिताब पहनाया जा सकता है। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर अगर देहरा परिसर को पूर्ण खेल यूनिवर्सिटी का दर्जा व अधोसंरचना दिला दें, तो आने वाले समय में हिमाचल बड़े से बड़े खेल आयोजनों की भूमिका में आगे बढ़ सकता है।
हिमाचल में हर वर्ष कुछ राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं मंडी, सोलन व धर्मशाला में होती हैं, इनका दायरा बढ़ाते हुए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्कीईंग, पैराग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग व साइकिलिंग जैसे मुकाबले भी शुरू किए जा सकते हैं। पिछले सालों में पड़ोसी राज्यों के कई विश्वविद्यालयों ने हिमाचल में खिलाडिय़ों के समर कैंप तथा वाटर स्पोट्र्स प्रशिक्षण के लिए पौंग डैम में डेरा डाला है। ऐसे में अगर हिमाचल अपनी खेल संभावनाओं को तराशता हुआ दर्जन भर परिसरों को अलग-अलग खेलों के लिए चिन्हित करके किसी न किसी खेल अकादमी से जोड़ ले, तो सारे देश के युवा यहां खेल शिविर लगाएंगे। हिमाचल का हर विश्वविद्यालय अपने भीतर एक खेल विश्वविद्यालय की तरह काम करे, तो राष्ट्रीय मंच पर अन्य राज्यों के खिलाड़ी भी यहां आकर प्रशिक्षण पा सकते हैं। विडंबना यह है कि इस दौरान हमने अपने बेहतरीन मैदानों में शुमार चंबा के चौगान, सुजानपुर ग्राउंड, पड्डल मैदान, सोलन का ठोडो मैदान, धर्मशाला पुलिस ग्राउंड, ऊना के इंदिरा स्टेडियम और कुल्लू के मैदानों की खेलों के ठिकाने के रूप में सुध ही नहीं ली। अब वक्त आ गया है कि राजनीति व क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर आगामी राष्ट्रीय खेलों के आयोजन का दावा पेश करके कम से कम आधा दर्जन स्थानों पर अंतरराष्ट्रीय खेल ढांचा विकसित किया जाए।
By: divyahimachal
Rani Sahu
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