सम्पादकीय

जब महंत अवैद्यनाथ की खाली की गई सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के बावजूद हार गए थे यूपी के मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह

Rani Sahu
5 Jan 2022 3:14 PM GMT
जब महंत अवैद्यनाथ की खाली की गई सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के बावजूद हार गए थे यूपी के मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) इस बार विधानसभा का चुनाव (Assembly Elections) लड़ेंगे. अभी वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) के सदस्य हैं

सुरेंद्र किशोर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) इस बार विधानसभा का चुनाव (Assembly Elections) लड़ेंगे. अभी वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) के सदस्य हैं. योगी आदित्यनाथ लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं. वह विधानसभा चुनाव हार जाएंगे, ऐसी भविष्यवाणी तो कोई नहीं कर रहा. किंतु जब कोई मुख्यमंत्री चुनाव लड़ता है तो राजनीति और प्रशासन का अधिक ध्यान उस सीट की तरफ चला जाता है. 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उनके विधानसभा उपचुनाव लड़ने की बात हुई तब योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी हाईकमान से कहा था कि 'एक मुख्यमंत्री हार चुके हैं.'

जिस राज्य में विधान परिषद मौजूद है, वहां के कुछ मुख्यमंत्री उच्च सदन के ही सदस्य होना पसंद करते रहे हैं. इस बार योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने की खबर पर सन 1971 के उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह की याद आ गई. वह तब गोरखपुर जिले के मणिराम विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव हार गये थे. मणिराम सीट पर सन 1969 के मध्यावधि चुनाव में महंत अवैद्यनाथ विजयी हुए थे. उन्होंने कांग्रेस के रामकृष्ण द्विवेदी को करीब तीन हजार मतों से हराया था. पर उसी रामकृष्ण द्विवेदी से गांधीवादी टी.एन.सिंह करीब 16 हजार मतों से हार गए थे.
मुख्यमंत्री रहते चुनाव हार गए थे टी.एन. सिंह
याद रहे कि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने मणिराम में अपने उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया था. याद रहे कि प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू कभी उपचुनावों में प्रचार नहीं करते थे. खैर, इस मणिराम की हार के बाद उन दिनों राजनीतिक हलकों में टी.एन. सिंह को 'निकम्मा' कहा गया था. निकम्मा यानि जो सत्ता में रहने के बावजूद 'बूथ कंट्रोल' नहीं करा सके. दो ही साल बाद 1973 में बिहार के मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता अब्दुल गफूर बाहुबल से मधुबनी विधानसभा उपचुनाव में जीत गए.
स्वतंत्रता सेनानी सूरजनारायण सिंह की हत्या के बाद खाली हुई सीट से उनकी विधवा उपचुनाव लड़ रही थीं. भारी चुनावी धांधली से क्रुद्ध शालीन सोशलिस्ट नेता कर्पूरी ठाकुर ने मधुबनी के चुनाव के बाद कहा था कि 'मैं मधुबनी कलक्टरी में आग लगा दूंगा.' सन 1974 के जेपी आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने में उस मधुबनी चुनावी धांधली ने भी भूमिका निभाई थी. याद रहे कि सूरजनारायण सिंह ने ब्रिटिश शासनकाल में हजारीबाग जेल से अपने कंधे पर जेपी को भगाया था.
सूरज बाबू की विधवा सोशलिस्ट पार्टी से उम्मीदवार थीं. पूरी उम्मीद सहानुभूति वोट की थी. इसलिए यह माना गया कि उनकी पत्नी के प्रति उपजी मतदाताओं की सहानुभति को घनघोर चुनावी धांधली के जरिए निरर्थक बना दिया गया. उधर गांधीवादी त्रिभुवन नारायण सिंह की ओर से ऐसी किसी धांधली की उम्मीद नहीं थी. हुई भी नहीं. पर, टी.एन. सिंह के कुछ उत्साही और उदंड समर्थकों ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चुनावी सभा में अशोभनीय प्रदर्शन जरूर किया था.
एक मुख्यमंत्री की हार ने देश में इंदिरा कांग्रेस की हवा बना दी थी
उसका सहानुभूति वोट कांग्रेसी उम्मीदवार राम कृष्ण द्विवेदी को मिल गया. मुख्यमंत्री करीब 16 हजार मतों से हार गए. पत्रकार रामकृष्ण द्विवेदी का एक दूसरे पूर्व पत्रकार से मुकाबला था. खुद टी.एन. सिंह भी 'नेशनल हेराल्ड' में कभी चीफ सब एडिटर थे. टी.एन.सिंह लाल बहादुर शास्त्री के घनिष्ठ मित्रों में थे. शास्त्री जी का जब ताशकंद में निधन हुआ तो टी.एन. सिंह ने कांग्रेस में रहते हुए भी उसे संदिग्ध बताया और उसकी जांच की मांग की थी. उन्हीं दिनों वाराणसी में हुए पुलिस गोलीकांड को लेकर लोगबाग टी.एन. सिंह सरकार से खफा थे. उधर इंदिरा गांधी ने अपनी चुनावी सभा के जरिए हवा बना दी. बल्कि मणिराम में प्रतिपक्ष एक मख्यमंत्री की हार के कारण भी इंदिरा कांग्रेस के पक्ष में पूरे देश में हवा बनी.
टी.एन. सिंह संगठन कांग्रेस में थे. 1969 में कांग्रेस का महा विभाजन हुआ था. इंदिरा कांग्रेस और संगठन कांग्रेस दो दल बने. इस विभाजन के बाद इंदिरा कांग्रेस लोकसभा में अल्पमत में आ गयी थी. कम्युनिस्टों के समर्थन से इंदिरा सरकार चल रही थी. इंदिरा गांधी ने 1971 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव करा दिया था. इंदिरा जी को बहुमत मिल गया. जब हवा का रुख खिलाफ हो तो बड़े-बड़े 'महंत' भी चुनाव में कुछ नहीं कर पाते. गोरखपुर जिले के मणिराम से 1962, 1967 और 1969 में हिंदू महासभा के महंत अवैद्य नाथ विधायक चुने गये थे.
मणिराम उपचुनाव में उन्होंने टी.एन. सिंह को अपना समर्थन दिया. उधर चार दलों का भी समर्थन मुख्यमंत्री को हासिल था. उन दलों ने मुख्यमंत्री की जीत के लिए काफी मेहनत की थी. फिर भी 'इंदिरा लहर' काम कर गयी. 1957 में चंदौली लोकसभा क्षेत्र में डॉ. राममनोहर लोहिया को हराने वाले टी.एन. सिंह मणिराम में हार गए. समय-समय का फेर था. 'वही अर्जुन वही बांण' वाली कहावत मणिराम में चरितार्थ हो गयी.
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