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सम्पादकीय
गर्मियां चरम पर हों तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उन प्राणियों के सूखे कंठों को तर करें
Gulabi Jagat
11 April 2022 8:43 AM GMT
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शनिवार दोपहर मैं भोपाल के कोलार रोड पर था और अनेक सुपरिचित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों-रिहायशी कॉलोनियों से गुजर रहा था
एन. रघुरामन का कॉलम:
शनिवार दोपहर मैं भोपाल के कोलार रोड पर था और अनेक सुपरिचित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों-रिहायशी कॉलोनियों से गुजर रहा था, जैसे पैलेस ऑर्किड, अमरनाथ कॉलोनी आदि। मैं इनके भीतर नहीं गया। गर्मी बहुत थी और लोग रोजमर्रा के काम कर रहे थे। फल-सब्जी वाले उन पर पानी छिड़क करके उन्हें ताजा बनाए थे। जरूरी सामान बेचने वाले दुकानदार अखबारों से नजरें नहीं हटा रहे थे और ग्राहक की प्रतीक्षा में थे। वेल्डिंग वाले आइरन रॉड ले जा रहे थे ताकि किसी रहवासी के लिए बालकनी ग्रिल बना सकें।
कोलार रोड पुलिस स्टेशन कांस्टेबल किसी की कॉलर पकड़कर थाने में ले जा रहे थे। कुम्हार प्लास्टिक बोतल से पानी पी रहा था अपने बर्तनों से आधी सड़क घेरे था, वहीं दूसरी दुकान में सिंटैक्स जैसी पानी की टंकियां भी सड़क घेरे थीं, जिन्हें कुछ ग्राहक देख रहे थे, जबकि वह अपने फोन में व्यस्त था। सड़क उखड़ी थी और उससे वाहन गुजरने पर धूल उड़ती थी। ट्रैफिक बहुत था। संक्षेप में वहां केवल शोरगुल ही नहीं, प्रदूषण भी था।
किसी का भी ध्यान इस पर नहीं गया कि पांच-छह किलोमीटर लम्बी उस सड़क पर अनेक आवारा कुत्ते-मवेशी थे, जिनके लिए पीने के पानी का कोई बंदोबस्त नहीं था। जिस भी कुत्ते पर मेरी नजर पड़ी, उसे देखकर लगा मानो वो मुझसे कह रहा हो- क्या आप इन लोगों से हमारे लिए थोड़ा-सा पानी रख देने को कहेंगे? मुझे देखकर बुरा लगा कि आधी सड़क घेरकर बैठे कुम्हार, जिसके पास विभिन्न आकार के सैकड़ों बर्तन थे, उसने भी इन दो महीनों में आवारा मवेशियों के लिए पानी से भरा मटका रखने की कोशिश नहीं की थी। मैंने आकाश में देखा और वहां एक भी पक्षी नहीं उड़ रहा था। अलबत्ता सड़क पर आ-जा रही कुछ कारों के हॉर्न में जरूर पक्षियों के बोलने की आवाजें थीं।
इससे मुझे 19 मई 1924 में बीबीसी के लाइव ब्रॉडकास्टों की याद आई, जिनमें चेलो बजाने वाली बीट्रिस हैरिसन ने अपने गार्डन में गाने वाली बुलबुल के साथ एक अद्भुत ड्यूएट परफॉर्मेंस दी थी। वह लाखों संगीत प्रेमियों के लिए एक जादुई रात थी। मुझे बताया गया था कि वर्ष 1942 तक इस कार्यक्रम का सम्मान से प्रसारण किया जाता रहा। लेकिन अब बीबीसी ने स्वीकारा है कि वह एक झूठा ड्यूएट था, जिसमें पक्षी की आवाज किसी ऐसे व्यक्ति ने निकाली थी, जो हूबहू बुलबुल जैसा चहक सकता था, जबकि श्रोताओं को यही लगता था कि हैरिसन का चेलो वादन सुनकर कोई सचमुच का पक्षी उसके साथ गा रहा है।
मैं हमेशा सोचता रहा कि दशकों तक श्रोताओं को शक क्यों नहीं हुआ कि गार्डन में रिकॉर्डिंग उपकरण लाए क्रू से डरकर बुलबुलें उड़ गई होंगी। ये नन्हे भूरे पक्षी एक हजार से ज्यादा आवाजें निकाल सकते हैं, जबकि उनकी तुलना में ब्लैकबर्ड 100 के लगभग और चकवा पक्षी 340 आवाजें ही निकाल सकते हैं। वे पिंजरे में रहना पसंद नहीं करते।
गर्मियों में प्रवास करने की उनकी इच्छा इतनी प्रबल होती है कि अगर उन्हें पिंजरे में रखा जाए तो वे सलाखों से संघर्ष करके खुद को जख्मी कर लेते हैं और इसमें उनकी जान तक चली जाती है। किसी से भी गाने वाले पक्षी का नाम पूछें तो उनमें से बहुत बुलबुल का ही नाम लेंगे। लेकिन आज हरियाली से भरे देशों में भी बुलबुल घटकर आधी रह गई हैं। हम ऐसी सैकड़ों खूबसूरत प्रजातियां गंवा रहे हैं, जिनका इस पृथ्वी के संचालन-तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। अगर हम उनका ध्यान नहीं रखेंगे तो एक दिन उनकी आवाजें (पढ़ें- ध्वनियां) कार का हॉर्न बनकर रह जाएंगी।
फंडा यह है कि जब गर्मियां चरम पर हों तो यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उन प्राणियों के सूखे कंठों को तर करें, जिनके पास अपना वाटर कनेक्शन नहीं होता है।
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Gulabi Jagat
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