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आज की तारीख में अगर कोई साइंस रिसर्च या स्टडी ये बताए कि सिगरेट पीना सेहत के लिए कितना फायदेमंद है
मनीषा पांडेय आज की तारीख में अगर कोई साइंस रिसर्च या स्टडी ये बताए कि सिगरेट पीना सेहत के लिए कितना फायदेमंद है या कोई विज्ञापन सिगरेट पीने के सेहत संबंधी फायदे गिना रहा हो तो आपकी सहज प्रतिक्रिया क्या होगी? आपको इस बात पर या तो हंसी आएगी या फिर गुस्सा. ये तो ऐसा ही है कि जैसे 2021 में बैठकर कोई कहे कि पृथ्वी चपटी है, जबकि सारा विज्ञान और दुनिया-जहान के शोध ये साबित कर चुके हैं कि पृथ्वी गोल है.
हालांकि आज भी बाइबिल समेत धर्म की किताबों के अलावा और कोई नहीं कहता कि पृथ्वी चपटी है और न ही पृथ्वी को चपटा बताने वाली उन किताबों की बातों पर कोई यकीन करता है.
फिलहाल बात सिगरेट की हो रही थी. तो बात तो ये है कि हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या. पीने वाले भले पीते रहें, लेकिन जानते वो भी हैं कि सिगरेट पीने का फायदा शून्य है और नुकसान एक हजार.
लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा भी था, जब न सिर्फ टेलीविजन के विज्ञापन बल्कि बाकायदा साइंटिफिक स्टडी इस बात का दावा किया करती थीं कि सिगरेट पीने के बड़ फायदे हैं. या कम से कम बड़ी टोबैको कंपनियां ऐसी साइंटिफिक स्टडी का हवाला दे रही होती थीं, जो कहती थीं कि सिगेरट पीने से फेफड़ों और हार्ट को कोई नुकसान नहीं होता.
आज कोई इस बात पर यकीन नहीं करेगा, लेकिन ये सच है. 1930 से 1950 के बीच सिगरेट के विज्ञापन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता था- "डॉक्टर्स रिकमंड." (डॉक्टर की सलाह पर). विज्ञापनों में सिर्फ एक टैगलाइन ही नहीं, बल्कि डॉक्टरों की लंबी-चौड़ी सलाहें छपती थीं, जो कह रही होती थीं कि डोंट बी फुलिश, स्मोक फ्रेश सिगरेट. टोबैको कंपनियां ईएनटी डॉक्टरों को हजारों डॉलर्स देकर अपने सिगरेट ब्रांड का विज्ञापन को प्रमोट करने के लिए हायर करती थीं और ये सारा काम कानूनी दायरे के भीतर सरकार और न्यायिक संस्थाओं की आंख और नाक के नीचे धड़ल्ले से हो रहा था.
जब सिगरेट के विज्ञापन पर लिखा होता था कि ये डेंटिस्ट का सुझाया ब्रांड है, 1945
आज हम सिगरेट के पैकेट पर जो ये चेतावनी देखते हैं कि सिगरेट पीने से कैंसर होता है और साथ ही एक गंदे से कैंसर वाले गले और फेफड़े की फोटो भी लगी होती है, आज से महज 30 साल पहले तक ऐसा नहीं था. न सिर्फ विज्ञापन, बल्कि इन टोबैको कंपनियों के द्वारा फंड की गई रिसर्च और स्टडी भी इस बात का दावा करती थी कि सिगरेट पीने से सेहत को कोई नुकसान नहीं होता है.
यूं तो दुनिया की तमाम सभ्यताओं में आसपास उगने वाली जड़ों, वनस्पतियों और कुछ खास प्रकार के पौधों के एक्सट्रैक्ट को स्मोक करने का चलन तीन हजार साल पुराना है, लेकिन मॉडर्न सिगरेट के बनने, टोबैको कंपनियों के हाथ में प्रोडक्शन जाने और सिगरेट के मेनस्ट्रीम होने का इतिहास बहुत रोचक है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक 1991 में टोबैको कंपनियों ने सिगरेट के विज्ञापन पर 4.6 बिलियन डॉलर खर्च किए यानि प्रतिदिन 12.6 मिलियन डॉलर. हर मिनट 8,750 डॉलर.
इस विज्ञापन के खर्च का एक बड़ा हिस्सा उन साइंटिफिक रिसर्च और स्अडीज को प्रमोट करना था, जो इस बात का दावा कर रही थीं कि स्मोकिंग सेहत के लिए कितनी फायदेमंद है. कंपनियों ने इसके लिए बाकायदे डॉक्टर हायर कर रखे थे.
1940 के आसपास लकी स्ट्राइक्स सिगरेट ब्रांड का एक पॉपुलर विज्ञापन
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉबर्ट जैकलर ने अमेरिका में टोबैको कंपनियों और स्मोकिंग के इतिहास पर रिसर्च की है. प्रो. रॉबर्ट कहते हैं कि मेडिकल साइंस का एक समूह स्मोकिंग के खतरों से पूरी तरह अंजान तो नहीं था, लेकिन उन्हें बड़ा झटका तब लगा, जब 1920 और 1930 में अचानक लंग कैंसर से मरने वालों का आंकड़ा आसमान छूने लगा. ये एक बड़ा हेल्थ थ्रेट था.
जो मेडिकल साइंस अब तक स्मोकिंग के खतरों से अमेरिकी जनता को आगाह करने के बजाय उसके फायदे बताने में लगा हुआ था, अब वो इस तथ्य से मुंह नहीं मोड़ सकता था कि लंग कैंसर के आंकड़े सिर्फ 20 साल के भीतर 41 फीसदी बढ़ गए थे.
इसके पहले लंग कैंसर बीमारी कुछ खास तरह के प्रोफेशन में काम करने वालों और कुछ खास प्रदूषित परिस्थितियों में रहने वाले लोगों को ही होती थी. लेकिन उन दो दशकों में टोबैको कंपनियों ने जितने डॉलर सिगरेट के प्रमोशन और विज्ञापन पर उड़ाए थे, उससे कहीं ज्यादा अब अमेरिकी सरकार के सिर पर आ पड़े थे क्योंकि उसकी जनता फेफड़ों के कैंसर से मर रही थी.
1953 में न्यूयॉर्क के स्लोन केटरिंग इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि सिगरेट से निकलने वाला टार कैंसर की संभावना में 72 फीसदी का इजाफा कर रहा था. ये कोई इतना छोटा-मोटा आंकड़ा नहीं था कि जिसे नजरंदाज किया जा सके.
सिगरेट पीने के फायदे गिनाता एक विज्ञापन, 1950
इस रिसर्च को उस जमाने में खूब मीडिया अटेंशन मिला. लाइफ मैगजीन ने तो इसे विस्तार से छापा ही, न्यूयॉर्क टाइम्स में इस स्टडी के कई दिनों तक कवरेज होती रही. इस स्टडी ने अमेरिकी समाज में एक बहस छेड़ दी थी कि न सिर्फ टोबैको कंपनियां, बल्कि डॉक्टर और मेडिकल साइंस भी कैसे इतने सालों तक लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा था. रीडर्स डायजेस्ट ने उस साल एक लंबी स्टोरी छापी, जिसका शीर्षक था- "कैंसर बाय द कार्टन."
11 जनवरी, 1964 को अमेरिका के सर्जन जनरल में एक रिपोर्ट छपी- "स्मोकिंग एंड हेल्थ," जो अमेरिका में सिगरेट स्मोकिंग के इतिहास में एक बड़ा टर्निंग प्वॉइंट साबित हुई. लाखों की संख्या में लोगों ने स्मोकिंग छोड़ दी. समाज में इतने बड़े पैमाने पर बहस छिड़ी और सरकारी और न्यायिक हस्तक्षेप हुआ कि सरकार को सिगरेट के विज्ञापनों को पूरी तरह प्रतिबंधित करना पड़ा. हालांकि उस कोर्ट केस की कहानी और उस पूरे दौरान अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के भीतर हुई बहसें भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज है.
समाज और इंसान की जिंदगी के लिए क्या सही और जरूरी है, ये हमेशा सिर्फ सच, सही और न्याय की बात ही नहीं होती. बात ये भी होती है कि दूसरों की सेहत को नुकसान पहुंचाकर खरबों डॉलर कौन कमा रहा है. जो अमीर और ताकतवर है, उसके हितों को कुचलना आसान नहीं है. लेकिन हर वक्त में कुछ लोग होते हैं, जो सही के लिए लड़ रहे होते हैं. टोबैको कंपनियों के इतिहास और उस ऐतिहासिक मुकदमे के दस्तावेज एक नजीर हैं, इस बात की कि कैसे स्मोकिंग को लेकर उस समाज का नजरिया बदला.
सिगरेट पर आज भी पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगा है. कंपनियां अब भी बना रही हैं, लोग अब भी पी रहे हैं, लेकिन अब कोई ये नहीं कहता कि ये बड़ी फायदे की चीज है. कोई विज्ञापन या डॉक्टर ऐसा दावा कर तो उसे जेल हो जाएगी.
Rani Sahu
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