सम्पादकीय

शराब का नशा जब नुकसान पहुंचाता है तो पहला घाटा उस घर की किसी महिला को ही उठाना पड़ता है

Gulabi Jagat
8 April 2022 7:02 AM GMT
शराब का नशा जब नुकसान पहुंचाता है तो पहला घाटा उस घर की किसी महिला को ही उठाना पड़ता है
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मसखरा मौसम भी बहुत छेड़छाड़ करता है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
मसखरा मौसम भी बहुत छेड़छाड़ करता है। अधिक गर्मी हो तो लोगों के तन झुलस जाते हैं, ज्यादा बारिश हो जाए तो तन भीग जाते हैं। लेकिन, अन्नदाता किसान की तो आत्मा झुलस जाती है, सबकुछ बह जाता है। इन दिनों हमारी सरकारों ने अन्न के मामले में खूब योजनाएं बनाईं, मुक्तहस्त से बांटा भी, लेकिन ये योजनाएं अन्नदाता यानी किसानों को कितना लाभ पहुंचाती हैं, यह अभी भी अध्ययन का विषय है।
हमारे खान-पान की जीवनशैली में बहुत ही कलयुगी परिवर्तन आया है। खिलाने वाले यानी किसान परेशान हैं और पिलाने वाले खासकर शराब के मामले में लोग मजे कर रहे हैं। जरा विचार कीजिए ऐसा क्यों होता है कि शराब की दुकानें बंद कराने के लिए महिलाओं को आगे आना पड़ता है? शराब का नशा जब नुकसान पहुंचाता है तो पहला घाटा उस घर की किसी माता-बहन को ही उठाना पड़ता है।
इसलिए देश के खान-पान पर कम से कम वे लोग तो नैतिकता की दृष्टि से सोचें जिनकी संस्कारों में रुचि हो, जो देश की संस्कृति के प्रति समर्पित हों। अन्न से पूछो तो वह कहेगा मैं खेत से सत्ता तक कहां पिस रहा हूं, पता नहीं लगता। और शराब से पूछो तो कहेगी मैं तो सत्ता से मैदान तक मजे ही मजे में हूं। भोजन और नशे की बात के बीच इन्हें भी आजमाया जाए। ये हैं- फलाहार और परमात्मा का नाम।
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