सम्पादकीय

जब स्वार्थ सर्वोपरि हों

Triveni
30 July 2021 5:22 AM GMT
जब स्वार्थ सर्वोपरि हों
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विश्व व्यापार संगठन की इस हफ्ते हुई बैठक में कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन को पेटेंट मुक्त करने की कोशिशें नाकाम रहीं।

विश्व व्यापार संगठन की इस हफ्ते हुई बैठक में कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन को पेटेंट मुक्त करने की कोशिशें नाकाम रहीं। जेनेवा में हुई बैठक में विभिन्न देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई। कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करने का प्रस्ताव सबसे पहले भारत और दक्षिण अफ्रीका ने रखा था। बाद में अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने भी इसका भी समर्थन किया। लेकिन डब्लूटीओ की प्रक्रिया ऐसी है कि वहां फैसले आम राय से होते हैं। ऐसे में एक देश भी किसी प्रस्ताव को रोकने में सफल हो जाता है। पेटेंट मुक्ति के प्रश्न पर तो शक्तिशाली यूरोपीय देश एकजुट हैं। तो ऐसा लगता है कि ये मुद्दा कुल मिला कर कुछ देशों के इरादा जताने भर का रह जाएगा। असल में इससे कोई सूरत नहीं बदलेगी। डब्लूटीओ ने औपचारिक बयान में कहा है कि इस 'बेहद जज्बाती मुद्दे पर' नौ महीने के विचार-विमर्श का कोई नतीजा नहीं निकला है। अब सदस्य देश सितंबर की शुरुआत में एक अनौपचारिक बैठक करेंगे, जिसके बाद 13-14 अक्टूबर को औपचारिक बैठक होगी।

बहराहल, तब तक बात कहीं आगे बढ़ जाएगी, ये उम्मीद संजोने की कोई वजह नहीं है। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्टूबर में डब्लूटीओ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था कि कोविड वैक्सीन के उत्पादन को बौद्धिक संपदा अधिकार से मुक्त कर दिया जाए, ताकि गरीब देश भी अपने यहां अपनी जरूरत की वैक्सीन का उत्पादन कर सकें। इस प्रस्ताव के समर्थकों का कहना है कि पेटेंट मुक्त होने से विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाई जा सकेगी, जो कोरोनो वायरस महामारी को रोकने के लिए जरूरी है। मगर दुनिया की बड़ी दवा कंपनियां इस प्रस्ताव का तीखा विरोध कर रही हैं। वे कंपनियां जिन देशों में स्थित हैं, वहां की सरकारें भी उनके साथ हैँ। आखिर वो सरकारें अपनी जनता या किसी ऊंचे आदर्श की नुमाइंदगी करने के बजाय बड़े आर्थिक स्वार्थों का प्रतिनिधित्व ही करती हैँ। वैसे जिन मुद्दों को पेटेंट मुक्ति को रोकने की आड़ बनाया गया है, उनमें ज्यादातर तकनीकी बातें हैं। मसलन ऐसे सवाल उठाए गए हैं कि मुक्ति कितने समय के लिए होगी और किन शर्तों पर होगी। लेकिन जैसाकि कहा जाता है कि मंशा ठीक हो, तो हर सवाल का जवाब मिल सकता है। यहां सूरत उलटी है।


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