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सम्पादकीय
By NI Editorial
कानून के राज और मर्यादाओं की सर्वोच्चता को समाज के सभ्य होने या बने रहने के लिए अनिवार्य समझा जाता है। आज भारत में ये दोनों ही चीजें दुर्लभ होती जा रही हैँ।
अंग्रेजी के एक मुहावरे के अनुरूप अगर किसी समाज में 'फ्री फॉर ऑल' हो जाए, तो फिर कब कौन किस पर टूट पड़ेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। इसीलिए कानून के राज और मर्यादाओं की सर्वोच्चता को समाज के सभ्य होने या बने रहने के लिए अनिवार्य समझा जाता है। आज भारत में ये दोनों ही चीजें दुर्लभ होती जा रही हैँ। उसका एक नतीजा देखिए। दिल्ली में जमैटो कंपनी के डिलीवरी ब्वॉय की दो सिखों ने इसलिए हत्या कर दी कि वह जब खाना पहुंचाने आया, तो सिगरेट पी रहा था। सिख धर्म में धूम्रपान को गलत समझा जाता है, तो उन निहंग सिखों ने अपने ढंग से न्याय कर दिया। उधर लखनऊ में इसी कंपनी के फूड डिलीवरी बॉय विनीत कुमार रावत ने आरोप लगाया कि जब वह पिछले शनिवार की रात खाना डिलीवर करने पहुंचा, तो परिवार ने खाना लेने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि वह दलित है। रावत के मुताबिक उसके साथ पिटाई की गई और मुंह पर पान मसाला थूका गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस ने डिलीवरी बॉय के आरोपों को गलत बताया है। पुलिस का कहना है कि झगड़ा गाली को लेकर हुआ था। जो भी हो, ऐसी घटनाएं लोगों के मानस में लगातार पल रहे गुस्से, दूसरे के प्रति द्वेष और अलगाव की भावना को अवश्य ही जाहिर करती हैँ। लखनऊ की घटना की सच्चाई चाहे जो हो, इससे तो कोई इनकार नहीं कर सकता कि आज भारतीय समाज में सांप्रदायिक और जातिगत भेदभाव का खुल कर इजहार किया जा रहा है। ये भेदभाव पहले भी मौजूद थे। लेकिन तब उनका सार्वजनिक इजहार करना अमान्य समझा जाता था। लेकिन अब ऐसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज होते हैं। 2018 से 2020 के बीच पूरे देश में दलितों पर अत्याचार के 1.3 लाख से भी ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 36,467 मामले उत्तर प्रदेश के थे। इसीलिए लखनऊ की घटना को इस पृष्ठभूमि से जोड़ कर देखना अस्वाभाविक नहीं मालूम पड़ता है।
Gulabi Jagat
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