सम्पादकीय

पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी की गुत्थी कब और कैसे सुलझेगी?

Rani Sahu
13 Sep 2021 8:00 AM GMT
पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी की गुत्थी कब और कैसे सुलझेगी?
x
एक बार फिर से चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार बनने का अनुमान लगाया है

अजय झा। एक बार फिर से चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार बनने का अनुमान लगाया है और एक बार फिर से पार्टी के सामने वही पुरानी समस्या मुंह बाये खड़ी है कि आगामी चुनाव में कौन होगा आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा. 2017 विधानसभा चुनाव के पूर्व भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. 'आप' ने किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया था. हालांकि आप 117 सदस्यों वाली विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर जरूर उभरी, पर चुनाव का परिणाम एक तरफ़ा रहा. कांग्रेस पार्टी 72 सीट जीतने में सफल रही और आप के प्रत्याशी 20 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाए.

अन्य कारणों के साथ आप के पिछड़ने का एक बड़ा कारण था आप का मुख्यमंत्री पद के लिए किसी नेता को प्रोजेक्ट नहीं करना. आम आदमी पार्टी शायद इस बार वही गलती दोबारा नहीं करेगी. पर समस्या यह है कि आप के पास ऐसा कौन सा नेता है जिसे प्रोजेक्ट करने से मतदाताओं का रुझान पार्टी की तरफ हो जाए. पिछले चुनाव में जहां आप ने किसी को प्रोजेक्ट नहीं किया, कांग्रेस पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को और शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को प्रोजेक्ट किया था. अकाली दल और बादल कुनबे के भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण बदनामी का सीधा फायदा कांग्रेस पार्टी को मिला और आप पिछड़ गई.
कौन होगा मुख्यमंत्री के लिए 'आप' का दावेदार
अकाली दल-बीजेपी गठबंधन टूट चूका है और अकाली दल की तरफ से इस बार मुख्यमंत्री पद के दावेदार सुखवीर सिंह बादल होंगे, जिनपर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा था. कैप्टन अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता में इस बार कमी आयी है, हालांकि कांग्रेस पार्टी ने घोषणा कर दी है कि वह एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे. आम आदमी पार्टी के लिए यह एक सुनहरा अवसर है कि वह किसी ऐसे चेहरे को सामने लाये जो जनता का मन मोह सके. आम आदमी पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविन्द केजरीवाल ने जून में घोषणा की थी कि पार्टी की तरफ से कोई सिख नेता ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार होगा. पर तीन महीने गुजरने के बाद भी पार्टी इस बात का फैसला नहीं कर पायी है कि वह सिख नेता कौन होगा.
माना जाता है कि जब जून के महीने में केजरीवाल ने यह बात कही थी तो उस समय की परिस्थितियों में ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कांग्रेस के बागी नेता नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस पार्टी छोड़ कर आप में शामिल होंगे और पार्टी उन्हें ही मुख्यमंत्री के रूप के प्रोजेक्ट करेगी. अमरिंदर सिंह ने सार्वजानिक तौर पर सिद्धू पर आरोप भी लगाया था कि वह आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले हैं और सिद्धू को चैलेंज किया था कि वह उनके खिलाफ पटियाला से चुनाव लड़ें. पर सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष घोषित करके कांग्रेस पार्टी ने केजरीवाल की योजना पर पानी फेर दिया.
सिख नेता के नाम पर आप के पास सबसे बड़ा चेहरा लोकसभा सदस्य भगवंत मान ही हैं. मान पंजाब के मशहूर कॉमेडियन रहे हैं और 2019 में लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीते हैं और आम आदमी पार्टी के एकलौते लोकसभा सांसद हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में मान जलालाबाद सीट से सुखवीर सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लडे़ थे, जिसमें मान लगभग 18,500 मतों से हार गए थे. मान पिछले 11 वर्षों से राजनीति में हैं और पिछले सात साल से सांसद हैं, पर जनता या आम आदमी पार्टी को उनमे चीफ मिनिस्टर वाली बात नहीं दिखती है.
भगवंत मान में नहीं है मुख्यमंत्री वाली बात?
भगवंत मान का हमेशा शराब के नशे में धुत हो कर जनता के बीच जाना और उनके दिन में भी शराब पीने की लत के कारण आम आदमी पार्टी की पूर्व में बदनामी हुई थी. हालांकि वर्तमान में मान आप के पंजाब सूबे के प्रमुख हैं, पर अगर मान को ही मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना होता तो आप अब तक यह काम कर चुकी होती. अगर निकट भविष्य में सिद्धू और अमरिंदर सिंह की लड़ाई उस हद तक नहीं पहुंच जाए कि सिद्धू कांग्रेस पार्टी छोड़ कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाएं, तब सवाल यही होगा कि आप किस चेहरे केर बूते पर पंजाब चुनाव में उतरेगी.
वैसे इस बात का जिक्र जरूरी है कि पिछले कुछ समय से सिद्धू अचानक चुप हो गए हैं, और अटकलों का बाज़ार एक बार फिर से गर्म होने लगा है. सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच सुलह कराने पिछले दिनों पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत चंडीगढ़ गए थे. सिद्धू ने अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री से हटाने की मुहिम छेड़ रखी थी. रावत चंडीगढ़ में थे और सिद्धू 1 सितम्बर को दिल्ली आये. वह गांधी परिवार से मिलकर अमरिंदर सिंह को हटाने की गुहार लगाने की फ़िराक में थे. पर गांधी परिवार ने उनसे मिलने से मना कर दिया और सिद्धू को यह सन्देश दिया गया कि उन्हें जो कुछ भी कहना है वह अपनी बात हरीश रावत के सामने ही रखें.
कांग्रेस पार्टी कैप्टन अमरिंदर सिंह के पक्ष में है
रावत ने पहले से ही अमरिंदर सिंह के दावेदारी की घोषणा कर रखी थी, और अपने पंजाब दौरे में उसे एक बार फिर से दोहराया, जिसके बाद से शायद आहत हो कर सिद्धू चुप बैठ गए हैं. सिद्धू ने उसके कुछ समय पहले कांग्रेस आलाकमान को खुले आम धमकी दी थी की अगर उनके कार्य में हस्तक्षेप किया गया तो वह पार्टी की ईंट से ईंट बजा देंगे. दिल्ली में उनकी दाल गली नहीं और रावत अपने पुराने मित्र अमरिंदर सिंह का पक्ष ले रहे हैं, जिस कारण एक बार फिर से अटकलों का सिलसिला शुरू हो गया है कि क्या सिद्धू ऐसे ही चुप चाप अपमानित हो कर बैठे रहेंगे या फिर ईंट से ईंट बजने के लिए वह आम आदमी पार्टी का रुख करेंगे. हालांकि इस बात की संभावना कम ही है, पर सिद्धू के बारे में कुछ भी भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं है.
अगर सिद्धू कांग्रेस पार्टी में ही बने रहें और भगवंत मान को आम आदमी पार्टी की मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करने में हिचकिचाहट बनी रही तो शायद केजरीवाल को सिख नेता वाली बात को भूलना पड़ेगा. एक दिलचस्प बात है कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, पर पंजाब के मतदाताओं ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पसंद की सूची में टॉप 3 में रखा है. तो क्या यह संभव है कि केजरीवाल खुद को ही पंजाब में भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करें?
केजरीवाल बनेंगे पंजाब के मुख्यमंत्री?
संवैधानिक तौर पर इसमें कोई पाबन्दी नहीं है. सुषमा स्वराज हरियाणा में मंत्री रही थीं और बाद में बीजेपी ने उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था. शीला दीक्षित लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं और कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 2017 के चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया था. राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा शुरू हो गयी है कि अगर आम आदमी पार्टी की पंजाब में सरकार बनती है तो केजरीवाल पंजाब की कुर्सी संभाल सकते हैं. इसका एक कारण है कि दिल्ली छोटा प्रदेश है और उसे पूर्ण राज्य का दर्ज़ा भी नहीं प्राप्त है. पंजाब में मुख्यमंत्री का ओहदा दिल्ली के मुख्यमंत्री से कहीं ज्यादा बड़ा और महत्वपूर्ण है. ऐसी स्थिति में शायद केजरीवाल को पंजाब की बागडोर संभालने से गुरेज ना हो.
अमरिंदर सिंह बनाम अरविंद केजरीवाल… अगर ऐसा हुआ तो पंजाब की लड़ाई काफी रोचक हो जाएगी. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि आम आदमी पार्टी इस रहस्य से जल्दी ही पर्दा उठाएगी ताकि पंजाब के मतदाताओं को यह पता रहे की ईवीएम मशीन पर झाड़ू का बटन दबाने से वह किसे मुख्यमंत्री पद के लिए चुनने वाले हैं.


Next Story