- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- एक ड्राइवर ने जब जान...
एक ड्राइवर ने जब जान की बाजी लगा अमेठी में बूथ लुटेरों से संजय सिंह की जान बचाई
हेमंत शर्मा।
ड्राइवर सारथी होता है और मार्गदर्शक भी. मंजिल आपकी होती है मगर रास्ते उसके होते हैं. पहुंचाने वाला वही होता है. जो मंज़िल तक पहुंचाए, वही गुरु. हमारी शास्त्र परंपरा तो यही कहती हैं. हमारे यहां गुरु का महत्व भगवान से भी ज्यादा है, जानते हैं क्यों? क्योंकि भगवान तक जाने का रास्ता वही दिखाता हैर. यानि वह मार्गदर्शक है, पथ प्रदर्शक है. ड्राइवर आपकी जिंदगी के सफर में न जाने कौन-कौन से रास्ते दिखाता है। आपको उसे भरोसे में रखना पड़ता है. वह आपको सन्मार्ग पर भी ले जा सकता है और कुमार्ग पर भी. ड्राइवर शब्द सुनते ही मेरी स्मृतियों के पन्ने फड़फड़ाने लगते हैं. रामउदय पाठक का नाम मेरे ज़ेहन पर छा जाता है. पाठक जी हमारे यहां ड्राइवर थे. सन् 78 से मुसलसल अब तक. बिल्कुल अभिभावक जैसे. ड्राइवर से इतर पाठक जी मेरे गुरु भी थे क्योंकि ग्यारहवीं कक्षा में ही उन्होंने मुझे एम्बेसडर कार चलानी सिखाई थी, वह भी बनारस में. मेरा मानना है कि बनारस में अगर आप एम्बेसडर कार चला लें तो समूची दुनिया में कहीं भी कोई भी वाहन आप चला सकते हैं. मेरे साथ भी वही हुआ. पाठक जी ने जो कार चलाना सिखाया, फिर मैंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. बस चलाई, ट्रक पर भी हाथ आज़माया और फिर जहाज़ भी. निजी विमान चालन का लाइसेंस भी लिया.