सम्पादकीय

व्हाट्सैपिया खबर और परेशान व्यंग्यकार

Rani Sahu
18 Oct 2022 7:02 PM GMT
व्हाट्सैपिया खबर और परेशान व्यंग्यकार
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इधर ज्यों ही सोशल मीडिया पर किसी व्यंग्य जले ने यह खबर सच्ची या झूठी की वही जाने वायरल की कि देश के हर कैटेगरी के व्यंग्यकार पर विद इमीजिएट इफैक्ट प्रतिबंध लगा दिया गया है। अगले पल से जो भी व्यंग्यकार किसी भी तरह का व्यंग्य या व्यंग्य के नाम पर कुछ सार्थक, निरर्थक कुछ भी फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम पर चिपकाएगा उसे समाज द्वारा आगामी सोशल मीडियाई आदेश तक बहिष्कृत किया जाएगा। विसंगतियों के साथ भले ही उसके बाद भी उसके संबंध अंतरसंबध बने रहें तो बने रहें, पर समाज उसके साथ अपना कोई संबंध नहीं रखेगा। अत: हर तरह के, हर किस्म के, हर वर्ग के व्यंग्यकार के हित में सलाह दी जाती है कि वह अगले आदेश तक सब कुछ लिखे, पर व्यंग्य बिल्कुल न लिखे। व्हाट्सएप पर ज्यों ही अपने मोहल्ले के स्वयंभू व्यंग्यकार ने अपने दिल को हिला देने वाली यह सोशल मीडियाई खबर पढ़ी तो उसे वायरल हो गया, फ्लू हो गया, मंपी हो गया, टमैटो, पटैटो तो उसे पहले से ही था। वह आदमी न होने के बाद भी थोड़ा बहुत, बचा खुचा आदमी था, सो उसे लंपी न हुआ। मल न हो सोशल एनिमल होता तो वह भी हो चुका होता।
ये खबर पढ़ नाक सुडक़ते वह मेरे पास आया तो मैंने उसे दूर से ही राम सलाम करते पूछा, 'ये क्या हाल बना रखा है स्वयंभू व्यंग्यकार! सड़ूं सड़ूं करने के बदले कुछ इधर उधर से साहित्यिक मुन्ना भाइयों की तरह धांसू क्यों नहीं लिखते?''समझ नहीं आ रहा क्या लिखूं, क्या न लिखूं दोस्त! लगता है अब व्यंग्यकार के दिन लद गए। अब तो जो थोड़ा बहुत व्यंग्य से ले लेता था, उससे भी गया', उसने अपना नाक भौं सिकोड़ते अपना बहता नाक मेरे कुरते के मुहरु में पोंछने की साधिकार कुचेष्टा करते कहा तो मजे की बात, मुझे उस पर कतई गुस्सा नहीं आया। 'मतलब?' मैंने तो सोचा था कि साहित्य की हर विधा के दिन लद सकते हैं पर व्यंग्य के नहीं। समाज में विसंगतियां रहें या न रहें, पर यह कंबख्त व्यंग्य हर हाल में रहेगा, कोई पढऩे वाला रहे या नहीं, पर कंबख्त व्यंग्यकार रहेगा ही रहेगा। 'मतलब ये कि सोशल मीडिया पर खबर पूरे भ्रम मिले विश्वास के साथ तैर रही है कि किसी ने व्यंग्य जले ने व्यंग्य पर प्रतिबंध लगाए लगवा दिया है। अब तुम ही कहो, व्यंग्यकार खाएगा क्या तो कमाएगा क्या?
इस देश में बदतमीजी करने वालों को ही खाने का हक है क्या? बदतमीजों को रोकने वालों को नहीं? पर दोस्त! अगर सच्ची को ऐसा होगा तो समाज की विसंगतियां कौन उठाएगा? अब गया समाज पानी में', उसने मुझे अपनी ओर से गंभीर सूचना गंभीर सूचना से भी अधिक गंभीर होते अपने हाथ पांव फुलाए दी तो यह सूचना सुन मेरे भी हाथ पांव न होने के बाद भी मेरे हाथ पांव फूल गए, बाय गॉड से! 'नहीं ऐसा नहीं हो सकता! लगता है जो जो व्यंग्यकार अपने व्यंग्य के माध्यम से समाज को राह दिखाते रहे हैं उन्हें किसी ने गुमराह करने को यह खबर वायरल कर दी है ताकि वे भी व्यंग्य की सत्ता भूल सत्ता के साथ चलने वाले व्यंग्यकारों की तरह पथभ्रष्ट हो जाएं। दोस्त! समाज में रोटी पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में कपड़ों पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में सच पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में ईमानदारी पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में रिश्वत पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में नैतिकता पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में भाईचारे पर प्रतिबंध लग सकता है, समाज में इंसानियत पर प्रतिबंध लग सकता है, पर व्यंग्य पर प्रतिबंध सपने में भी नहीं लग सकता', मैंने उन्हें सच्ची की सांत्वना देते कहा तो वे अति के निराश होते बोले, 'काश! तुम्हारा कहा सच हो तो तुम्हारे मुंह में व्यंग्य ही व्यंग्य!' ये व्यंग्यकार भी न! कंबख्त लड्डू के बदले फिर घुसा गया मुंह में गला सड़ा व्यंग्य! अब आप ही कहो इसे चबाऊं पचाऊं या…।
अशोक गौतम
By: divyahimachal
Rani Sahu

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