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भारतीय क्रिकेट में अब विराट कोहली युग का अंत हो गया है
भारतीय क्रिकेट में अब विराट कोहली युग का अंत हो गया है. टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने का अंदाज विराट कोहली (Virat Kohli) का काफी हद तक पूर्व कप्तान और अपने हीरो महेंद्र सिंह धोनी (MS Dhoni) की ही तरह रहा. धोनी ने 2014 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सीरीज हारने के बाद कप्तानी अचानक से छोड़ दी थी तो करीब 7 साल बाद कोहली ने साउथ अफ्रीका में सीरीज हारने के बाद लगभग वैसा ही फैसला लिया लेकिन, हकीकत यही है कि कोहली ने अपने भाग्य का फैसला भारतीय चयनकर्ताओं या फिर सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) के हाथों में नहीं छोडा.
हमारे पाठकों को पहले से ही इस बात का अंदाजा हो चुका था जब केपटाउन टेस्ट से पहले इस लेखक ने हार के बाद ऐसे फैसले की तरफ इशारा किया था. (यहां क्लिक कर पढ़ें लेख) साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज में जीत इकलौती ऐसी बात हो सकती थी जो कोहली की टेस्ट कप्तानी को कम से कम 1 साल की लाइफलाइन दे सकती थी.
कोहली के पास ना तो न्यूजीलैंड में टेस्ट सीरीज जीत है और ना ही इंग्लैंड में. ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने सिर्फ एक अहम टेस्ट सीरीज जीती. यानि कि SENA( SOUTH AFRICA, ENGLAND, NEW ZEALAND, AUSTRALIA) मुल्कों में सिर्फ एक देश में वो कामयाबी हासिल कर पाए. इन चारों देशों में खेले गए 24 टेस्ट में कोहली सिर्फ 7 जीत हासिल कर सके जबकि इससे दोगुने यानि कि 14 मैच हारे. उनका जीत फीसदी रहा 30 से कम. वहीं, बाकी के मुल्कों में कोहली ने कप्तान के तौर पर 40 मैच जीते और 17 गंवाए और उनका जीत फीसदी रहा करीब 60 के पास.
आंकडों में ये अंतर साफ दिखाता है कि भले ही कोहली के आंकडे एक टेस्ट कप्तान के तौर पर सौरव गांगुली और धोनी से बहुत ही बेहतर हैं लेकिन अगर सही मायनों में उनका मूल्यांकन किया जाए तो उनके पास काफी कुछ दिखाने को नहीं था. ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज तो अंजिक्या रहाणे जैसे गैर-नियमित कप्तान ने भी एक बेहद कमजोर दिखने वाली भारतीय टीम के बूते एक बेहतर ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ जीत ली थी.
तो क्या इसका मतलब ये है कि कोहली टेस्ट कप्तान के तौर पर बिलकुल साधारण थे? बिल्कुल नहीं. आंकडे अगर कोहली की कामयाबी की दास्तां को अधूरा ब्यां करतें हैं तो उनकी नाकामी को भी बढा-चढाकर देखा जा सकता है, तर्क दिया जा सकता है. लेकिन, क्रिकेट में किसी कप्तान की विरासत सिर्फ ठंडे आंकडों की मोहताज नहीं होती है. एक लीडर के तौर पर खेल में आपका प्रभाव कैसा रहा, इस बात के मायने भी काफी होते हैं.
इस बात में शायद ही कोई दो राय हो कि कोहली ने टीम इंडिया को विदेशी जमीं पर हर मैच में जीत के इरादे से उतरने का मंत्र दिया. हर मैच वो जीत नहीं पाते थे वो एक अलग बात रही लेकिन हर मैच में 5 गेंदबाजों के साथ उतरना, कोहली की सबसे बडी पहचान रही. कोहली ने दुनिया को बताया कि भारत टेस्ट मैच में जीत हासिल करने के लए हार का जोखिम लेने से नहीं हिचकता है. कोहली को अपने इस नजरिये की कीमत साउथ अफ्रीका में चुकानी पडी जहां वो शायद इस फॉर्मूले को विराम देकर 7 बल्लेबाजों के साथ उतर सकते थे. लेकिन, कोहली की जिद ही तो है जिसने उन्हें क्रिकेट में इतना विराट बनाया.
विराट जानते थे कि एक बार कप्तानी सही समय पर नहीं छोडने में उनसे चूक हो चुकी थी और वो दोबारा इस गलती को दोहराना नहीं चाहते थे. कोहली ने देखा था कि कैसे वनडे की कप्तानी उनके हाथों से निर्ममता से छीन ली गई और साउथ अफ्रीका से वापस लौटने से पहले उनकी टेस्ट कप्तानी के साथ भी वैसा ही सलूक हो सकता था. ऐसे में बेहतर यही है कि बीसीसीआई को प्रेस रिलीज के जरिये दुनिया को इत्तेला करने की बजाए अपनी सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाए.
कई लोग ये सवाल जरुर करेंगे कि कोहली का ये निर्णय बेहद भावनात्मक और जल्दबाजी में रहा. लेकिन, कोहली तो हमेशा से ही भावनात्मक कैरेक्टर ही रहें है. सही हो या गलत आप हमेशा उनके फैसले पर बहस कर सकते हैं लेकिन इस बात में कभी दो राय रही हो कि कभी भी फैसले लेने में हिचकिचाते हों. जल्दबाजी में लिया गया फैसला आप इसे कह सकते हैं क्योंकि अभी भी टीम साउथ अफ्रीका में ही और उन्हें वनडे सीरीज भी खेलनी है. लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि अगर कोहली ये जल्दबाजी नहीं दिखाते तो शायद बीसीसीआई उनकी छुट्टी वैसी ही कर देती जैसी उनकी वन-डे क्रिकेट से कर दी. कोहली अगर टेस्ट सीरीज जीतते तो निश्चित तौर ये ऐसा फैसला नहीं करते.
चलते-चलते एक बात और जिस पर शायद बहुत सारे लोगों ने गौर नहीं फरमाया हो. जिस तरह से भावनात्मक तौर पर कोहली ने पूर्व कप्तान धोनी का जिक्र किया वो अपने आप में कई बातें बयां करती है. इसे महज इत्तेफाक ही नहीं कहा जा सकता है कि जब कोहली ने अपनी कप्तानी के इरादे और महत्वाकांक्षा दर्शानी शुरु की उन्होंने हमेशा से ही सौरव गांगुली को अपना आदर्श बताया. उन्हें गांगुली की आक्रामकता और विदेशी पिचों पर जीतने का जुनून पसंद था लेकिन जब थैंक यू कहने की बात आयी तो उन्होंने बोर्ड अध्यक्ष गांगुली का नाम नहीं लिया. लेकिन, फिलहाल ये सारी बातें आधी कहानी का ही हिस्सा है.
हम सभी को इंतजार करना होगा जब कोहली खिलाडी के तौर पर संन्यास की घोषणा करेंगे और इस मामले पर अपनी चुप्पी तोडेंगे. एक तरह से देखा जाए तो पहले से ही विराट कोहली की आत्म-कथा को लेकर अब दुनिया भर के प्रकाशकों में दिलचस्पी काफी बढ़ गई होगी और किताब ही क्यों, हो सकता है पूरे घटनाक्रम पर एक फिल्म भी बनें! फिल्म नहीं तो कम से किसी OTT प्लेटफॉर्म पर एक दिलचस्प और विराट सीरीज तो बन ही सकती है!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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