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ग्लोबल वार्मिंग
ब्रिटेन (यूके- यूनाइटेड किंगडम) में इन दिनों छात्रों ने जलवायु संकट को लेकर वैश्विक स्तर पर एक बड़ा अभियान शुरु किया है, उन्होंने इस अभियान को नाम दिया है- 'दी टीच दी टीचर' (The Teach The Teacher). इस अभियान के तहत ब्रिटेन और ब्रिटेन के साथ ही दुनिया भर देशों में पढ़ रहे मिडिल स्कूलों के बच्चों से यह अपील की जा रही है कि वे बतौर छात्र इस अभियान में शामिल हों.
इस अभियान की मांग है कि दुनिया भर के देशों की सरकारें जलवायु शिक्षा (climate education) को अनिवार्य तौर पर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं और इसके साथ ही सरकारों को चाहिए कि वे जलवायु शिक्षा के विषय में एक मूल्यांकन तंत्र भी विकसित करें, जो समय-समय पर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम (national curriculum) में शामिल जलवायु शिक्षा की समीक्षा और समालोचना करे.
20 देशों से हुई शुरुआत
महत्त्वपूर्ण बात है कि 'दी टीच दी टीचर' अभियान के तहत अक्टूबर के शुरुआती दिनों में 20 देशों के छात्रों की खासी तादाद जुड़ चुकी है. इस बारे में इस अभियान का नेतृव्य कर रहे कार्यकर्ता कहते हैं कि शिक्षकों को इस भूमिका के लिए तैयार कराना असल में समय की मांग है, जिसमें शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे जलवायु विज्ञान विषय में अप-टू-डेट रहें और उससे जुड़े अहम अध्यायों के बारे में बच्चों को जागरुक बनाते रहें.
हालांकि, दुनिया के कई देशों ने जलवायु संबंधी विषय को राष्ट्रीय प्राथमिकता में शामिल किया है और जलवायु पविर्तन से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन को लेकर भी कई देश अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके हैं. इसके बावजूद, वैश्विक स्तर पर जलवायु शिक्षा अभी भी अपेक्षा के मुताबिक स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बन सकी है.
इसलिए, इस बारे में छात्रों के बीच जानकारियों क अभाव चिंता का एक बड़ा कारण बताया जा रहा है और इसीलिए 'दी टीच दी टीचर' अभियान की मांग है कि मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को जलवायु विज्ञान के अंतर्गत समाधान-आधारित शिक्षा (solution-based learning) हासिल हो.
जलवायु संकट पर हुआ अध्ययन
पिछले सप्ताह जलवायु संकट विषय पर एक अध्ययन किया गया, जो युवा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य (mental health) पर जलवायु संकट के प्रभावों को समझने के लिए किया गया था. इसके निष्कर्ष के मुताबिक वैश्विक स्तर पर लगभग आधे युवा यह महसूस करते हैं कि जलवायु की चिंता उनके दैनिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है.
निष्कर्ष की मानें तो दुनिया भर में लगभग दो-तिहाई युवा यह मानते हैं कि सरकारें उन्हें जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही हैं. 'दी टीच दी टीचर' अभियान मॉक (Mock), सीओपी (COP) और एसओएस-यूके (SOS-UK) जैसे अंतरराष्ट्रीय छात्र संगठनों ने तैयार किया है, जिन्होंने अपना एक अंतरराष्ट्रीय समूह बनाया है और जो वैश्विक स्तर पर जलवायु शिक्षा के अपर्याप्त स्तर से निपटने का प्रयास कर रहा है. साथ ही यह समूह दुनिया भर की सरकारों से इस मुद्दे पर कार्रवाई करने का आग्रह भी करता है.
भविष्य के नागरिक बनाने के लिए
यह पूरा अभियान पर्यावरण और खास तौर पर जलवायु संकट की तात्कालिकता को लेकर छात्रों की चिंता जगजाहिर करता है. इसके तहत इस अभियान में शामिल छात्र शिक्षकों से भी यह मांग कर रहे हैं कि वे उन्हें समाधान केंद्रित अध्याय पढाएं, जिसके लिए ऐसा पाठ्यक्रम तैयार किया जाए, जो पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंता के बढ़ते स्तर को कम करने में छात्रों की मदद करे.
'दी टीच दी टीचर' से जुड़ी भारतीय मूल की एक छात्रा ऐश्वर्या पुत्तूर ब्रिटेन के एक मीडिया संस्थान से बातचीत में कहती हैं, "सभी बच्चों के लिए शिक्षा मानव अधिकार है, ऐसा नहीं हो सकता है कि जो संकट वर्तमान दौर में चल रहे हैं, उन्हें उपेक्षित करके बच्चों को शिक्षा दी जाती रही. संकटों के बारे में भी जानना बच्चों का अधिकार है, लेकिन जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे को शिक्षा में अच्छी तरह से शामिल नहीं किया जा सका है, जबकि बच्चों के लिए यह एक अनिवार्य तौर पर जानने योग्य विषय है."
इस अभियान से जुड़े छात्रों का मत है कि शिक्षा का फ्रेमवर्क ऐसा होना चाहिए, जिसमें जलवायु संकट से जुड़े विषय के अंतर-अध्याय (inter-sections) हों. जैसा कि वैज्ञानिक तथ्यों में बताया गया है कि शिक्षा के भीतर फ्रंटलाइन डिफेंडर और हाशिए पर छूटे लोगों की आवाजें सुनी जानी चाहिए. पूरी शिक्षा इस दिशा में हो जो हमें स्थायी परिवर्तन की ओर ले जा सके.
इसलिए छात्र बनेंगे शिक्षक
'दी टीच दी टीचर' ग्लोबल नेटवर्क द्वारा समर्थित छात्र शिक्षक की भूमिका निभाएंगे और कुछ अध्याय प्रस्तुत करेंगे, ताकि उन्हें एक मिडिल स्कूल के शिक्षक सप्ताह में एक बार पढ़ा सकें. इस तरह की कक्षाएं जलवायु शिक्षा (climate education), जलवायु न्याय (climate justice) और कक्षा में जलवायु बातचीत (climate conservation) कैसे शुरू करें जैसे मुद्दों पर आधारित हैं.
इस अभियान को कुछ वैश्विक स्तर की राजनीतिक हस्तियों से समर्थन मिलना शुरु हो गया है, जिसमें लोरेंजो फियोरामोंटी (Lorenzo Fioramonti), पूर्व शिक्षा मंत्री, इटली और जिमी यूगुरो (Jimmy Uguro), शिक्षा मंत्री, पापुआ न्यू गिनी (इंडोनेशिया के समीप प्रशांत महासागर क्षेत्र में एक स्वतंत्र राष्ट्र) शामिल हैं.
शिक्षा से सुलझेगा जलवायु संकट का मुद्दाइस बारे में इटली के पूर्व शिक्षा मंत्री लोरेंजो फियोरामोंटी ने पिछले दिनों एक बयान जारी करते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन की पहचान और पर्यावरण के पतन को रोकने के लिए एक व्यवहार आधारित क्रांति की आवश्यकता है, जिसे केवल शिक्षा प्रणाली के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. लोरेंजो फियोरामोंटी मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन की पहचान और पर्यावरण के पतन को रोकने के लिए शिक्षकों को कुछ जटिल और नरम कौशल विकसित करने की जरुरत है.
इसी कड़ी में 'दी टीच दी टीचर' ग्लासगो में शिक्षा मंत्रियों के एक शिखर सम्मेलन भी कराने जा रहा है. 5 नवंबर यानी युवा दिवस (Youth Day) के मौके पर होने वाले इस शिखर सम्मेलन में जलवायु संकट को लेकर सार्थक कार्रवाई और नीतिगत परिणामों को प्रोत्साहित किया जाएगा. इस शिखर सम्मेलन में जलवायु संकट आधारित शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया जाएगा. साथ ही इस दौरान जलवायु शिक्षा में सुधार की संभावनाओं को भी तलाशा जाएगा.
जलवायु संकट से जुड़े आशंकित खतरे
इस शिखर सम्मेलन में यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण होगा कि जलवायु संकट के कारण वर्ष 2030 तक समुद्र का स्तर जब 20 सेंटीमीटर बढ़ जाएगा तब क्या किया जाएगा. इससे स्थानीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होगी, इसलिए ऐसी स्थिति को तत्काल रोकने के लिए शिक्षा क्षेत्र में क्या कदम उठाए जा सकते हैं. बता दें कि पेरिस समझौते का अनुच्छेद 12 वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए जलवायु शिक्षा, प्रशिक्षण, जन जागरूकता, सार्वजनिक भागीदारी और सूचना तक सार्वजनिक पहुंच के महत्त्व को प्राथमिकता देता है.
यह समझौता सभी देशों और संबंधित पक्षों को इसे लागू कराने के लिए सहयोग देने पर जोर देता है. इस दिशा में इटली ने जलवायु शिक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को बढ़ाया है, जो इसे सभी छात्रों के लिए कानूनी आवश्यकता बनाने वाला दुनिया का पहला देश है. इसके अलावा, अन्य देशों ने भी जलवायु शिक्षा नीतियों को लागू करना शुरू कर दिया है, जैसे कि न्यूजीलैंड ने एक वैकल्पिक जलवायु पाठ्यक्रम शुरू किया है और मेक्सिको ने अपने संविधान में संशोधन किया है, ताकि शिक्षा की बुनियादी आवश्यकता के रूप में पर्यावरण संकटों से जुड़ी समझ और पर्यावारण के मुद्दों को पर्याप्त जगह दी जा सके.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
शिरीष खरे,लेखक व पत्रकार
2002 में जनसंचार में स्नातक की डिग्री लेने के बाद पिछले अठारह वर्षों से ग्रामीण पत्रकारिता में सक्रिय. भारतीय प्रेस परिषद सहित पत्रकारिता से सबंधित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित. देश के सात राज्यों से एक हजार से ज्यादा स्टोरीज और सफरनामे. खोजी पत्रकारिता पर 'तहकीकात' और प्राथमिक शिक्षा पर 'उम्मीद की पाठशाला' पुस्तकें प्रकाशित.
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