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चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के छठे प्लेनरी सेशन में पार्टी के सौ साल के इतिहास से संबंधित दस्तावेज पारित हुआ। इसे शी के राष्ट्रपति के रूप में अगले कार्यकाल की तैयारी भी माना जा रहा है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के छठे प्लेनरी सेशन में पार्टी के सौ साल के इतिहास से संबंधित दस्तावेज पारित हुआ। इसे शी के राष्ट्रपति के रूप में अगले कार्यकाल की तैयारी भी माना जा रहा है। उन्हें माओ से भी अधिक ताकतवर माना जा रहा है। यह बात गौर करने लायक है कि अब तक के इतिहास में यह तीसरा ही मौका है, जब पार्टी ने ऐसा प्रस्ताव पारित किया। पहली बार 1945 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में और दूसरी बार 1981 में तंग श्याओ फंग की अगुआई में पार्टी ने ऐसा प्रस्ताव पारित किया था।
ध्यान रहे पार्टी से पारित इस प्रस्ताव के बाद ही माओ के नेतृत्व को वह मजबूती मिली, जिसकी बदौलत 1949 में वह पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की घोषणा कर देश को समाजवादी रास्ते पर ले जा सके। ऐसे ही तंग श्याओ फंग अगर माओ के नेतृत्व में 'सांस्कृतिक क्रांति के दौरान की गई गलतियों' को रेखांकित करते हुए देश में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात कर सके, तो उसके पीछे 1981 में पारित इस प्रस्ताव से मिली ताकत की बड़ी भूमिका मानी जाती है। अब जब शी ने भी वह ताकत हासिल कर ली है तो सवाल उठना लाजिमी है कि वह इस ताकत का कैसा इस्तेमाल करने वाले हैं।
जवाब का कुछ संकेत पार्टी की ओर से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही गई इस बात से मिल जाता कि यह प्रस्ताव दूसरे शतकीय लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार होगा। ध्यान रहे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जो दो शतकीय लक्ष्य तय कर रखे हैं, उनमें पहला है 2021 तक सामान्य रूप में समृद्ध समाज (मॉडरेटली प्रॉस्परस सोसायटी) बनना और दूसरा 2049 तक पूर्ण विकसित, अमीर और ताकतवर देश बनना। इस दूसरे लक्ष्य को हासिल करने की चीनी नेतृत्व की बेकरारी ही है जो दुनिया के तमाम बड़े देशों की चिंता का कारण बनी हुई है।
चूंकि मामला अपने समाज को समृद्ध बनाने भर का नहीं, 'पूर्ण विकसित, अमीर और ताकतवर' देश का रुतबा पाने का है, इसलिए स्वाभाविक ही पिछले कुछ समय से चीन की अंतरराष्ट्रीय नीति में एक तरह की आक्रामकता झलकने लगी है। चाहे भारत के साथ सीमा विवाद का मसला हो या हांगकांग में लोगों के लोकतांत्रिक प्रतिरोध को दबाने का, चाहे साउथ चाइना सी में कृत्रिम द्वीपों के जरिए अपने दावों को ठोस रूप देने की कोशिशों का हो या फिर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में अपनाई जाने वाली रणनीति का- हर जगह उसकी यह आक्रामकता अन्य पक्षों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित कर रही है। यही वजह है कि दुनिया में एक नई तरह की गोलबंदी बनने लगी है, जिसे कुछ प्रेक्षक शीत युद्ध के एक नए दौर की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि 21वीं सदी की दूसरी चौथाई में दुनिया का स्वरूप काफी हद तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर की इन गतिविधियों के भविष्य पर निर्भर करेगा।
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