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- अब क्या करेंगे इमरान...
नवभारतटाइम्स: पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर हुआ हमला भयावह है। शुक्र है कि गोली उनके पांव में लगी और अस्पताल में उनकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। हमलावरों में से एक मौके पर ही मार गिराया गया। दूसरे को गिरफ्तार कर लिया गया है। फिलहाल उसका कहना है कि उसने इमरान पर हमला उन्हें मार डालने के मकसद से किया था और वह उनके कथित झूठे दावों से नाराज था। यह भी कि इस हमले की योजना उसने खुद बनाई थी और दूसरा कोई भी इसमें शामिल नहीं है। जाहिर है, इस आरोपी के इन बयानों को एक सीमा से ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा सकती। लेकिन यह बात भी सही है कि मौजूदा हालात में इस हमले की सचाई किस हद तक बाहर आएगी, इस बारे में आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। कारण यह है कि कोई ठोस सबूत भले ही न हो, लेकिन पाकिस्तान के अंदर और बाहर बहुत सारे लोग मान रहे हैं कि कहीं न कहीं हमले के पीछे सत्ता में बैठे ताकतवर लोगों का हाथ है।
इसकी सबसे बड़ी वजह तो यह है कि पाकिस्तान में ऐसी साजिशों और हमलों का पुराना इतिहास रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है जिसमें सेना और आईएसआई का हाथ होने की बात पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी कही थी। उसके अलावा भी वहां सत्ता के लिए चुनौती बनने वालों के साथ निहायत अलोकतांत्रिक व्यवहार करने की रीत सी बनी हुई है। तमाम आरोप लगाकर चुनाव लड़ने पर रोक लगवाना या देश से निकलने पर मजबूर कर देना इसका सबसे 'सभ्य' तरीका रहा है। इमरान खान भी पिछले कुछ समय से पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान, खासकर सेना की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। पद से हटाए जाने के बाद से इमरान की लोकप्रियता आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ी है। इसके सबूत उनकी सभाओं और रैलियों में जुट रही जबर्दस्त भीड़ के ही रूप में नहीं, उपचुनावों में उनकी पार्टी को मिलने वाली सीटों की संख्या में भी दिखे हैं।
लोकप्रियता की इस लहर पर सवार इमरान खान वहां सरकार पर जल्दी चुनाव के लिए दबाव बढ़ाते जा रहे थे, जिसकी अनदेखी करना उसके लिए संभव नहीं रह गया था। जल्दी चुनाव की यह मांग शाहबाज शरीफ की अगुवाई वाली मौजूदा सरकार के लिए ही नहीं पाकिस्तानी सेना और इसके चीफ कमर जावेद बाजवा के लिए भी चिंताजनक है क्योंकि निर्वाचित प्रधानमंत्री के रूप में इमरान नए सेना प्रमुख के रूप में कोई प्रतिकूल नाम चुनकर बाजवा की सत्ता पर पकड़ समाप्त कर सकते हैं। माना जा रहा है कि हमले से सरकार के खिलाफ इमरान का अभियान तात्कालिक रूप से ही सही थोड़ा कमजोर तो हुआ है। लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि अस्पताल से स्वस्थ होकर लौटने के बाद इमरान इस हमले से उपजी सहानुभूति का कैसा इस्तेमाल करते हैं और सेना उसकी काट के लिए किस तरह के उपाय अपनाती है।