सम्पादकीय

अफगानिस्तान में अब क्या होगा: नई आतंकी चुनौती हैं तालिबान

Rani Sahu
17 Aug 2021 7:35 AM GMT
अफगानिस्तान में अब क्या होगा: नई आतंकी चुनौती हैं तालिबान
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अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और उप-राष्ट्रपति अमीरुल्लाह सलाह का राजधानी काबुल छोड़कर निकल जाना बताता है

केएस तोमर। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और उप-राष्ट्रपति अमीरुल्लाह सलाह का राजधानी काबुल छोड़कर निकल जाना बताता है कि वे खून-खराबे से बचना चाहते थे, जिस कारण तालिबान को सत्ता शांतिपूर्ण ढंग से हस्तांतरित की जा सकी। तालिबान के काबुल पर कब्जा कर लेने से बदतर आशंका सच साबित हुई है और इससे अफगानिस्तान में अनिश्चय, अत्याचार और खासकर महिलाओं व बच्चों पर शोषण का नया सिलसिला शुरू हो सकता है, जो भारत के लिए बेहद चिंताजनक है। गौरतलब है कि तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर तो कब्जा कर लिया है, पर उनके समर्थकों को काबुल के प्रवेश द्वार पर ही रहने के निर्देश दिए गए हैं।

यह तालिबान की बदली हुई रणनीति के बारे में ही बताता है कि वे अफगान सेना और अपने विरोधियों से झड़प में उलझना नहीं चाहते। मजार-ए-शरीफ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में कार्यरत राजनयिकों और अधिकारियों तथा शहर तथा उसके आसपास रहने वाले भारतीयों को वायुसेना के विमानों से निकाल लिया गया है तथा काबुल स्थित भारतीय दूतावास ने वहां रह रहे भारतीयों से अपील की है कि व्यावसायिक उड़ान बंद होने से पहले वे अफगानिस्तान से निकल लें। अफगानिस्तान में सक्रिय भारतीय फर्मों से भी कहा गया है कि उड़ान बंद होने से पहले वे परियोजना स्थलों से भारतीयों को अविलंब हटा लें।
तालिबान नेतृत्व ने अफगानिस्तान में भारत के मानवीय और विकासपरक कामों की तारीफ करते हुए कहा है कि भारत ने सड़कों और बांधों का निर्माण किया है और बुनियादी ढांचे के दूसरे कामों में भी योगदान किया है, 'हम क्षमता विस्तार की दिशा में भारत के योगदान की तारीफ करते हैं, चाहे वह संसद भवन का निर्माण हो या स्कूल हो, सड़क और बांध हो और भारतीयों को यहां कोई खतरा नहीं है।'
अमेरिका का कहना है कि काबुल स्थित उसके दूतावास से सभी अधिकारियों को निकाल लिया गया है और काबुल स्थित हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा अमेरिकी सैनिकों के हाथ में है। जबकि रूस ने अपने लोगों को वहां से नहीं निकाला है और काबुल में रूस के राजदूत ने अपने राजनयिकों तथा कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए तालिबान प्रतिनिधियों से मिलने का फैसला किया है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और यूरोपीय संघ समेत कुल 11 देशों व समूहों के तालिबान की सत्ता को मान्यता न देने के फैसले को देखते हुए ही तालिबान ने शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता हस्तांतरित करने की योजना बनाई।
अलबत्ता ऐसे में, वहां गृहयुद्ध होने या अफगान सेना तथा दूसरे विरोधियों के साथ तालिबान की लड़ाई होने की आशंका भी बढ़ गई है। यह ठीक है कि तालिबान पिछली बार की गलतियों से बचना चाहते हैं, पर अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत पड़ेगी। सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन उनके लिए काफी नहीं है, जो खुद अमेरिकी मदद पर निर्भर है। तालिबान का काबुल पर कब्जा भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसने ढांचागत क्षेत्र समेत शिक्षा आदि पर अफगानिस्तान में करीब 22,350 करोड़ रुपये का निवेश किया है। जबकि तालिबान भारत को अफगानिस्तान में निवेश करने से हतोत्साहित करते रहे हैं।
सिर्फ यही नहीं कि तालिबान से रिश्ता बनाए रखना भारत के लिए कठिन होगा, बल्कि अब काबुल से भारत में शरणार्थियों की भीड़ भी बढ़ेगी। फिर चूंकि तालिबान की जंग में लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठन भी साथ रहे, ऐसे में, कश्मीर में आतंकी हिंसा बढ़ने के आसार हैं, क्योंकि पाक सेना और आईएसआई भी कश्मीर में लाभ उठाना चाहेंगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अफगानिस्तान की बदली हुई हकीकत को स्वीकार कर लेना ही भारत के हित में है। काबुल पर कब्जा कर लेने के बाद अब तालिबान को उनकी मंशा पूरी करने से रोकना कठिन है। हालांकि वहां सब कुछ निराशाजनक नहीं है, क्योंकि खुद तालिबान भी मान रहे हैं कि पहले की तरह खून-खराबा और जोर-जबर्दस्ती से उनका काम नहीं चलने वाला। ऐसे में, भारत को तालिबान के साथ अपना संवाद जारी रखना चाहिए।


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